आंतरिक और बाहरी सुरक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू : राजनाथ सिंह

नई दिल्ली 4 मार्च (आईएएनएस)। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि जहां तक इंटरनल सिक्योरिटी का प्रश्न है, उसके समक्ष हमें आतंकवाद, अलगाववाद, वामपंथी चरमपंथ, सांप्रदायिक तनाव, घुसपैठ और संगठित अपराध जैसे खतरे देखने को मिल रहे हैं। वहीं यदि बाहरी सुरक्षा की बात की जाए तो वहां भी हमारी अपनी अलग चुनौतियां हैं। हालिया समय में साइबर और स्पेस आधारित चुनौतियां हमारे सामने आ रही हैं।
राजनाथ सिंह ने यह बातें ‘एडवांस टेक्नोलॉजी ऑन इंटरनल सिक्योरिटी’ सेमिनार में कहीं। यह सेमिनार केंद्रीय गृह मंत्रालय और डीआरडीओ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। यहां रक्षा मंत्री ने कहा कि आंतरिक और बाहरी सुरक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
आंतरिक सुरक्षा, डिजास्टर मैनेजमेंट और ओवरऑल नेशनल सिक्योरिटी को ध्यान में रखकर दिल्ली के डीआरडीओ परिसर में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह आयोजन डीआरडीओ और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के बीच सहयोग को लेकर था। रक्षा मंत्री के मुताबिक, डीआरडीओ मूलतः दो प्रकार की तकनीकी प्रणालियों पर कार्य करता है। एक तरफ यह हमारी सेनाओं यानी आर्मी, नेवी और एयर फोर्स द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बड़े प्लेटफार्म की टेक्नोलॉजी डेवलप करता है। वहीं दूसरी तरफ डीआरडीओ ऐसी प्रणालियां भी विकसित कर रहा है जिनका इस्तेमाल दूसरी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा भी किया जा सकता है।
इस श्रेणी में छोटे हथियार, बुलेट प्रूफ जैकेट, संचार के उपकरण, सर्विलांस उपकरण, ड्रोन और एंटी ड्रोन टेक्नोलॉजी शामिल हैं। रक्षा मंत्री का कहना है कि गृह मंत्रालय और डीआरडीओ को मिलकर इस प्रकार के उत्पादों की एक सूची बनानी चाहिए, जिस पर दोनों मिलकर समयबद्ध तरीके से कार्य करें।
रक्षा मंत्री ने कहा, “आजादी के बाद से देखें तो भारत, चूंकि आर्थिक रूप से उतना समृद्ध नहीं था, इसलिए हमारा अधिकांश ध्यान अपनी मूलभूत जरूरतों पर टिका रहता था। अब इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कह सकते हैं कि हम आपदाओं पर और उसके प्रभाव पर उतना ध्यान नहीं देते थे। हम एक तरह से आपदाओं और उनसे होने वाले जान-माल के नुकसान को अपनी नियति मान ली थी। नियति नहीं भी मानें तो भी, अनेक कारणों से इनके ऊपर अध्ययन नहीं कर पाते थे। लेकिन अब स्थिति ऐसी नहीं है।”
उन्होंने कहा, “आज भारत समृद्ध हो रहा है। आज हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में भी टेक्नोलॉजी की भूमिका बढ़ रही है। आप लोगों को याद होगा कि मौसम की भविष्यवाणी करने वाले अच्छे मैकेनिज्म के आने से पहले, साइक्लोन से जान-माल की बड़ी क्षति होती थी। टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से यह स्थिति आज काफी हद तक बदली जा चुकी है। इसी प्रकार के अच्छे कार्य डिजास्टर मैनेजमेंट के दूसरे क्षेत्रों में भी किए जा रहे हैं।”
रक्षा मंत्री ने कहा कि आजकल लगातार हो रही प्राकृतिक आपदाओं के परिप्रेक्ष्य में यह और भी आवश्यक हो जाता है कि इन तकनीकों का जान-माल की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जाए। आज समूचे विश्व में प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप देखा जा रहा है। भारत भी इनसे अछूता नहीं है। साइक्लोन, भूकंप, हिमस्खलन, बाढ़ और बादल फटने जैसी आपदाएं हमारे देश में भी देखी जा रही हैं। अभी हाल ही में उत्तराखंड के माणा में हिमस्खलन की घटना हुई है। अनेक निर्माण श्रमिक इससे प्रभावित हुए हैं।
उन्होंने कहा कि आपदाएं तो अपने आप में दुखद होती ही हैं, परंतु तकनीक के इस्तेमाल से इसके प्रभाव को काफी कम किया जा सकता है। रक्षा मंत्री ने कहा कि हिमस्खलन की इस आपदा में थर्मल इमेजिंग, विक्टिम लोकेशन कैमरा और ड्रोन आधारित इंटेलिजेंट डिटेक्शन सिस्टम जैसी आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया गया। इससे होने वाले नुकसान को काफी कम करने का प्रयास किया गया। इन तकनीकों के चलते अनेक बहुमूल्य जानें बचाई जा सकीं।
रक्षा मंत्री ने कहा कि आज पूरी दुनिया में सिक्योरिटी सिचुएशन काफी जटिल नजर आ रही है। इस जटिल स्थिति का प्रमुख पहलू आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के बीच बढ़ता ओवरलैप है। रक्षा मंत्री ने कहा कि आंतरिक और बाहरी सुरक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसे देखते हुए यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि हम अपनी सुरक्षा नीतियों को भी उसी प्रकार से ढालें।
–आईएएनएस
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