नई दिल्ली, 21 जनवरी (आईएएनएस)। दुनिया की कुल खपत में भारत की हिस्सेदारी 2050 तक बढ़कर 16 प्रतिशत हो सकती है, जो कि 2023 में 9 प्रतिशत थी। यह जानकारी एक रिपोर्ट में दी गई।
मैकिन्से ग्लोबल इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट में बताया गया कि 2050 तक 17 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ केवल उत्तरी अमेरिका ही भारत से आगे होगा। यह अनुमान क्रय शक्ति समता के आधार पर लगाया गया है, जो देशों के बीच मूल्य अंतर को बराबर करता है।
दुनिया की कुल खपत में भारत की हिस्सेदारी बढ़ने की वजह यहां अधिक युवा आबादी होना है।
रिसर्च में बताया गया कि डेमोग्राफिक शिफ्ट के कारण फर्स्ट-वेव रीजन में प्रजनन दर में गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या वृद्ध हो रही है।
2050 तक केवल 26 प्रतिशत ही वैश्विक आबादी इन इलाकों में रहेगी, जो कि 1997 में 42 प्रतिशत से अधिक थी।
आगे कहा गया कि लेटर-वेव रीजन, जिसमें भारत लैटिन अमेरिका, पश्चिम एशिया और अफ्रीका आते हैं। इन देशों की वैश्विक खपत में हिस्सेदारी आधे से अधिक होगी। इसकी वजह युवा आबादी और आय का बढ़ना है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि विश्व जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी 2023 में 23 प्रतिशत थी, जो कि 2050 तक घटकर 17 प्रतिशत रह जाएगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि डेमोग्राफिक डिविडेंड ने 1997 से 2023 के बीच भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) प्रति व्यक्ति वृद्धि में औसतन 0.7 प्रतिशत की वृद्धि की है। डेमोग्राफिक डिविडेंड कुल आबादी की तुलना में कार्यशील आबादी में वृद्धि के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति जीडीपी वृद्धि है।
कार्यबल में अधिक महिलाओं को लाने से बहुत बड़ा अंतर आ सकता है। रिसर्च में कहा गया है कि यदि भारत अपनी महिला श्रम शक्ति में 10 प्रतिशत अंकों की वृद्धि करता है, तो इससे प्रति व्यक्ति जीडीपी में 4-5 प्रतिशत की वृद्धि होगी।
–आईएएनएस
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