अमेरिकी आर्थिक नीति में बदलाव के कारण उभरते बाजारों में 'भारत' को होगा सबसे ज्यादा लाभ


मुंबई, 26 मार्च (आईएएनएस)। अमेरिका द्वारा अपने आर्थिक रुख में बदलाव के कारण उभरते बाजारों में तेजी आने की संभावना है और भारत को सबसे अधिक लाभ होने की उम्मीद है। बुधवार को आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का मजबूत प्रवाह लौट रहा है।

एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज ने अपनी ‘इंडिया स्ट्रैटेजी रिपोर्ट’ में कहा, “अमेरिकी प्रशासन की विकसित हो रही राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों के कारण वैश्विक आर्थिक गतिशीलता में एक बड़ा बदलाव आया है।

यह परिवर्तन निवेश के अवसरों को आकार देगा, जिससे निवेशकों को रणनीतिक दूरदर्शिता के साथ बदलते परिदृश्य में आगे बढ़ने का आग्रह किया जाएगा।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे-जैसे ‘पूंजी’ डॉलर परिसंपत्तियों से दूर होती जा रही है, भारत के मजबूत आर्थिक बुनियादी ढांचे, सहायक नीतिगत माहौल और आकर्षक मूल्यांकन इसे वैश्विक पूंजी प्रवाह के प्रमुख लाभार्थी के रूप में स्थापित कर रहे हैं।

मजबूत विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) प्रवाह के कारण भारत के बाजारों में 4.5 प्रतिशत की तेजी जारी रहने की संभावना है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत इस वैश्विक आर्थिक परिदृश्य से काफी लाभान्वित होने की स्थिति में है। कमजोर डॉलर और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में गिरावट से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का भारतीय इक्विटी में निवेश बढ़ने की उम्मीद है।

इसके अलावा, भारत मजबूत राजकोषीय और मौद्रिक समर्थन के साथ लचीला बना हुआ है, जो इसे एक आकर्षक निवेश गंतव्य बनाता है।

एमके को भारतीय बाजारों में निरंतर तेजी की उम्मीद है क्योंकि ‘वैश्विक पूंजी’ गैर-डॉलर परिसंपत्तियों की ओर शिफ्ट हो रही है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि “निवेशकों को घरेलू खपत, निवेश और पूंजीगत सामान क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी जाती है, जबकि अमेरिकी बाजारों पर निर्भर व्यवसायों में निवेश कम करना चाहिए।”

बैंकों और एनबीएफसी द्वारा तेजी का नेतृत्व करने की उम्मीद है।

स्मॉल और मिड-कैप (एसएमआईडी) शेयरों में सुधार खत्म होता दिख रहा है, जो आगे की तेजी की संभावना का संकेत देता है।

घरेलू विवेकाधीन खर्च और पूंजी निवेश में मजबूत वृद्धि देखने को मिल सकती है।

ट्रंप प्रशासन आर्थिक नीति में एक रणनीतिक बदलाव को लागू कर रहा है, जो “ढीली राजकोषीय और सख्त मौद्रिक नीति” से “कड़ी राजकोषीय और ढीली मौद्रिक नीति” ढांचे की ओर बढ़ रहा है।

इस बदलाव का उद्देश्य व्यापक आर्थिक असंतुलन को दूर करना और वैश्विक जीडीपी (24 प्रतिशत), बाजार पूंजीकरण (70 प्रतिशत) और इसकी आरक्षित मुद्रा स्थिति में अमेरिकी प्रभुत्व को फिर से स्थापित करना है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “जैसा कि अमेरिका अपनी आर्थिक रणनीति को फिर से तैयार कर रहा है, भारत महत्वपूर्ण विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए खड़ा है, जो कमजोर डॉलर और कम बॉन्ड यील्ड से लाभान्वित होगा।”

–आईएएनएस

एसकेटी/सीबीटी


Show More
Back to top button