भारत ने बर्फीले ग्लेशियरों के संरक्षण के प्रति वैश्विक मंच पर दोहराई प्रतिबद्धता

नई दिल्ली, 31 मई (आईएएनएस)। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा है कि ग्लेशियरों का पिघलना न केवल एक चेतावनी है, बल्कि यह एक तत्काल और गंभीर खतरा है, जिसका जल सुरक्षा, जैव विविधता और अरबों लोगों की आजीविका पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है।
वे यह बात ताजिकिस्तान के दुशांबे में आयोजित ग्लेशियर संरक्षण पर उच्च स्तरीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के प्लेनरी सत्र को संबोधित करते हुए कह रहे थे।
मंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि ग्लेशियरों के पिघलने की गति तेजी से बढ़ रही है, और इसका सबसे ज्यादा असर हिमालय जैसे पर्वतीय क्षेत्रों पर पड़ रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि दक्षिण एशिया, जो वैश्विक उत्सर्जन में कम योगदान देता है, वह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बना हुआ है।
उन्होंने वैश्विक परिप्रेक्ष्य में “साझी लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियां और क्षमताएं” के सिद्धांत पर भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। मंत्री ने विकासशील देशों के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता बढ़ाने, वैज्ञानिक अनुसंधान साझा करने और वैश्विक सहयोग को मजबूत करने की अपील की।
कीर्ति वर्धन सिंह ने 2025 को ‘अंतर्राष्ट्रीय हिमनद संरक्षण वर्ष’ और 2025-2034 को ‘क्रायोस्फेरिक विज्ञानों के लिए कार्रवाई का दशक’ घोषित किए जाने का स्वागत किया और कहा कि यह निर्णय वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में एक अहम कदम है।
उन्होंने बताया कि भारत सरकार राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के अंतर्गत चल रहे “हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमएससीएचई)” के तहत कई रणनीतिक कदम उठा रही है। इसके अलावा, भारत ने क्रायोस्फियर और जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र की स्थापना भी की है, जो भारतीय हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों और झीलों की निगरानी और अनुसंधान के लिए समर्पित है।
कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा, “भारत साझेदारी को मजबूत करने, विशेषज्ञता साझा करने और हमारे साझा भविष्य की रक्षा के लिए सार्थक योगदान देने के लिए तैयार है।”
इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में वैश्विक विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और मंत्रियों ने भाग लिया, जहां ग्लेशियरों की सुरक्षा के लिए तत्काल वैश्विक कदम उठाने पर चर्चा हुई। ग्लेशियर न केवल ताजे पानी के महत्वपूर्ण स्रोत हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के संवेदनशील संकेतक भी हैं।
–आईएएनएस
डीएससी/एकेजे