कुल्लू, 13 अक्टूबर (आईएएनएस)। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने रविवार को 300 से अधिक देवी-देवताओं की उपस्थिति में रथ मैदान में सप्ताह भर चलने वाले अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का उद्घाटन किया।
राज्यपाल अपनी पत्नी जानकी शुक्ला के साथ कुल्लू के प्रमुख देवता भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में शामिल हुए। राज्यपाल ने हजारों श्रद्धालुओं के साथ पैदल चलकर भगवान रघुनाथ के दर्शन किए।
इस अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल और हिमाचल प्रदेश के उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री भी उपस्थित थे।
राज्यपाल ने कहा, “यह राज्य के लोगों का सौभाग्य है कि भगवान रघुनाथ जी कुल्लू में विराजमान हैं। उनकी कृपा हम पर बनी रहे और हम इसी तरह अपनी देव संस्कृति को आगे बढ़ाते रहें।”
उन्होंने कहा कि यह महोत्सव पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें नशा मुक्त महोत्सव के लिए भी प्रयास करना चाहिए।
राज्यपाल ने कहा, “मुझे बहुत खुशी और गर्व है कि मैं आज कुल्लू की खूबसूरत घाटी में दशहरा महोत्सव के भव्य अवसर को मनाने के लिए आपके समक्ष खड़ा हूं।”
उन्होंने कहा कि अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत और धर्म की विजय का प्रतीक है। कुल्लू का अनूठा उत्सव न केवल परंपरा के सार को संरक्षित रखा है, बल्कि अपनी भव्यता के लिए अंतर्राष्ट्रीय मान्यता भी प्राप्त की है। साथ ही यह सदियों से हमारी सांस्कृतिक संरचना का अभिन्न अंग रहा है।”
उन्होंने कहा कि यह पवित्र त्यौहार हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है, हमें भगवान राम की रावण पर विजय, राक्षसों के पराभव और धर्म की पुनर्स्थापना की याद दिलाता है। यह हमें सिखाता है कि सत्य, न्याय और सदाचार की हमेशा जीत होती है।
राज्यपाल ने कहा कि भारत के अन्य भागों में जहां यह त्यौहार एक दिन के लिए मनाया जाता है, कुल्लू दशहरा एक सप्ताह तक चलता है। जहां हमारे रीति-रिवाजों, कला और सामुदायिक भावना का शानदार प्रदर्शन देखने को मिलता है।
शुक्ला ने कहा, “देवताओं की शोभायात्रा, जीवंत मेले और सभी क्षेत्रों के लोगों की उत्साहपूर्ण भागीदारी हिमाचल प्रदेश के लोगों के अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के साथ गहरे जुड़ाव को दर्शाती है।”
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश अपनी प्राचीन सुंदरता के लिए जाना जाता है और यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखें तथा अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करें।
पिछले 385 वर्ष से अधिक पुरानी परंपरा के अनुसार, कुल्लू घाटी के प्रमुख देवता भगवान रघुनाथ का रथ दशहरा या विजय दशमी के पहले दिन हजारों श्रद्धालुओं द्वारा सुल्तानपुर स्थित ऐतिहासिक मंदिर से निकाला जाता है। यह वह दिन है जब देश के बाकी हिस्सों में उत्सव समाप्त हो जाता है।
एकत्रित देवता जिनकी संख्या पहले आम तौर पर 250 से ज्यादा होती थी, जुलूस के दौरान मुख्य देवता के साथ होते हैं। वे सभी त्यौहार के समापन तक ढालपुर मैदान में रहते हैं।
यह उत्सव 19 अक्टूबर को ब्यास नदी के तट पर ‘लंका दहन’ अनुष्ठान के साथ संपन्न होगा।
सभी एकत्रित देवता इसमें भाग लेंगे, उसके बाद उन्हें तुरही और ढोल की थाप के बीच एक सुंदर सजी हुई पालकी में वापस उनके मंदिरों में ले जाया जाएगा।
इस त्यौहार की शुरुआत 1637 में हुई थी जब राजा जगत सिंह कुल्लू पर शासन करते थे।
उन्होंने कुल्लू के सभी स्थानीय देवताओं को दशहरा के दौरान भगवान रघुनाथ के सम्मान में एक अनुष्ठान करने के लिए आमंत्रित किया था। तब से सैकड़ों गांव के मंदिरों के देवताओं की वार्षिक सभा एक परंपरा बन गई है।
भारतीय रियासतों के उन्मूलन के बाद से जिला प्रशासन देवताओं को आमंत्रित करता रहा है।
कुल्लू प्रशासन द्वारा संकलित एक संदर्भ पुस्तक के अनुसार, कुल्लू घाटी में 534 ‘जीवित’ देवी-देवता हैं, जिसे देवभूमि या देवताओं की भूमि के रूप में भी जाना जाता है।
–आईएएनएस
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