तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री की रणनीति से गुजराती सिनेमा को सीखने की जरूरत : एक्टर विराज घेलानी

तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री की रणनीति से गुजराती सिनेमा को सीखने की जरूरत : एक्टर विराज घेलानी

मुंबई, 15 जून (आईएएनएस)। कंटेंट क्रिएटर और एक्टर विराज घेलानी ने हाल ही में गुजराती फिल्म ‘झमकुड़ी’ से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। इस फिल्म को लोग काफी पसंद कर रहे हैं। गुजराती सिनेमा के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि आखिर यह अन्य फिल्म इंडस्ट्री की तुलना में ज्यादा पॉपुलर क्यों नहीं है।

आईएएनएस के साथ बात करते हुए विराज ने गुजराती सिनेमा पर चर्चा की। उन्होंने कहा, “यह समृद्ध, जीवंत और संस्कृति से भरपूर है।”

गुजराती थिएटर भारत की थिएटर कल्चर का एक बड़ा हिस्सा है। गुजराती, मराठी, बंगाली थिएटर व्यावहारिक रूप से भारत के थिएटर इकोसिस्टम के स्तंभ हैं। गुजरात देश के सबसे अमीर राज्यों में से एक है, जहां हर कोई निवेश करना चाहता हैं। फिर गुजराती सिनेमा के लिए ऑडियंस इतनी सीमित क्यों है?

जवाब देते हुए विराज ने आईएएनएस से कहा, “जब बात गुजराती सिनेमा की आती है, तो इसमें कुछ फैक्टर काम करते हैं। सबसे पहले, यह विकास के बारे में है। उदाहरण के लिए, तेलुगु सिनेमा ने एक खास जगह बनाने में कामयाबी हासिल की है, बड़ी-से-बड़ी कहानी, बड़े बजट और ढेर सारे फैंस…,दूसरी ओर, गुजराती सिनेमा अभी भी इस तरह के विकास के अपने शुरुआती चरण में है।”

उन्होंने गुजराती सिनेमा में डिस्ट्रीब्यूशन एंड मार्केटिंग सिस्टम की ओर भी इशारा किया, ”तेलुगु सिनेमा ने न केवल भारत में बल्कि ग्लोबल लेवल पर अपनी फिल्मों की मार्केटिंग करने का तरीका सीख लिया है। हमें उस रणनीति से सीखने और अपनी पहुंच बढ़ाने की जरूरत है।”

एक्टर का मानना है कि यह कंटेंट के बारे में भी है।

उन्होंने कहा, ”हमारे पास अविश्वसनीय कहानियां हैं, लेकिन हमें बड़ी संख्या में ऑडियंस को आकर्षित करने के लिए स्टोरीटेलिंग के साथ और ज्यादा एक्सपेरिमेंट करने की जरूरत है। यह धीरे-धीरे हो रहा है। मेरी पहली फिल्म उस दिशा में एक कदम है, और मुझे उम्मीद है कि यह इस बदलाव में योगदान दे सकती है। बहुत जल्द ही गुजराती सिनेमा बड़ी संख्या में ऑडियंस तक अपनी जगह बना लेगी।”

सिनेमा टैलेंट को समझता है और शाहरुख खान इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।

आज, कंटेंट क्रिएटर नए आइडिया और कहानियों को पेश कर सिनेमा का हिस्सा बन रहे हैं। चूंकि वह एक कंटेंट क्रिएटर हैं और ट्रेंड और एनालिटिक्स से वाकिफ हैं, इसलिए उनकी राय में क्रिएटर कम्युनिटी के लिए आगे की राह कैसी दिखती है?

उन्होंने आईएएनएस से कहा, “कंटेंट क्रिएशन से सिनेमा में बदलाव काफी आकर्षक है। कंटेंट क्रिएटर के तौर पर, मुझे ऑडियंस की पसंद को समझने और उस पर प्रतिक्रिया देने का सौभाग्य मिला है, जो एक बहुत बड़ा अचीवमेंट है। क्रिएटर कम्युनिटी के लिए, आगे की राह उम्मीदों से भरी हुई है।”

विराज ने कहा कि डिजिटल मीडिया की खूबसूरती यह है कि यह हमें अलग-अलग फॉर्मेट्स, स्टाइल और नैरेटिव के साथ एक्सपेरिमेंट करने का मौका देता है, इसमें हमें दर्शकों से तुरंत प्रतिक्रिया मिलती है।

उन्होंने आगे कहा, “हम एक यूनिक पोजिशन में हैं जहां हम फिल्म इंडस्ट्री में नई कहानियां ला सकते हैं। ऑडियंस के साथ हमारा गहरा संबंध हमें ऐसी कहानियां गढ़ने में मदद करता है जो व्यक्तिगत स्तर पर गूंजती हैं।”

उन्होंने कहा, “मेरा मानना ​​है कि भविष्य में और भी ज्यादा क्रिएटर्स सिनेमा में कदम रखेंगे। मैं इसका हिस्सा बनकर रोमांचित हूं और यह देखने के लिए एक्साइटेड हूं कि हम सिनेमैटिक लैंडस्केप को कैसे शेप देते हैं।”

‘झमकुड़ी’ लोक कथाओं से प्रेरित है, जिसमें संस्कृतियों, परंपराओं और धर्मों की समृद्ध ताने-बाने और महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्य हैं।

जब उनसे पूछा गया कि क्या लोक कथाओं से प्रेरित कंटेंट एक सेफ आउटलेट है, तो उन्होंने कहा, “ये कहानियां हमेशा लोगों को एक साथ लाती हैं, त्योहारों और साझा विरासत के जरिए हमें एक-दूसरे से जुड़ने में मदद करती हैं। जब मैंने इस फिल्म का हिस्सा बनने का फैसला किया, तो इसकी वजह यह थी कि कहानी में जुड़ाव था और क्रिएटिविटी थी। यह लोगों को एक बड़ा मैसेज देती है।”

उन्होंने आगे कहा, ”मेरा मानना ​​है कि जब कहानी कहने के लिए कल्पना की जाती है, चाहे वह एंटरटेनमेंट के लिए हो या मैसेज देने के लिए, तो यह आम तौर पर अच्छी तरह से प्रतिध्वनित होता है। यही तो फिल्म इंडस्ट्री हमेशा से करता आ रहा है, और मुझे विश्वास है कि यह फिल्म भी लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाएगी।”

–आईएएनएस

पीके/एसकेपी

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