ईवीएम से वोटर लिस्ट तक… राहुल गांधी के आरोपों पर पूर्व सीईसी गोपालस्वामी का करारा पलटवार

नई दिल्ली, 19 सितंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार चुनाव आयोग और मतदाता सूची को लेकर सवाल उठा रहे हैं। वे बार-बार आरोप लगाते रहे हैं कि मतदाता सूची में गड़बड़ी और वोटिंग प्रक्रिया में धांधली की जा रही है और यह सब सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के हित में हो रहा है। इस पूरे विवाद पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी ने विस्तार से अपनी राय रखी है और साफ किया है कि चुनावी प्रक्रिया और मतदाता सूची की गड़बड़ियों को सीधे तौर पर जोड़ना उचित नहीं है।
गोपालस्वामी का कहना है कि इस मुद्दे को दो भागों में देखना चाहिए। पहला है मतदाता सूची में गड़बड़ी और दूसरा है वोटिंग प्रक्रिया में धांधली या वोट की चोरी। इन दोनों का सीधा संबंध नहीं है। मतदाता सूची तैयार करते समय तकनीकी त्रुटियां या नामों का छूटना-छूटना सामान्य प्रक्रिया है, जबकि चुनाव का संचालन एक बिल्कुल अलग चरण है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राजनीतिक दलों को मतदाता सूची की प्रति समय पर उपलब्ध कराई जाती है। उस समय दलों के पास मौका होता है कि वे अपनी आपत्तियां दर्ज कराएं और गड़बड़ियों की ओर चुनाव आयोग का ध्यान दिलाएं। यदि उस समय सुधार की मांग नहीं की जाती, तो चुनाव शुरू होने के बाद उस सूची पर सवाल खड़ा करना उचित नहीं है, क्योंकि चुनाव की घोषणा होते ही सूची फ्रीज कर दी जाती है।
गोपालस्वामी ने कहा कि चुनाव के दौरान यदि धांधली जैसे फर्जी वोटिंग, वोटों की गिनती में गड़बड़ी या अन्य शिकायतें होती हैं तो उन्हें उस स्तर पर उठाया जा सकता है। लेकिन एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद मतदाता सूची की गलतियों पर सवाल उठाना उचित नहीं है। उनके अनुसार, राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग दोनों की एक जिम्मेदारी है कि वे निर्धारित समयसीमा के भीतर अपनी भूमिका निभाएं।
कांग्रेस सरकार के दौर में चुनाव आयोग में हस्तक्षेप के सवाल पर गोपालस्वामी ने उदाहरण देते हुए कहा कि वर्ष 2008 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले गहन पुनरीक्षण किया गया था। उस समय जब चुनाव आयोग ने मतदाता सूची की समीक्षा की तो भारी गड़बड़ियां सामने आईं। लगभग 52 लाख मृतक और स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाए गए, 20 लाख नए नाम जोड़े गए और 10 लाख नामों में सुधार हुआ। इसके बाद पुनः आपत्तियां ली गईं और अंतिम रूप से कुल 54 लाख नाम हटाए गए और 27 लाख नए नाम जोड़े गए। यानी कुल मतदाता संख्या में लगभग 5 प्रतिशत का परिवर्तन हुआ।
गोपालस्वामी ने कहा कि यदि कर्नाटक में इतना बड़ा बदलाव संभव है, तो बिहार में हाल ही में हुआ 65 लाख नामों का विलोपन असामान्य नहीं है। बिहार की कुल मतदाता संख्या लगभग 10 करोड़ है, ऐसे में पलायन और जनसंख्या के गतिशील स्वरूप को देखते हुए, यह बदलाव स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए बाहर जाते हैं, जिसके कारण सूची में नाम हटाने और जोड़ने की संख्या में तेजी से बदलाव हो सकता है।
राहुल गांधी द्वारा यह आरोप लगाने पर कि चुनाव आयोग बीजेपी के पक्ष में काम कर रहा है, गोपालस्वामी ने कहा कि यह पूरी तरह राजनीतिक बयानबाजी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से कहा है कि वे अपने बूथ स्तर अधिकारियों की नियुक्ति करें, जो चुनाव आयोग के बूथ स्तर अधिकारियों के साथ मिलकर काम करें। इसका उद्देश्य यही है कि पारदर्शिता बनी रहे और यदि आयोग का कोई अधिकारी गड़बड़ी करता है तो राजनीतिक दलों के बूथ स्तर अधिकारी तुरंत उस पर नजर रखें।
गोपालस्वामी ने मतदाता सूची में लगातार बदलाव को लेकर कहा कि यह समस्या एक तेजी से बदलते देश में हमेशा रहेगी, क्योंकि शहरीकरण, पलायन और जनसंख्या की गतिशीलता के कारण हर वर्ष बदलाव होते रहते हैं। इसलिए इसे लेकर राजनीतिक विवाद खड़ा करना व्यर्थ है। उन्होंने कहा कि बिना सबूत के आरोप लगाना लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया की साख को नुकसान पहुंचा सकता है।
–आईएएनएस
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