दलितों के नेता कांशीराम, जिन्होंने 'चमचा युग' किताब लिखकर खोल दी थी राजनेताओं की पोल


नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। 80 के दशक में एक किताब बाजार में आई, जिसने न केवल भारतीय राजनीति में दलितों के पहलुओं पर बात की, बल्कि कई दलित नेताओं की पोल को भी खोलकर रख दिया। इस किताब में जिस शब्द का सबसे अधिक बार इस्तेमाल किया गया वह था ‘चमचा’, किताब का नाम था ‘चमचा युग’ और इसे लिखा था बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम ने।

बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक और समाज सुधारक कांशीराम की 9 अक्टूबर को पुण्यतिथि है। आइए जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ अनसुने पहलुओं के बारे में।

कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले में हुआ था। बताया जाता है कि कांशीराम जब पुणे की गोला बारूद फैक्ट्री में नियुक्त हुए थे, तो उस दौरान उन्हें पहली बार जातिगत आधार पर भेदभाव झेलना पड़ा। इस घटना का उनके जीवन पर गहरा असर पड़ा और उन्होंने साल 1964 में दलितों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी। वह बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की किताब “एनीहिलिएशन ऑफ कास्ट” से काफी प्रभावित हुए। शुरुआत में तो उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) का समर्थन किया, मगर बाद में इससे उनका मोहभंग हो गया।

साल 1971 में उन्होंने अखिल भारतीय एससी, एसटी-ओबीसी और अल्पसंख्यक कर्मचारी संघ की स्थापना की। साल 1978 में यह बामसेफ बन गया, इसका उद्देश्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों और अल्पसंख्यकों के शिक्षित करना था। हालांकि, पार्टी की स्थापना से पहले ही उनकी किताब ‘चमचा युग’ ने काफी सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने इस किताब में कई बड़े दलित नेताओं को चमचा बताया। उन्होंने तर्क दिया कि दलितों को अन्य दलों के साथ काम करके अपनी विचारधारा से समझौता करने के बजाय अपने स्वयं के समाज के विकास को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक रूप से काम करना चाहिए।

उन्होंने 1984 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नींव रखी। उन्होंने अपना पहला चुनाव साल 1984 में छत्तीसगढ़ की जांजगीर-चांपा सीट से लड़ा था। लेकिन, बसपा को बड़ी सफलता उत्तर प्रदेश में मिली। साल 1991 के आम चुनाव में कांशीराम और मुलायम सिंह ने गठबंधन किया और कांशीराम ने इटावा से चुनाव लड़ा और बड़ी जीत दर्ज की।

इसके बाद कांशीराम ने 1996 में होशियारपुर से 11वीं लोकसभा का चुनाव जीता और दूसरी बार लोकसभा पहुंचे। कांशीराम ही थे, जिन्होंने मायावती को राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए साल 2001 में मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। उत्तर प्रदेश में जितनी बार भी बसपा की सरकार बनी, उन्होंने खुद को आगे बढ़ाने के बजाए मायावती को ही आगे किया।

कांशीराम को बहुजन नायक, मान्यवर या साहेब जैसे कई नामों से जाना गया। 20 सदी के अंतिम दशक में कांशीराम भारतीय राष्ट्रीय राजनीति में एक ऐसा चमकता हुआ सितारा बन गए, जिन्होंने दलित समाज के हित में काम करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने मायावती को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवाया, मगर खुद कभी कोई पद नहीं लिया। दलितों के नायक कांशीराम ने 9 अक्टूबर 2006 को इस संसार को अलविदा कह दिया।

–आईएएनएस

एफएम/सीबीटी


Show More
Back to top button