भारत में 62 फीसदी मुंह के कैंसर की वजह शराब और धुआं रहित तंबाकू का सेवन: अध्ययन


नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत में मुंह के कैंसर की बड़ी वजह शराब के साथ धुआं रहित तंबाकू उत्पादों का सेवन है। बुधवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया। स्टडी के अनुसार, भारत के 10 में से छह से ज्यादा लोग स्थानीय स्तर पर बनी शराब के साथ ही गुटखा, खैनी और पान जैसे धुआं रहित तंबाकू उत्पादों का सेवन करने के कारण मुंह के कैंसर से पीड़ित हैं।

महाराष्ट्र में सेंटर फॉर कैंसर एपिडेमियोलॉजी और होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि दिन में 2 ग्राम से कम बीयर पीने से बक्कल म्यूकोसा कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, जबकि दिन में 9 ग्राम शराब—जो लगभग एक मानक ड्रिंक के बराबर है—से मुंह के कैंसर का खतरा लगभग 50 प्रतिशत बढ़ जाता है।

जब इसे चबाने वाले तंबाकू के साथ मिलाया जाता है, तो यह देश में ऐसे सभी मामलों में से 62 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हो सकता है।

ओपन-एक्सेस जर्नल बीएमजे ग्लोबल हेल्थ में विस्तार से बताए गए निष्कर्षों से पता चलता है कि भारत में सभी बक्कल म्यूकोसा कैंसर के 10 में से एक से ज्यादा मामले (लगभग 11.5 प्रतिशत) शराब के कारण होते हैं। मेघालय, असम और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में इसके मरीजों की संख्या ज्यादा है। कहीं-कहीं तो इसकी दर 14 प्रतिशत तक है।

ग्रेस सारा जॉर्ज के नेतृत्व वाली रिसर्च टीम ने बताया, “भले ही तंबाकू का इस्तेमाल लंबे समय से किया जाता रहा हो, लेकिन मुंह के कैंसर को बढ़ाने में शराब बड़ा कारक है। दरअसल, इथेनॉल मुंह की अंदरूनी परत में मौजूद फैट को प्रभावित कर सकता है; ये परत कमजोर हो जाती है, और नतीजतन ये तंबाकू उत्पादों में मौजूद अन्य कार्सिनोजेन के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाती है।”

उन्होंने कहा, “स्थानीय रूप से बनी शराब में मेथनॉल और एसीटैल्डिहाइड जैसे टॉक्सिन की मिलावट ज्यादा पाई जाती है, जो इन ड्रिंक्स को ज्यादा खतरनाक बनाती है।”

मुंह का कैंसर भारत में दूसरा सबसे आम कैंसर है, जिसमें एक अनुमान के अनुसार हर साल 143,759 नए मामले सामने आते हैं और 79,979 लोगों की मौत होती है। शोधकर्ताओं के अनुसार इस बीमारी की दर लगातार बढ़ रही है, और हर 100,000 भारतीय पुरुषों में से लगभग 15 इससे जूझ रहे हैं।

भारत में मुंह के कैंसर का मुख्य रूप गालों और होठों की मुलायम गुलाबी परत (बक्कल म्यूकोसा) का कैंसर है। पीड़ितों में से आधे से भी कम (43 प्रतिशत) पांच या उससे ज्यादा साल तक जीवित रहते हैं।

अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने 2010 और 2021 के बीच पांच अलग-अलग अध्ययन केंद्रों से बक्कल म्यूकोसा कैंसर से पीड़ित 1,803 लोगों और बीमारी से मुक्त 1,903 यादृच्छिक रूप से चुने गए लोगों (कंट्रोल) की तुलना की। अधिकांश प्रतिभागियों की उम्र 35 से 54 वर्ष के बीच थी; लगभग आधे (लगभग 46 प्रतिशत) मामले 25 से 45 साल के लोगों में थे।

जो लोग शराब नहीं पीते थे, उनकी तुलना में शराब पीने वालों में खतरा 68 प्रतिशत ज्यादा था। बीयर, व्हिस्की, वोदका, रम और ब्रीजर (फ्लेवर्ड अल्कोहलिक ड्रिंक्स) जैसे अंतरराष्ट्रीय ब्रांड की शराब पीने वालों में इसकी दर 72 प्रतिशत थी, तो अपोंग, बांग्ला, चुल्ली, देसी दारू और महुआ जैसे स्थानीय रूप से बनी शराब पीने वालों में इसकी दर 87 फीसदी थी।

टीम ने कहा, “हमारे अध्ययन से पता चलता है कि मुंह के कैंसर से बचने के लिए शराब पीने की कोई सुरक्षित सीमा नहीं है। हमारे नतीजे बताते हैं कि शराब और तंबाकू के इस्तेमाल की रोकथाम के लिए पब्लिक हेल्थ एक्शन लेने की जरूरत है; इससे ही बक्कल म्यूकोसा कैंसर पर लगाम लगाई जा सकती है।”

–आईएएनएस

केआर/


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