जन्मदिन विशेष : क्रांतिकारी गणेश दामोदर सावरकर, स्वतंत्रता सेनानी जिनका नाम गुमनाम हो गया


नई दिल्ली, 12 जून (आईएएनएस)। 13 जून की तारीख से भारतीय इतिहास का एक अनकहा और अनछुआ अध्याय जुड़ा है। इसी दिन साल 1879 में महाराष्ट्र के नासिक जिले के पास भागपुर गांव में एक ब्राह्मण परिवार में एक ऐसे क्रांतिकारी का जन्म हुआ, जिसने देश की आजादी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, लेकिन गुमनाम उनके साथ साये की तरह रही। यह नाम था गणेश दामोदर सावरकर, जिन्हें लोग बाबाराव सावरकर के नाम से भी जानते हैं।

जब कभी स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है, तो वीर सावरकर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। बहुत कम लोग उनके उस बड़े भाई को जानते हैं जिन्होंने देश के लिए आपना जीवन समर्पित करने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।

बाबाराव सावरकर को आरएसएस के पांच संस्थापकों में से एक माना जाता है, लेकिन उनके योगदान को इतिहास ने वह स्थान नहीं दिया, जिसके वह हकदार थे। गणेश दामोदर सावरकर का बचपन मुश्किलों भरा था। पहले मां का निधन और फिर प्लेग महामारी में पिता का साया भी सिर से उठ गया। उस समय बाबाराव की उम्र सिर्फ 20 साल थी और घर में दो छोटे भाई, विनायक (वीर सावरकर), नारायण और एक बहन की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। वह पढ़ाई में अव्वल थे, लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों के चलते अपनी शिक्षा का उन्हें त्याग करना पड़ा।

धर्म, योग और जप-तप में रुचि रखने वाले बाबाराव सिर्फ साधु प्रवृत्ति के नहीं थे, उनमें क्रांति की भी आग थी। 1904 में उन्होंने अभिनव भारत सोसायटी की स्थापना की, यह वह संगठन था जिसने भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की नींव रखी। यह संगठन आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों का प्रमुख मंच बना।

साल 1909 में अंग्रेजों ने बाबाराव को गिरफ्तार किया और देशद्रोह के आरोप में मुकदमा चलाया गया। उन्हें काला पानी की सजा सुनाई गई और 20 वर्षों तक अंडमान की सेल्युलर जेल में बंद रखा गया। इन कठोर सजा के सालों में भी उनका जज़्बा नहीं टूटा। 1921 में उन्हें अंडमान से गुजरात की साबरमती जेल लाया गया, जहां वे एक साल तक बंद रहे। बाद में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया, लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई को नहीं छोड़ा। बाबाराव न केवल क्रांतिकारी थे, बल्कि एक बेहतर लेखक भी थे। उन्होंने ‘इंडिया एज ए नेशन’ नाम से एक किताब लिखी, जिसमें भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया गया था। अंग्रेजी सरकार को यह नागवार गुज़रा और इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

जेल से रिहा होने के बाद बाबाराव का संपर्क डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से हुआ। यही वह समय था जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की रूपरेखा तैयार हो रही थी। बाबाराव ने इस विचारधारा में गहरा विश्वास जताया और संस्थापक सदस्य के रूप में संगठन को दिशा दी।

–आईएएनएस

पीएसके/जीकेटी


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