भारतीय वैज्ञानिकों की बड़ी उपल्बधि, एआई मॉडल के जरिए बताया कैसे एच5एन1 इंसानों पर करता है 'अटैक'


नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। बर्ड फ्लू वायरस एच5एन1 खुद को समय के अनुसार तेजी से बदल रहा है। उसकी ये ‘एडेप्टेबिलिटी’ इंसानों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर रही है। भारतीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित एक मॉडल का इस्तेमाल कर ये बताया है कि कैसे ये इंसानों पर अटैक करता चलता है।

बीएमसी पब्लिक हेल्थ जर्नल में पब्लिश स्टडी में इसका पूरा ब्योरा है। टीम ने भारतसिम (संक्रामक रोगों के लिए एक अल्ट्रा-लार्ज-स्केल एजेंट-आधारित सिमुलेशन फ्रेमवर्क, जिसे असल में कोविड-19 मॉडलिंग के लिए बनाया गया था) का एक जूनोटिक स्पिलओवर (वह प्रक्रिया जब कोई रोग जानवरों से इंसानों में फैलता है) के क्रमबद्ध चरणों का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया।

हरियाणा में अशोका यूनिवर्सिटी के भौतिक विज्ञान विभाग के फिलिप चेरियन और गौतम आई. मेनन ने पेपर में कहा, “हमने पक्षियों से इंसानों में एच5एन1 के शुरुआती स्पिलओवर (प्रसार) इवेंट्स की संभावना का मॉडल बनाया, जिसके बाद इंसान से इंसान में ट्रांसमिशन को परखा।”

उन्होंने आगे कहा, “हमारा मॉडल आउटब्रेक शुरू होने के दो-चरण वाले नेचर को बताता है; यह दिखाता है कि ट्रांसमिशन को कंट्रोल करने वाले जरूरी एपिडेमियोलॉजिकल पैरामीटर्स को शुरुआती समय में प्राइमरी और सेकेंडरी मामलों की संख्या के वितरण के डेटा को देखते हुए कैसे कैलिब्रेट (सटीकता के लिए पहले ही मापना) किया जा सकता है।”

एवियन फ्लू, जो पहली बार 1990 के दशक के आखिर में चीन में सामने आया था, तब से कभी-कभी इंसानों को इन्फेक्ट करता रहा है।

चूंकि दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते पोल्ट्री बाजार हैं, इसलिए इस क्षेत्र में शुरुआती आउटब्रेक होने की सबसे ज्यादा आशंका रहती है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) ने 2003 और अगस्त 2025 के बीच 25 देशों में 990 एच5एन1 मामले ऐसे रिपोर्ट किए जो इंसानों से फैले थे। इसकी वजह से 475 लोगों ने दम तोड़ा और मृत्यु दर 48 प्रतिशत रही।

कम्प्यूटेशनल मॉडल से पता चला कि एच5एन1 आउटब्रेक को रोकने के लिए पक्षियों को मारना सबसे असरदार उपाय है, चाहे वह फार्म में आउटब्रेक हो या वेट मार्केट में। हालांकि, यह तभी काम करेगा जब कोई प्राइमरी इन्फेक्शन न हुआ हो।

विशेषज्ञों ने कहा, “टर्शियरी अटैक रिस्क (संक्रमित शख्स से किसी तीसरे शख्स में प्रसार) पर अपनी स्टडी में, हमने पाया कि अगर प्राइमरी केस में संक्रमण होता भी है और अगर ऐसे लोगों को सबसे अलग रखा जाए या फिर उनके घर वालों को क्वारंटाइन किया जाए, तो आगे के इन्फेक्शन सीमित रहते हैं । हालांकि, एक बार जब टर्शियरी कॉन्टैक्ट्स इन्फेक्ट हो जाते हैं, तो कंट्रोल करना नामुमकिन हो जाता है, जब तक कि बहुत ज्यादा सख्त उपाय न अपनाए जाएं, जिसमें पूर्ण लॉकडाउन भी शामिल है।”

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आउटब्रेक के शुरुआती चरणों में ही कंट्रोल के उपाय सबसे ज्यादा फर्क डालते हैं।

रिसर्चर्स ने आगे कहा, “एक बार जब संक्रमण फैल जाता है, तो लॉकडाउन, अनिवार्य मास्किंग और बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन ड्राइव जैसे पब्लिक हेल्थ उपाय ही एकमात्र विकल्प बचते हैं।”

–आईएएनएस

केआर/


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