सेना कमांडर ने उल्फा-आई प्रमुख परेश बरुआ से असम लौटने का आग्रह किया

सेना कमांडर ने उल्फा-आई प्रमुख परेश बरुआ से असम लौटने का आग्रह किया

कोलकाता, 27 दिसंबर (आईएएनएस)। भारतीय सेना की पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (जीओसी-इन-सी) लेफ्टिनेंट जनरल आर.पी. कलिता ने बुधवार को प्रतिबंधित संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम-इंडिपेंडेंट (उल्फा-आई) के प्रमुख परेश बरुआ से असम लौटने और पूर्वोत्तर राज्य में हुए विकास का लाभ उठाने का आग्रह किया।

लेफ्टिनेंट जनरल कलिता ने उल्फा की गतिविधियों पर एक सवाल के जवाब में कहा, “मैं परेश बरुआ और उनके जैसे अन्य लोगों से असम लौटने और विकास का आनंद लेने, राज्य में हो रही समृद्धि में भाग लेने का आग्रह करना चाहूंगा।”

उन्‍होंने कहा, “असम के अधिकांश हिस्सों में शांति लौट आई है। राज्य बुनियादी ढांचे और अन्य क्षेत्रों में बहुत विकास का गवाह है। आज, ऊपरी असम के केवल चार जिलों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) बरकरार है। मुझे मीडिया के जरिए पता चला है कि उल्फा के वार्ता समर्थक समूहों की एक टीम, जिसका नेतृत्व अनूप सैकिया कर रहे हैं, बातचीत के लिए दिल्ली जा रही है।”

सेना कमांडर ने बुधवार को मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, “उल्फा-आई मूल संगठन का अवशेष है और इसकी क्षमता सीमित है। यह केवल छिटपुट हिंसा का कारण बन सकता है और जबरन वसूली का सहारा ले सकता है। इसके सदस्य यहां-वहां कुछ हथगोले फेंक सकते हैं, लेकिन असम में शांति भंग नहीं कर सकते। इसलिए, मैं परेश बरुआ और सीमा के दूसरी ओर मौजूद अन्य लोगों से वापस लौटने का आग्रह करता हूं।” उन्होंने मणिपुर में उग्रवादी संगठनों द्वारा संबंधित समुदायों के भीतर प्रासंगिकता हासिल करने के प्रयासों पर भी प्रकाश डाला।

लेफ्टिनेंट जनरल कलिता ने कहा, “यह गंभीर चिंता का विषय है।”

सेना कमांडर ने म्यांमार से लगातार घुसपैठ, तस्करी और हथियारों की आमद पर भी बात की।

उन्‍होंने कहा, “कुकी विद्रोही संगठन सुरक्षा बलों के साथ संघर्ष विराम समझौते में हैं और मणिपुर की पहाड़ियों में अपने शिविरों तक ही सीमित हैं। ये मैतेई समुदाय के भीतर अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं और इसके कुछ सदस्‍य म्यांमार में शिविरों में रह रहे हैं।”

लेफ्टिनेंट जनरल कलिता कहा, “3 मई को राज्य में हिंसा भड़कने के बाद विद्रोही खुद को अपने-अपने समुदायों के रक्षक के रूप में पेश करना चाहते थे। इनका उद्देश्य अपने समुदायों के भीतर प्रासंगिकता हासिल करना था। उनके हाथों में हथियार थे, जो या तो शस्त्रागार से लूटे गए थे या म्यांमार से तस्करी करके लाए गए थे। अब हथियार बरामद करने के प्रयास जारी हैं और पिछले कई महीनों में कुछ सफलता मिली है। अगर किसी भी समाज में इतने सारे हथियार गलत हाथों में चले गए तो शांति नष्ट हो जाएगी।”

म्यांमार से घुसपैठ के मुद्दे पर सेना कमांडर ने कहा, “जब भी म्यांमार में कोई अशांति हुई है, उस देश से लोगों की भारत में आमद हुई है और वे तस्करी और हथियार लेकर आए हैं। नवीनतम प्रवृत्ति 2021 में म्यांमार में तख्तापलट के बाद शुरू हुई। ज्यादातर घुसपैठ मिजोरम में हुई, लेकिन कुछ लोग दक्षिण मणिपुर की सीमाओं से प्रवेश कर जाते थे। हाल ही में म्यांमार सेना और उस देश में विरोधी ताकतों के बीच संघर्ष के बाद हमने सीमाओं पर कुछ घुसपैठ देखी है उत्तरी मणिपुर में, विशेषकर उखरुल जिले में।”

–आईएएनएस

एसजीके

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