यूपीए के उतार-चढ़ाव के दौर से बाहर निकला कृषि क्षेत्र, तेजी से हो रहा विकास: बीजेपी फैक्टशीट


नई दिल्ली, 9 फरवरी (आईएएनएस)। कृषि क्षेत्र के प्रदर्शन पर कांग्रेस के दावों की पोल खोलते हुए भाजपा ने अपनी फैक्टशीट में कहा कि सरकार की ओर से बजटीय सपोर्ट दिए जाने के कारण हाल के वर्षों में कृषि क्षेत्र की विकास दर मजबूत रही है।

फैक्टशीट में कहा गया कि यूपीए का 2004 से लेकर 2014 का कार्यकाल उतार-चढ़ाव वाला था। 2005-06 में कृषि और उससे जुड़े हुए सेक्टर की विकास दर 5.1 प्रतिशत थी, लेकिन 2008-09 में इसमें गिरावट आई, जो दिखाता है कि कांग्रेस अपने कृषि सुधारों में बुरी तरफ विफल रही है।

फैक्टशीट में आगे बताया गया कि एनडीए के तहत कृषि क्षेत्र के विकासहीन रहने का कोई भी दावा पूरी तरह से गलत है, क्योंकि भारत के कृषि क्षेत्र ने हाल के वर्षों में मजबूत वृद्धि प्रदर्शित की है। वित्त वर्ष 17 से वित्त वर्ष 23 तक 5 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि हुई है। इसके अलावा 2024-25 की पहली और दूसरी तिमाही में कृषि क्षेत्र में 2 प्रतिशत और 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई, जो इस क्षेत्र में मजबूत वृद्धि का संकेत देता है।

पिछले एक दशक में कृषि आय में 5.23 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि के साथ किसानों की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है। महामारी के दौरान रोजगार दर में एकबार गिरावट के बावजूद, एनडीए सरकार ने एक मजबूत सुधार किए हैं, जिसके कारण बेरोजगारी दर अब गिरकर 3.2 प्रतिशत हो गई है, जो महामारी-पूर्व के स्तर 6 प्रतिशत से भी काफी नीचे है।

फैक्टशीट के मुताबिक, जहां कांग्रेस ने किसानों को धोखा दिया, वहीं, एनडीए यह सुनिश्चित कर रहा है कि एमएसपी नियमित रूप से उत्पादन की औसत लागत का 1.5 गुना हो।

पीएम किसान योजना ने 2019 और 2024 के बीच 11 करोड़ अन्नदाताओं को लाभान्वित किया है, जिसमें डीबीटी (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) के माध्यम से 3.45 लाख करोड़ रुपये से अधिक का वितरण किया गया है। पिछले एक दशक में किसानों की क्रय क्षमता में मजबूत वृद्धि हुई है। 2013-14 में भारत में कुल कृषि ऋण सिर्फ 7.3 लाख करोड़ रुपये था। एक दशक से भी कम समय में यह 2023-24 में तीन गुना से अधिक बढ़कर 25.48 लाख करोड़ रुपये हो गया है।

एनडीए द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड योजना को और अधिक बड़ा बनाया गया है और 2018-19 में इसमें पशुपालन और मत्स्य पालन क्षेत्रों को जोड़ा गया, जो पहले यूपीए के तहत नहीं था।

फैक्टशीट में उपभोग व्यय के मामले में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच कम होते अंतर पर भी प्रकाश डाला गया है।

राष्ट्रीय स्तर पर मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (एमपीसीई) में शहरी-ग्रामीण अंतर 2011-12 में 84 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 71 प्रतिशत हो गया है और 2023-24 में यह और भी कम होकर 70 प्रतिशत हो गया है। विभिन्न सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से परिवारों को मुफ्त में प्राप्त वस्तुओं के मूल्यों को शामिल किए बिना 2023-24 में ग्रामीण और शहरी भारत में औसत एमपीसीई क्रमशः 4,122 रुपये और 6,996 रुपये होने का अनुमान लगाया गया है।

–आईएएनएस

एबीएस/


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