नई दिल्ली : अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला में 10 साल बाद डिफेंस पवेलियन, झारखंड की विशेष प्रदर्शनी आकर्षण का मुख्य केंद्र


नई दिल्ली, 20 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली में चल रहे 44वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में इस बार 10 साल बाद डिफेंस पवेलियन का आयोजन किया गया, जो दर्शकों के लिए खास आकर्षण का केंद्र बना है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में पवेलियन में भारतीय रक्षा उद्योग के विविध आयामों का प्रदर्शन किया गया है, जिसमें आधुनिक हथियारों, मशीन गन, पनडुब्बी मॉडल, ड्रोन और रॉकेट लॉन्चर जैसे अत्याधुनिक उपकरण प्रदर्शित किए गए हैं। इसके साथ ही ऑपरेशन सिंदूर में उपयोग किए गए हथियारों की झलक भी लोगों को देखने को मिली। कई दर्शकों ने इस पवेलियन को देश की रक्षा क्षमताओं को करीब से जानने का बेहतरीन अवसर बताया।

वहीं, झारखंड पवेलियन ने भी इस वर्ष खास चर्चा बटोरी है। यहां वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग ने राज्य की हरित अर्थव्यवस्था और सतत विकास की दिशा में किए गए प्रयासों को प्रदर्शित किया। सिसल (एगेव) पौधों पर आधारित उत्पादों और नवाचारों का प्रदर्शन झारखंड की उभरती संभावनाओं को उजागर कर रहा है। सिसल का उपयोग रस्सी, बैग, मैट और हैंडक्राफ्ट उत्पादों के निर्माण में होता है, साथ ही इससे बायो-एथेनॉल और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं।

झारखंड पवेलियन में राज्य की समृद्ध हस्तशिल्प परंपरा का भी अद्भुत प्रदर्शन किया गया। स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए ईको-फ्रेंडली जूट उत्पाद, जैसे बैग, गृह सज्जा सामग्री और हस्तनिर्मित उपयोगी वस्तुएं, झारखंड की कला और ग्रामीण कारीगरी की पहचान पेश कर रही हैं। इन उत्पादों ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में नए अवसरों का द्वार खोला है।

इसके साथ ही, पवेलियन में रेशम निर्माण की प्रक्रिया भी दर्शाई गई। इस बार के मेले में झारखंड ने न केवल अपनी सांस्कृतिक धरोहर, बल्कि हरित विकास और पर्यावरणीय पहल पर भी जोर दिया है।

रेशम बनाने वाले व्यापारी उदय कृष्ण ने आईएएनएस से बात करते हुए बताया कि मैं झारखंड से आया हूं। रेशम के चार प्रकार हैं, लेकिन हम लोगों ने दो ही लाए हैं। इसको तैयार करने में कम से कम 35 दिन का समय लगता है। खास बात तो यह है कि इसे साल में दो से तीन बार तैयार किया जाता है।

उन्होंने बताया कि एक तितली का अंडा देने के बाद उसमें 10 दिन के बाद रेशम के कीड़े विकसित होते हैं, जो 35 दिन तक पत्तियां खाते हैं। इसके बाद रेशम का निर्माण किया जाता है और 1 किलो रेशम बनाने में लगभग 1,500 रुपए का खर्च आता है।

मेले में आए पर्यटकों ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि हमें यहां आने पर बहुत अच्छा लग रहा है। काफी समय के बाद इसका आयोजन होता है। हमें लोगों ने बताया था कि इसीलिए हम देखने के लिए आए थे, हमें गर्व करना चाहिए और यहां से सीख लेकर जाना चाहिए।

–आईएएनएस

एसएके/एबीएम


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