आईआईटी कानपुर के निदेशक बने प्रो. मणींद्र अग्रवाल

आईआईटी कानपुर के निदेशक बने प्रो. मणींद्र अग्रवाल

प्रो. मणींद्र अग्रवाल के खाते में कई उपलब्धियां दर्ज हैं। उन्होंने गणित के प्राइम अंकों की परेशानी को दूर करने के लिए एल्गोरिदम की खोज की थी। प्रो. अग्रवाल ने क्लाउड सीडिंग की भी तकनीक विकसित की है। इसकी मदद से आर्टिफिशियल बारिश कराई जा सकती है।

अपने गणितीय मॉडल ‘सूत्र’ से कोरोना की लहर और संक्रमितों की संख्या की सटीक जानकारी देने वाले आईआईटी कानपुर के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और कंप्यूटर लैब सी3आई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर पद्मश्री प्रो. मणींद्र अग्रवाल को संस्थान का नया निदेशक बनाया गया है। गुरुवार को राष्ट्रपति के निर्देश पर शिक्षा मंत्रालय की ओर से इस संबंध में आदेश जारी किया गया है। प्रो. अग्रवाल पांच साल तक निदेशक पद पर कार्यरत रहेंगे।

विशेष बात है कि आईआईटी कानपुर से बीटेक और पीएचडी करने के बाद प्रो. मणींद्र संस्थान में पहले प्रोफेसर और फिर निदेशक बने हैं। इससे पहले प्रो. अभय करंदीकर निदेशक के पद पर तैनात थे। उनको डीएसटी का सचिव बनाए जाने के बाद कार्यकारी निदेशक के रूप में प्रो. एस गणेश कार्यभार संभाल रहे थे। 20 मई 1966 को प्रयागराज में जन्मे प्रोफेसर अग्रवाल ने 1986 में बीटेक और 1991 में पीएचडी की।

इसके बाद आईआईटी कानपुर में कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग में फैकल्टी के रूप में नियुक्त हुए। वह संस्थान के डिप्टी डायरेक्टर भी रह चुके हैं। प्रो. अग्रवाल के गणितीय मॉडल की मदद से कोरोना काल में कोविड की लहर के उतार व चढ़ाव की भविष्यवाणी की गई थी। उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए कई रणनीति बनाई थी।

एल्गोरिदम की खोज की, विकसित की ब्लॉकचेन
प्रो. मणींद्र अग्रवाल के खाते में कई उपलब्धियां दर्ज हैं। उन्होंने गणित के प्राइम अंकों की परेशानी को दूर करने के लिए एल्गोरिदम की खोज की थी। आठ अगस्त 2002 को उनकी इस खोज कर जिक्र न्यूयार्क टाइम्स के पहले पन्ने पर हुआ था। प्रो. अग्रवाल की विकसित ब्लॉकचेन तकनीक की मदद से क्रिप्टो करेंसी, सरकारी दस्तावेज आदि को छेड़छाड़ या भ्रष्टाचार से सुरक्षित रखा जा सकता है। प्रो. अग्रवाल ने क्लाउड सीडिंग की भी तकनीक विकसित की है। इसकी मदद से आर्टिफिशियल बारिश कराई जा सकती है।

प्रो. अग्रवाल की देखरेख में 50 से अधिक स्टार्टअप कर रहे रिसर्च
प्रो. अग्रवाल की देखरेख में साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में 50 से अधिक स्टार्टअप रिसर्च कर रहे हैं। ये स्टार्टअप देश के क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे पावर हाउस, वाटर हाउस, रिफाइनरी, एयरपोर्ट सहित अन्य बड़ी कंपनियों को साइबर हमलों से सुरक्षित रखने के लिए तकनीक व डिवाइस विकसित कर रहे हैं। स्वास्थ्य, डिफेंस, कृषि आदि क्षेत्र में भी साइबर सुरक्षा को लेकर तकनीक विकसित कर रहे हैं।

इन पुरस्कार से हो चुके हैं सम्मानित
2002 – क्ले रिसर्च अवार्ड
2003 – आईसीटीपी पुरस्कार
2003 – गणितीय विज्ञान में एसएस भटनागर पुरस्कार
2006 – फुलकर्सन पुरस्कार
2006 – गोडेल पुरस्कार
2008 – इन्फोसिस पुरस्कार
2009 – वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए जीडी बिड़ला पुरस्कार
2010 – गणित में टीडब्ल्यूएएस पुरस्कार
2013 – पद्मश्री
2017 – गोयल पुरस्कार

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