नई दिल्ली, 28 जनवरी (आईएएनएस)। वर्तमान दौर में तकनीकी प्रगति हमारे दैनिक जीवन को आकार देती है। ऐसे में धोखाधड़ी और गड़बड़ियों का प्रसार एक परेशान करने वाली वास्तविकता बन गया है। अत्याधुनिक उपकरणों से लैस साइबर अपराधी दुनिया भर में कानून प्रवर्तन एजेंसियों (एलईए) के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गए हैं।
सेक्सटॉर्शन, क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी, अवैध डिजिटल ऋण कॉल, आयकर रिफंड सेवा धोखाधड़ी, रियल एस्टेट धोखाधड़ी, निवेश घोटाले, पोंजी योजनाएं ऑनलाइन, गलत पहचान, पिग बुचड़ धोखाधड़ी और नौकरी घोटाले सहित साइबर अपराध के विभिन्न रूप व्यापक खतरे बन गए हैं।
एक और, साइबर किडनैपिंग एक हालिया और विशेष रूप से परेशान करने वाला ट्रेंड, चिंता का एक गंभीर कारण बनकर उभर रहा है। हालांकि, अभी तक यह भारत में प्रचलित नहीं है।
हाल के महीनों में, साइबर किडनैपिंग की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि ने दुनिया भर में लोगों, व्यवसायों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच चिंता बढ़ा दी है। जैसे-जैसे डिजिटल लैंडस्केप विकसित होता है, वैसे-वैसे साइबर अपराधियों द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीतियां भी बढ़ती हैं। जिससे वर्चुअल किडनैपिंग अपहरण में वृद्धि होती है जो ऑनलाइन सुरक्षा में कमजोरियों का फायदा उठाते हैं।
साइबर किडनैपिंग को वर्चुअल किडनैपिंग या ई-किडनैपिंग के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें वित्तीय लाभ के लिए लोगों को लक्षित करने के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल शामिल है। पारंपरिक अपहरणों (किडनैपिंग) के विपरीत जहां शारीरिक किडनैपिंग होती है, वहीं साइबर किडनैपिंग पीड़ितों से पैसे या संवेदनशील जानकारी निकालने के लिए डिजिटल साधनों का लाभ उठाते हैं।
अपराधी अक्सर संदिग्ध लोगों और संगठनों का शोषण करने के लिए रैंसमवेयर हमले, फ़िशिंग और सोशल इंजीनियरिंग जैसी रणनीति अपनाते हैं।
सबसे आम तरीकों में से एक में अपराधियों को विभिन्न माध्यमों से पते, पारिवारिक विवरण या कार्यस्थल की जानकारी जैसी व्यक्तिगत जानकारी तक पहुंच प्राप्त करना भी इसमें शामिल है। इसके बाद, वे परिवार के किसी सदस्य या प्रियजन के अपहरण का दावा कर पीड़ितों में डर पैदा करने के लिए इस जानकारी का उपयोग करते हैं।
फिर धमकियां दी जाती हैं। कथित पीड़ित की सुरक्षा के बदले में फिरौती की मांग की जाती है। कानून प्रवर्तन एजेंसियों और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने इन घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है। महामारी के कारण लोगों द्वारा ऑनलाइन अधिक समय बिताने की संभावना बढ़ गई है।
रिमोट कार्य ट्रेंड, डिजिटल संचार पर बढ़ती निर्भरता और ऑनलाइन गतिविधियों में वृद्धि ने साइबर अपराधियों को बिना सोचे-समझे पीड़ितों का शोषण करने के अधिक अवसर दिए हैं।
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि साइबर किडनैपिंग के परिणाम भावनात्मक और आर्थिक रूप से गंभीर हो सकते हैं। पीड़ित अपने प्रियजनों की सुरक्षा के लिए चिंता, तनाव और भय से पीड़ित हो सकते हैं। वित्तीय नुकसान भी काफी हो सकता है। दरअसल कुछ लोग, अपने परिवार के सदस्यों की सुरक्षा के डर से, जबरन वसूली की मांगों के आगे झुक सकते हैं और मांगी गई फिरौती का भुगतान कर सकते हैं।
विशेषज्ञ साइबर किडनैपिंग के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए मजबूत पासवर्ड मैनेजमेंट, मल्टी-फेक्टर ऑथेंटिकेशन और रेगुलर सॉफ्टवेयर अपडेट सहित साइबर सुरक्षा उपायों को बढ़ाने के महत्व पर जोर देते हैं।
पिछले महीने, अमेरिका के यूटा राज्य में एक घटना सामने आई। जहां एक चीनी परिवार, जिसका बेटा संयुक्त राज्य अमेरिका में छात्र था, वह जबरन वसूली का शिकार हो गया।
साइबर अपराधियों ने परिवार से कहा कि उनके बेटे का अपहरण कर लिया गया है, जिससे उन्हें 80 हजार अमेरिकी डॉलर ट्रांसफर करने पड़े। हालांकि, इस कठिन परीक्षा के पीछे की सच्चाई से पता चला कि चीनी छात्र ने खुद को अलग-थलग करने का विकल्प चुना था।
घटनाओं की सीरीज पिछले वर्ष 28 दिसंबर को तब शुरू हुई, जब यूटा में रिवरडेल पुलिस को एक विदेशी छात्र काई ज़ुआंग के कथित अपहरण के संबंध में एक स्थानीय हाई स्कूल से एक चिंताजनक रिपोर्ट मिली। चीन में पीड़ित के माता-पिता ने स्कूल अधिकारियों से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें बताया कि उनके बच्चे का अपहरण कर लिया गया है।
परिवार को काई ज़ुआंग की एक तस्वीर दी गई, जिसमें उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें पकड़े जाने की एक फोटो दिखाई गई, जिससे उनकी सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ गईं। इसके बाद, कथित अपहरणकर्ताओं द्वारा लगातार दी जा रही धमकियां और फिरौती मांगी जा रही थी। जिससे परिवार को चीन में बैंक खातों में 80 हजार अमेरिकी डॉलर (करीब 60 लाख रुपये) की बड़ी राशि स्थानांतरित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
स्थिति की जानकारी होने पर, रिवरडेल पुलिस ने एफबीआई से संपर्क किया। पता चला कि ज़ुआंग का कभी अपहरण हुआ ही नहीं था। बल्कि वह ब्रिघम शहर से लगभग 40 किमी उत्तर में एक तंबू में था, और स्कैमर्स के कहने पर उसने खुद को अलग कर लिया था।
दिल्ली के वकील सिद्दार्थ मलकानिया ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) हमारे जीवन के हर पहलू में फैल रहा है। सॉफ़्टवेयर हमारी खरीदारी की आदतों को ट्रैक करता है। सीसीटीवी कैमरे सड़कों पर नजर रखते हैं और एआई फेस रिकग्निशन सॉफ्टवेयर के साथ काम करते हैं।
एआई मानव शरीर की इमेजिंग और स्कैनिंग में मदद कर रहा है। स्वास्थ्य देखभाल उद्योगों में ड्रोन/रोबोट की एक सेना का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन इससे भी बुरी बात यह है कि एआई सिस्टम का उपयोग मनुष्यों द्वारा गोपनीयता पर हमला करने और उसे उजागर करने, प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने, फ़िशिंग हमलों, चोरी, जालसाजी और धोखाधड़ी जैसे अपराध करने के लिए किया जा सकता है या किया जा सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि भारत में, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत पहचान की चोरी और प्रतिरूपण के लिए सजा है और ऐसे प्रयासों के माध्यम से धन निकालने पर बीएनएस 2023 की धारा 308 के तहत जबरन वसूली के लिए सजा का प्रावधान है।
लेकिन आईटी अधिनियम 2000 में ऐसे मामलों के लिए सजा कम है, जो जमानती भी है। अब समय आ गया है कि विधायिका को आईटी अधिनियम 2000 में संशोधन करना चाहिए और साइबर अपराधों के लिए दंड को और अधिक कठोर बनाना चाहिए।
–आईएएनएस
एफजेड/एसकेपी