अयोध्या में विराजे रामलला के मनमोहक विग्रह का शृंगार बरेली में गढ़े गए आभूषणों से किया गया है। आभूषणों को तैयार करने में सोना, हीरा, माणिक्य और पन्ना का इस्तेमाल हुआ है। इन्हें तैयार करने में 14 दिन का समय लगा। भगवान के मुकुट और हार पर सूर्य की छवि सूर्यवंश के प्रतीक के रूप में प्रदर्शित है।
महज 14 दिन में आभूषण बनाना आसान नहीं था, लेकिन प्रभु श्रीराम कृपा से हामी भर दी। इसके बाद 70 कुशल कारीगरों की टीम तैनात करके शिफ्टवार 24 घंटे कार्य किया और 16 जनवरी को आभूषण ट्रस्ट को सौंप दिए। उन्होंने बताया कि गर्भगृह में विराजित मूर्ति का चुनाव ट्रस्ट ने 28 दिसंबर 2023 को किया था, इसीलिए आभूषण बनाने के लिए मात्र 14 दिन का समय मिला।
मोहित के मुताबिक प्रभु के आभूषणों में क्या प्रतीक होंगे, कौन से रत्न जड़े जाएंगे, कितनी लंबाई, चौड़ाई व वजन होगा? ये सब ट्रस्ट के मार्गदर्शन में हुआ। ट्रस्ट से जारी बयान के अनुसार आभूषणों का निर्माण अध्यात्म रामायण, श्रीमद्वाल्मीकि रामायण, श्रीरामचरित मानस और आलवंदार स्त्रोत के अध्ययन और उनमें वर्णित श्रीराम की शास्त्र सम्मत शोभा के अनुरूप शोध व अध्ययन के बाद किया गया है। मोहित के मुताबिक आभूषण बनाने के दौरान कड़ी निगरानी रही। सीसीटीवी कैमरे से परिसर लैस रहा।
रामलला के नेत्र गढ़ने के लिए सोने की छेनी और चांदी की हथौड़ी का प्रयोग हुआ। विग्रह का शृंगार तिलक, मुकुट, धनुष, तीर, छोटा हार, पंचलड़ा, विजय हार, करधनी, बाजूबंध, दोनों हाथ और पांव के कड़े, नूपुर पायल, मुद्रिका, कमल की बेल से हुआ है। रामलला के लिए गले का हार भी बनाया गया है।