कानूनी उलझनों व छोटे-मोटे सवालोंं से आरुषि‍ मामला अब भी सार्वजनिक स्मृति में जीवित

कानूनी उलझनों व छोटे-मोटे सवालोंं से आरुषि‍ मामला अब भी सार्वजनिक स्मृति में जीवित

नई दिल्ली, 13 जनवरी (आईएएनएस)। आरुषि तलवार की अनसुलझी हत्या का पेचीदा मामला 15 साल से अधिक समय से देश को परेशान कर रहा है।

14 वर्षीय आरुषि तलवार 16 मई, 2008 की सुबह अपने जलवायु विहार, नोएडा स्थित घर में मृत पाई गई। उसका गला काटा गया था और सिर पर हमला किया गया था।

परिवार के साथ रहने वाले सहायक हेमराज बंजाड़े को शुरू में मुख्य संदिग्ध माना गया था, वह एक दिन बाद फ्लैट की छत पर मृत पाया गया।

नोएडा पुलिस को मामले में किसी अंदरूनी सूत्र की भूमिका का संदेह हुआ। प्रारंभ में, तलवार दंपत्ति के पूर्व मददगार विष्णु शर्मा को फंसाया गया। बाद में दिल्ली पुलिस जांच में शामिल हुई।

घटना के छह दिन बाद, पुलिस ने आरुषि के माता-पिता, दंत चिकित्सक राजेश और नूपुर तलवार पर ध्यान केंद्रित करते हुए ऑनर किलिंग का संकेत दिया।

दोहरे हत्याकांड के आरोप में राजेश को 23 मई 2008 को गिरफ्तार किया गया था। सार्वजनिक बहस के बीच, मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया गया।

जून में, राजेश के क्लिनिक के सहायक कृष्णा थडराज को गिरफ्तार किया गया था।

तलवार दंपति का लाई डिटेक्टर और नार्को-विश्लेषण परीक्षण किया गया। दिसंबर 2010 में, सीबीआई ने अपर्याप्त सबूतों के कारण एक क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत की, इसमें राजेश को मुख्य संदिग्ध बताया गया। हालांकि, कोई आरोप दायर नहीं किया गया था।

हत्या के पांच साल बाद, 25 नवंबर, 2013 को, सीबीआई न्यायाधीश श्याम लाल ने तलवार दंपति को “अपनी ही संतान के हत्यारे” बताते हुए दोषी ठहराया।

आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई, लेकिन 12 अक्टूबर, 2017 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए उन्हें बरी कर दिया।

सीबीआई ने बरी किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की, इससे अनसुलझे दोहरे हत्याकांड का मामला और लंबा खिंच गया, जो लगातार ध्यान खींचता रहा।

संक्षेप में, आरुषि तलवार का मामला कानून प्रवर्तन में गड़बड़ी के बारे में चिंता पैदा करता है, यह सवाल अनुत्तरित ही रह गया कि “आरुषि तलवार को किसने मारा?”

सत्र अदालत ने तलवार दंपति को हत्या का दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जवाब में, तलवार दंपति ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की, जिसने 2017 में सत्र अदालत के फैसले को पलट दिया और उन्हें बरी कर दिया।

–आईएएनएस

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