मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त प्रयास जरूरी


गुरुग्राम, 24 जुलाई (आईएएनएस)। किशोरावस्था वह समय होता है जब युवा फिजिकल, इमोशनल और ज्ञान संबंधी परिवर्तनों से गुजरते हैं। ये परिवर्तन भविष्य में उनके मानसिक स्वास्थ्य और उनके व्यक्तित्व के विकास और सेहत पर प्रभाव डालने के लिए भारी या यहां तक कि दर्दनाक भी हो सकते हैं।

इन बच्चों को अपने जीवन के इन महत्वपूर्ण वर्षों को सफलतापूर्वक गुजारने में मदद के लिए जीडी गोयनका विश्वविद्यालय ने फोर्टिस मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के सहयोग से रिस्क मैनेजमेंट पर एक नेशनल काउंसलर समिट का आयोजन किया। इसे वीएआरटीएएच (वर्ताह) कहा जाता है जिसका मतलब है — वी से वैल्य़ू, ए से अवेयरनेस, आर से रिफॉर्म, टी से थ्राइव, ए से एक्शन और एच से होप।

इस पहल का उद्देश्य शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर एक पॉजिटिव मेंटल हेल्थ कल्चर का पोषण करना है। यह जागरूकता बढ़ाने, सकारात्मक (पॉजिटिव) बदलावों की वकालत करने और बच्चों तथा किशोरों की भलाई को बढ़ावा देने के उपाय शुरू करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। देशभर के स्कूल काउंसलरों और शिक्षकों को इसमें हिस्सा लेने का अवसर मिलेगा।

शैक्षणिक पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य (मेंटल हेल्थ) को शामिल करने की जरूरत पर जोर देते हुए, फोर्टिस राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. समीर पारिख ने कहा, ”बच्चों को उनके शुरुआती सालों में जीवन के लिए स्किल के साथ सशक्त बनाना जरूरत है जो उन्हें आत्मविश्वास और मजबूती के साथ उतार-चढ़ाव से निपटने में मदद करता है, जो उन्हें सफलता के पथ पर ले जाता है।”

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किशोरों के बीच मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए समाज, माता-पिता और मीडिया की भूमिकाओं की जरूरत है। यह अकेले किसी एक पार्टी की जिम्मेदारी नहीं है और बदलाव तभी आ सकता है जब सभी मिलकर काम करेंगे। डॉ. पारिख ने मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा (पीएफए) की अवधारणा को बढ़ावा देने की जरूरत के बारे में भी बात की।

सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “हम सभी शारीरिक प्राथमिक चिकित्सा के बारे में बात करते हैं, लेकिन कोई भी मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा का जिक्र नहीं करता है। आप मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में लोगों से कैसे बात करते हैं यह मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा का हिस्सा है। जितना अधिक हम इसके बारे में सीखेंगे और दूसरों को सिखाएंगे, उतना ही बेहतर हम समाज को इसके बारे में शिक्षित करने में सक्षम होंगे।”

इस अनूठी पहल पर अपने विचार साझा करते हुए जीडी गोयनका विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. अंजलि मिधा शरण ने कहा कि ‘वर्ताह’ मानसिक बीमारी को कलंकित करने और कमजोर वातावरण में किशोरों की मदद करने के लिए जरूरी स्किल पर काउंसलरों को सक्षम बनाता था।

उन्होंने कहा कि यह पहल ‘मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को मुख्यधारा की शिक्षा में एकीकृत करने पर विश्वविद्यालय के फोकस का विस्तार होगा। यह आयोजन मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, स्कूल परामर्शदाताओं और शिक्षकों को एक साथ लाता है जो युवाओं के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए जरूरी कार्रवाई के बारे में बातचीत के अवसर पैदा करते हैं।

इस कार्यक्रम में किंग्स यूनिवर्सिटी कनाडा, जेम्स कुक यूनिवर्सिटी, सिंगापुर के प्रतिष्ठित वक्ताओं और अंतरराष्ट्रीय शिक्षा के कई विशेषज्ञों द्वारा व्यावहारिक बातचीत की गई। सत्र जोखिम की पहचान, बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य में प्रचलित मुद्दों तथा चुनौतियों के व्यावहारिक समाधान प्रस्तावित करने पर केंद्रित थे।

इसके एलावा, उन्होंने दुनिया भर में विविध भौगोलिक और सांस्कृतिक सेटिंग्स में चिंताओं को दूर करने के लिए निवारक उपायों को साझा किया।

–आईएएनएस

एफजेड


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