उप्र : स्वास्थ्य विभाग के प्रयास से शिशु मृत्यु दर में आ रही कमी

उप्र : स्वास्थ्य विभाग के प्रयास से शिशु मृत्यु दर में आ रही कमी

लखनऊ। मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा किये जा रहे प्रयास रंग ला रहे हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण(एनएफएचएस-5) के 2019-21 के आंकड़ों को देखें तो उत्तर प्रदेश में नवजात मृत्यु दर 35.7 है, जबकि एनएफएचएस-4 (2015-16)के अनुसार यह आंकड़ा 45.1 था। सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम(एसआरएस) के अनुसार जहां साल 2019 में नवजात मृत्यु दर 30 थी, वहीं साल 2020 में घटकर 28 हो गई है।

नवजात में खतरों के लक्षण की शीघ्र पहचान कर, समय से चिकित्सीय जांच और इलाज कराकर किसी भी अनहोनी से बचा जा सकता है। स्वास्थ्य मिशन द्वारा गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम (एचबीएनसी) चलाया जा रहा है। जिसके तहत आशा कार्यकर्ता बच्चे के जन्म के बाद 42 दिन के भीतर छह से सात बार भ्रमण करती हैं। आशा कायकर्ता के पास एचबीएनसी किट होती है, जिसमें वजन मशीन, डिजिटल थर्मामीटर और डिजिटल घड़ी और कंबल सहित कुछ दवाएं भी होती हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के बाल स्वास्थ्य के महाप्रबंधक डा. वेद प्रकाश ने बताया कि संस्थागत प्रसव के मामले में तीसरे, सातवें, 14वें, 21वें, 28वें और 42वें दिन तथा घर में जन्म के मामले में उपरोक्त छह दिन के साथ पहले दिन भी बच्चे के घर का भ्रमण करते हैं। इस दौरान बच्चे का वजन, बुखार, शरीर में दाने, शरीर में ऐंठन, झटके या दौरे आना, ठंडा बुखार या हाइपोथर्मिया, सुस्त रहना, सांस तेज या धीरे चलना, बच्चा दूध ठीक से पी रहा है या नहीं, जन्मजात विकृति आदि के बारे में जांच करते हैं। साथ ही इन खतरे के लक्ष्णों के बारे में माँ और परिवार के सदस्यों को भी बताते हैं ताकि वह भी खतरे के लक्षणों को पहचान सकें। उन्हें नजरअंदाज न करें तथा आपातकालीन परिस्थितियों में आशा कार्यकर्ता या स्वास्थ्य केंद्र पर संपर्क करें।

उन्होंने बताया कि प्रसव के बाद महिला को चिकित्सक की सलाह पर अस्पताल में 48 घंटे तक अवश्य रहना चाहिए, ताकि प्रसूता और नवजात की समुचित जांच और इलाज हो सके। साथ ही नवजात का टीकाकरण भी अवश्य कराना चाहिए।

यूनिसेफ़ के अनुसार नवजात की मृत्यु के प्रमुख कारणों में से 33 प्रतिशत संक्रमण, 35 प्रतिशत समय से पूर्व प्रसव,20 प्रतिशत प्रसव के दौरान दम घुटना(बर्थ एसफिक्सिया) तथा 9 प्रतिशत जन्मजात विकृतियों की वजह से होती है।

उन्होंने बताया कि शिशु के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत बीमार नवजात को निःशुल्क इलाज की सुविधा उपलब्ध है। इस कार्यक्रम के तहत नवजात को उपचार, एम्बुलेंस की सुविधा, स्वास्थ्य केंद्र से उच्च स्तरीय स्वास्थ्य केंद्र तक जाने तथा वापिस घर तक आने के लिए निःशुल्क परिवहन सुविधा सरकार द्वारा दी गई है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के बाल स्वास्थ्य के महाप्रबंधक डा. वेद प्रकाश का कहना है कि सरकार की गाइडलाइन के अनुसार कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं, लेकिन अभी और प्रयास करने होंगे।

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