वाराणसी। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर गुरूवार को जैन धर्म के 7वें तीर्थंकर भगवान सुपार्श्वनाथ का जन्म एवं तप कल्याणक दिवस उल्लासपूर्ण माहौल में मनाया गया।
तीर्थंकर भगवान सुपार्श्वनाथ की जन्मस्थली भदैनी तीर्थ स्थित श्री सुपार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में भगवान का विधिवत पूजन अर्चन के बाद 108 जल पूरित कलश से अभिषेक और पंचकल्याणक पूजन जैन परम्परा के अनुसार किया गया। मंदिर में भगवान सुपार्श्वनाथ के बाल स्वरूप का अभिषेक के बाद आरती उतारी गई। इसके बाद मंदिर में स्थित 24 तीर्थंकरों की भी पूजन-आरती हुई। जैन घाट पर भगवान पारसनाथ के चरणों का भी अभिषेक किया गया। मंदिर परिसर से भगवान की झांकी शोभायात्रा भी निकाली गई।
जैन तीर्थ भदैनी से जुड़े पदाधिकारी सुरेन्द्र जैन और अशोक जैन के अनुसार तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ जी ने हमेशा सत्य का समर्थन किया और अपने अनुयायियों को अनर्थ हिंसा से बचने और न्याय के मूल्य को समझने का संदेश दिया। जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से चार ,सुपार्श्वनाथ, चंद्रप्रभु, श्रेयांशनाथ तथा पारसनाथ के जन्म, दीक्षा, ज्ञान कल्याणकों का सौभाग्य भी इसी काशी नगरी को प्राप्त हुआ। गंगा तट पर प्रभु जैन घाट पर भदैनी तीर्थ स्थित श्री सुपाश्र्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर उसी स्थान पर स्थित है, जहां जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर सुपाश्र्वनाथ का गर्भ, जन्म कल्याणक मनाया गया।
जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर भगवान श्री सुपार्श्वनाथ का जन्म इक्ष्वाकुवंश में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को विशाखा नक्षत्र में वाराणसी में हुआ था। इनकी माता का नाम पृथ्वी देवी और पिता का नाम राजा प्रतिष्ठ था। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण था और इनका चिह्न स्वस्तिक था।