एएमआर भविष्य ही नहीं, वर्तमान के लिए भी खतरनाक: विशेषज्ञ

नई दिल्ली, 8 दिसंबर (आईएएनएस)। एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) को लेकर दुनिया भर के विशेषज्ञ लगातार चेतावनी जारी कर रहे हैं। अब ये सिर्फ भविष्य के लिए ही खतरा नहीं पैदा कर रहा है बल्कि वर्तमान पर भी नकारात्मक असर डाल रहा है। ये एक ऐसी सच्चाई है, जिसका भारत के लाखों लोग सामना कर रहे हैं। यह बात सोमवार को यूके की वेलकम ट्रस्ट ‘इंफेक्शियस डिजीज क्लिनिकल रिसर्च’ टीम के क्लिनिकल रिसर्च हेड फ्लोरियन वॉन ग्रूटे ने कही।
आईएएनएस से बात करते हुए, संक्रामक बीमारियों पर शोध करने वाले विशेषज्ञ वॉन ग्रूटे ने बताया कि एएमआर दुनिया की बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है, जिसमें लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है। कइयों की मौत का कारण भी बन रहा है। भारत, अपनी बड़ी आबादी, ज्यादा संक्रामक बीमारियों के बोझ और बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के कारण इस स्थिति को ज्यादा झेल रहा है।
उन्होंने कहा, “एएमआर अब सिर्फ अस्पताल की समस्या नहीं है, बल्कि भारत के हेल्थकेयर सिस्टम पर असर डाल रहा है। ये ट्रेंड्स देश के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक के गलत इस्तेमाल, संक्रमण नियंत्रण और निगरानी की कमी को दिखाते हैं। एएमआर भविष्य का खतरा नहीं है, बल्कि भारत में आज की सच्चाई है।”
भारत अभी भी दुनिया में सबसे ज्यादा बैक्टीरियल इन्फेक्शियस मामलों का सामना कर रहा है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में भारत में लगभग हर तीन में से एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन से जूझ रहा शख्स एंटीबायोटिक्स रेसिस्टेंट था। दुनिया भर में, यह हर छह पुष्ट संक्रमण के मामलों में से एक था। नेशनल एएमआर सर्विलांस डेटा से ई. कोलाई, क्लेबसिएला न्यूमोनिया, स्टैफिलोकोकस ऑरियस, और एसिनेटोबैक्टर बाउमानी जैसे पैथोजन्स (रोग पैदा करने वाले) में परेशान करने वाले रेजिस्टेंस पैटर्न भी दिखते हैं।
लैंसेट ई-क्लिनिकल मेडिसिन जर्नल में छपी एक हालिया स्टडी में चेतावनी दी गई है कि भारत सुपरबग विस्फोट के केंद्र में है क्योंकि देश में कई मरीजों में एक ही समय में कई रेजिस्टेंट ऑर्गेनिज्म पाए गए हैं।
इससे पता चला कि 80 फीसदी से ज्यादा भारतीय मरीजों में मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट ऑर्गेनिज्म (एमडीआरओ) हैं और ये आंकड़ा दुनिया भर में सबसे ज्यादा है।
वॉन ग्रूटे ने बताया कि एएमआर पर ध्यान इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि आम संक्रामक बीमारियों का इलाज करना भी मुश्किल होता जा रहा है, एंटीबायोटिक्स फेल हो रही हैं, और इसके आर्थिक असर को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
वॉन ग्रूटे ने आईएएनएस को बताया, “कुछ खास एंटीबायोटिक्स के लिए रेजिस्टेंस लेवल सच में बहुत ज्यादा है। इलाज के विकल्प कम हो रहे हैं, और कई फर्स्ट-लाइन और यहां तक कि लास्ट-लाइन एंटीमाइक्रोबियल्स भी अपना असर खो रहे हैं, जिससे पहले आसानी से मैनेज होने वाले इन्फेक्शन का इलाज करना मुश्किल या नामुमकिन हो रहा है।”
इंफेक्शियस डिजीज एक्सपर्ट ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूके और यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन, यूएस के संयुक्त शोध आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा, “भारत दुनिया में सबसे ज्यादा एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस वाले देशों में से एक है। 2019 में, देश में ड्रग-रेसिस्टेंट इन्फेक्शन से सीधे तौर पर लगभग 2,67,000 मौत हुई, जो दुनिया भर के मुकाबले सबसे ज्यादा था।”
हालांकि आईसीएमआर के नवीनतम आंकड़े से पता चलता है कि सेफ्टाजिडाइम (दवा) ई. कोलाई के खिलाफ थोड़ी प्रभावशाली हुई है (2023 में 19.2 प्रतिशत से 2024 में 27.5 प्रतिशत तक), कार्बापेनेम्स और कोलिस्टिन के लिए बढ़ता रेजिस्टेंस एक रेड फ्लैग बना हुआ है, जो देश में इलाज के कम होते विकल्प का संकेत देता है।
वॉन ग्रूटे ने कहा, “एशिया और अफ्रीका के दूसरे ज्यादा आबादी वाले देशों की तुलना में, भारत एक क्रिटिकल हॉटस्पॉट… अपने बड़े आकार, संक्रमण के बढ़ते भार और बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक के गलत इस्तेमाल की वजह से बना हुआ है।”
खास तौर पर, एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस को रोकने के लिए, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने खास स्ट्रेटेजी के साथ एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस पर नेशनल एक्शन प्लान (2025-29) का दूसरा वर्जन लॉन्च किया।
इस बीच, वॉन ग्रूटे ने एंटीबायोटिक्स के सही और जिम्मेदारी से इस्तेमाल, इंसानों, जानवरों और पर्यावरण पर बेहतर निगरानी, और नई दवाएं, वैक्सीन और डायग्नोस्टिक्स बनाने पर जोर देने का सुझाव दिया।
एक्सपर्ट ने एंटीबायोटिक्स की जरूरत को कम करने के लिए हाथों को साफ रखने और दूसरे संक्रमण नियंत्रित करने के तरीकों जैसे आसान उपायों का भी जिक्र किया।
–आईएएनएस
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