पाकिस्तान: सिंध कल्चर डे रैली पर चला हुक्मरानों का डंडा, टेरर चार्ज के तहत अपने ही लोगों के खिलाफ मामला दर्ज

कराची, 8 दिसंबर (आईएएनएस)। अपनी संस्कृति के सम्मान में निकाली गई रैली को पाकिस्तान के हुक्मरान आंतकी परेड मानते हैं, शायद इसलिए इंतजाम से नाखुश लोगों ने नाराजगी जताई तो कराची में पहले तो उन्हें खदेड़ा गया, हवाई फायरिंग से डराया गया, कइयों को हिरासत में लिया गया, कुछ गिरफ्तारियां भी की गईं और आखिरकार इन पर टेरर चार्ज लगा एफआईआर दर्ज कर दी।
ये नया पाकिस्तान है जो अपने बाशिंदों की हर उस जरूरत को खारिज करता चलता है जिससे उन्हें अपने हक का आभास होता है। डॉन की खबर के अनुसार रविवार को सिंध कल्चर डे के मौके पर निकाली गई रैलियों में से एक के हिंसक होने के बाद स्टेट ने सोमवार (8 दिसंबर) को टेरर चार्ज के तहत केस दर्ज किया है।
पुलिस ने रविवार को रैली में शामिल लोगों को शरिया फैसल के रास्ते रेड जोन की ओर बढ़ने से रोकने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े और 45 लोगों को हिरासत में लिया। कथित तौर पर 12 को बाद में रिहा कर दिया गया। पुलिस के मुताबिक, रैली में शामिल लोगों ने पुलिस पर हमला किया, जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े। वहीं आम सिंधियों ने इसे ज्यादती की इंतेहा बताया।
एफआईआर के मुताबिक मौके से गिरफ्तार किए गए 12 नामजद लोगों और “300-400” अनजान लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। विभिन्न धाराओं में केस दर्ज है, जिसमें से एक एंटी-टेररिज्म एक्ट (एटीए) के सेक्शन 7 (आतंकवादी कामों के लिए सजा) के तहत रजिस्टर किया गया है। ये एक्ट सबसे गंभीर है।
हर साल दिसंबर के पहले रविवार को मनाया जाने वाला सिंध कल्चरल डे पहली बार 2009 में मनाया गया था। राजनीतिक पार्टियां, सामाजिक संगठन और सिविल सोसाइटी, साथ ही सरकारी संस्थाएं, सिंध की समृद्ध संस्कृति और इतिहास को दिखाने के लिए सेमिनार और लोक संगीत जैसे कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करती हैं।
सिंध प्रांत के गृहमंत्री जियाउल हसन लंजर ने रविवार की घटना पर कड़ा संज्ञान लिया था और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई का आदेश दिया था।
यह घटना सिंध राष्ट्रवादी समूहों के बीच गुस्से को हवा दे रही है, जो इसे ‘सांस्कृतिक पहचान पर हमला’ बता रहे हैं। कराची के फाइनेंस एंड ट्रेड सेंटर (एफटीसी) फ्लाईओवर के पास 300-400 लोगों की रैली पहुंची। यह जय सिंध मुक्ति मोर्चा (जेएसक्यूएम) जैसे राष्ट्रवादी संगठनों द्वारा आयोजित थी, जो सिंध की सांस्कृतिक विरासत को समर्पित थी। प्रतिभागी सिंधी टोपी (सिंधी टोपी) और अजरक (परंपरागत शॉल) पहने नारे लगा रहे थे और गाड़ियों से सड़क जाम कर रहे थे।
पुलिस का तर्क है कि अधिकारियों ने रैली को रेड जोन (सद्दार क्षेत्र) से बचाने के लिए बैरिकेड लगाए थे। पुलिस ने वैकल्पिक रूट (लाइन्स एरिया) सुझाया, लेकिन प्रदर्शनकारी शाहरा-ए-फैसल से ही कट्टरली प्रेस क्लब (केपीसी) जाना चाहते थे। इससे तनाव बढ़ा।
जेएसक्यूएम और अन्य ने इसे ‘दमन’ बताया। सोशल मीडिया पर यूजर्स पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को ‘सिंध विरोधी’ बता रहे हैं।
ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे संगठन पहले ही सिंध-बलूचिस्तान में ‘मानवाधिकार उल्लंघन’ पर चिंता जता चुके हैं। यह घटना बलूचिस्तान विरोध प्रदर्शन (2025) से जुड़ती नजर आ रही है, जहां आतंकवाद के नाम पर दमन हो रहा है।
कराची में सिंध कल्चर डे की रैली के दौरान नागरिकों पर आतंकवाद के आरोप लगाए जाने की घटना व्यापक संदर्भ में राज्य-व्यवस्था और नागरिक स्वतंत्रता के रिश्ते को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है।
इस घटना में जिस तरह एक सांस्कृतिक रैली को अचानक सुरक्षा-खतरे से जोड़ दिया गया, वह वही चिंता दोहराता है कि कहीं आतंकवाद-विरोधी कानूनों का इस्तेमाल असहमति या भीड़ नियंत्रण के लिए तो नहीं किया जा रहा।
सिंध जैसे प्रांतों में सांस्कृतिक अभिव्यक्ति सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक पहचान का हिस्सा है। जब किसी सांस्कृतिक उत्सव के प्रतिभागियों पर गंभीर आपराधिक धाराएं लगाई जाती हैं, तो यह स्थानीय समुदायों को संकेत देता है कि उनकी सांस्कृतिक जगह भी राज्य के संदेह के घेरे में आ सकती है। इससे क्षेत्रीय असंतोष और राजनीतिक दूरी दोनों बढ़ती हैं, जिसका असर स्थानीय प्रशासन से लेकर व्यापक राष्ट्रीय समीकरणों तक फैल सकता है।
–आईएएनएस
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