सुप्रीम कोर्ट सोमवार यानी आज जेल में बंद यूट्यूबर (YouTuber) मनीष कश्यप की याचिका पर सुनवाई करेगा। दरअसल, मनीष कश्यप के खिलाफ तमिलनाडु में प्रवासी मजदूरों के फर्जी वीडियो प्रसारित करने के आरोप में कड़े राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) को लागू किया गया है।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के डेगाना में मिले इस लिथियम रिजर्व को लेकर जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का दावा है कि यह जम्मू-कश्मीर में मिले भंडार से भी ज्यादा बड़ा है। रिपोर्ट में अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि डेगाना में मिला भंडार भारत की 80 फीसदी लिथियम मांग को पूरा कर सकता है।
क्यों अहम है खोज?
फिलहाल, लिथियम रिजर्व के मामले में शीर्ष पांच देशों में बोलीविया, चिली, ऑस्ट्रेलिया, चीन और अमेरिका का नाम शामिल है। ऐसे में जम्मू और कश्मीर और राजस्थान में इतने बड़े स्तर पर लिथियम की खोज भारत के लिए नया उपलब्धि हासिल की है। अब तक भारत को मैन्युफैक्चरिंग के लिए इन देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। एक रिपोर्ट के अनुसार, लिथियम रिजर्व के मामले में अब भारत 5वां देश बन गया है।
सीजेआई चंद्रचूड़ की बेंच कर सकती है सुनवाई
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ मनीष कश्यप की याचिका पर सुनवाई कर सकती है, जिसे 18 मार्च को जगदीशपुर पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण करने के बाद बिहार में गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद उसे तमिलनाडु लाया गया था, जहां उस पर अप्रैल में एनएसए लगा दिया गया था। इस मामले में उसके खिलाफ तमिलनाडु में छह और बिहार में तीन प्राथमिकी दर्ज हैं।
तमिलनाडु सरकार ने याचिका पर दिया जवाब
कश्यप की याचिका के जवाब में तमिलनाडु सरकार ने कहा है कि कश्यप के खिलाफ राज्य में दर्ज की गई कई प्राथमिकी राजनीति से प्रेरित नहीं हैं, बल्कि इसलिए दर्ज की गई है, क्योंकि उसने प्रवासी मजदूरों के फर्जी वीडियो प्रसारित करके सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय अखंडता को भंग किया है। एक हलफनामे में, राज्य सरकार ने कश्यप की उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को क्लब करने की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि वह संवैधानिक अधिकारों की आढ़ में शरण नहीं ले सकते हैं।
तमिलनाडु में हिंसा भड़काने का प्रयास
राज्य सरकार ने दावा किया कि कश्यप ने झूठे और असत्यापित वीडियो के माध्यम से बिहारी प्रवासी मजदूरों और तमिलनाडु के लोगों के बीच हिंसा भड़काने का प्रयास किया। “एकाधिक प्राथमिकी दर्ज करना किसी राजनीतिक इरादे से नहीं किया गया था, न ही अभियुक्तों के संवैधानिक अधिकारों को दबाने के लिए, बल्कि गलत सूचना के प्रसार को रोकने और यह सुनिश्चित करने के इरादे से किया गया था कि ऐसे अपराधों का दोषी व्यक्ति कानून की चंगुल से बचकर न निकले।
प्रवासी मजदूरों में फैल गई थी दहशत
तमिलनाडु सरकार ने हलफनामे में कहा, “भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है, लेकिन सावधानी और जिम्मेदारी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए। सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय अखंडता को बिगाड़कर, आरोपी संवैधानिक अधिकारों की छत्रछाया में शरण नहीं ले सकते।” सरकार की तरफ से कहा गया है कि पुलिस ने तमिलनाडु में दर्ज सभी प्राथमिकी में कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया। इसमें कहा गया है कि प्रवासी मजदूरों के परिवारों में भारी मात्रा में भय और दहशत पैदा हो गई है।
शोधित याचिका पर जवाब देने के लिए तमिलनाडु सरकार को दिया था समय
शीर्ष अदालत ने 28 अप्रैल को कश्यप की संशोधित याचिका पर जवाब देने के लिए तमिलनाडु सरकार को समय दिया था। इसने 21 अप्रैल को राज्य सरकार को कश्यप को मदुरै सेंट्रल जेल से स्थानांतरित नहीं करने का निर्देश दिया था। इसने कश्यप की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका पर तमिलनाडु और बिहार सरकारों को नोटिस जारी किया था। कश्यप 5 अप्रैल को मदुरै जिला अदालत में पेश हुए थे, जिसने आदेश दिया कि उन्हें 15 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाए, जिसके बाद उन्हें मदुरै केंद्रीय जेल भेज दिया गया।
तमिलनाडु और बिहार के मामलों को जोड़ने की मांग
शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी याचिका में, कश्यप ने तमिलनाडु में उनके खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर को बिहार में दर्ज एफआईआर के साथ जोड़ने की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार के प्रवासी मजदूरों के खिलाफ तमिलनाडु में कथित हिंसा का मुद्दा मीडिया में व्यापक रूप से बताया गया था और याचिकाकर्ता 1 मार्च से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वीडियो बनाकर और ट्विटर पर पोस्ट लिखकर इसके खिलाफ आवाज उठा रहा था।