श्री वीरभद्र स्वामी मंदिर: हवा में झूलते खंभों के रहस्यों से भरा है ये मंदिर, देखने लायक है मंदिर की वास्तुकला


नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। सनातन धर्म में भगवान शिव की महिमा का बखान सदियों से किया जा रहा है। भगवान शिव का आदि और अंत किसी को नहीं पता, इसलिए उन्हें सृष्टि के सृजनकर्ता और विनाशक दोनों रूपों में देखा जाता है। समय आने पर उन्होंने अपने कई अंश विकसित किए, जिनमें से एक हैं वीरभद्र भगवान।

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के पास लेपाक्षी गांव में भगवान वीरभद्र का ऐसा मंदिर है, जहां खंभे हवा में झूलते रहते हैं।

ये मंदिर शक्ति का प्रतीक है और मंदिर की भारतीय वास्तुकला देखने लायक है। बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण 6वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने कराया था। मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट चट्टानों से किया गया है और पत्थर पर बारीक नक्काशी की गई है और देवी-देवताओं की प्रतिमा को उकेरा गया है, जो महाभारत और रामायण की कहानी को दिखाते हैं। इस मंदिर को लेपाक्षी मंदिर और हैंगिंग टेम्पल के नाम से भी जाना जाता है।

मंदिर में भगवान शिव के रौद्र रूप भगवान वीरभद्र की पूजा की जाती है और उनकी प्रतिमा को मंदिर के गर्भगृह में रखा गया है। मंदिर के इतिहास के बारे में बात करें तो इसको लेकर कई किंवदंतियां मौजूद हैं।

मंदिर के इतिहास को रामायण से जोड़कर भी देखा गया है। बताया जाता है कि जब रावण ने मां सीता का हरण किया था, तो जटायु ने उन्हें बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी थी और वो इसी स्थान पर गिरे थे। भगवान राम ने पीड़ा को समझते हुए जटायु को ‘ले पाक्षी’ कहा था, जिसका तेलुगू में मतलब है ‘उठो, पक्षी’। मान्यता है कि इसी वजह से मंदिर को लेपाक्षी मंदिर भी कहते हैं।

श्री वीरभद्र स्वामी मंदिर रहस्यों से भरा मंदिर है। मंदिर में कुल 70 खंभे हैं और 70 खंभे हवा में तैरते हैं। खंभों का निचला सिरा जमीन को नहीं छूता है, बल्कि दोनों के बीच में एक गैप होता है, जिसके नीचे से कपड़े को आर-पार करके देखा जा सकता है। इसी वजह से मंदिर पर्यटन का विशेष केंद्र है। खंभों और जमीन के गैप को आंखों से देखा जा सकता है।

–आईएएनएस

पीएस/वीसी


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