लखनऊ। शंकराचार्य जयंती के अवसर पर उत्तर प्रदेश के मठ मंदिरों में मंगलवार को विविध आयोजन हो रहे हैं। मथुरा में गोवर्धन स्थित आद्य शंकराचार्य आश्रम, प्रयागराज में अलोपीबाग स्थित शंकराचार्य आश्रम और वाराणसी में काशी सुमेरु पीठ में इस अवसर पर विशेष अनुष्ठान आयोजित किए गए हैं।
गोवर्धनपुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने आद्य शंकराचार्य को सनातन धर्म का पुनरोद्धारक और ध्वजवाहक बताया है। उन्होंने कहा कि आद्य शंकराचार्य भगवान ने विषम परिस्थिति में वैदिक सनातन धर्म की नींव को सुदृढ़ कर सनातन संस्कृति को स्थायित्व प्रदान किया।
जगद्गुरु अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने कहा कि अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक, चार सिद्ध पीठों के संस्थापक आदि शंकर का समूचे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने में अतुलनीय योगदान है। सनातन संन्यास परंपरा को भी उन्होंने जीवंत स्वरुप प्रदान किया। सनातन धर्म के लिए समर्पित उनका त्यागमय जीवन युगों-युगों तक समाज को प्रेरित करता रहेगा।
गोवर्धन पुरी पीठाधीश्वर ने कहा कि आचार्य शंकर का आविर्भाव ऐसी विषम परिस्थिति में हुआ, जब सनातन धर्म विदेशी आक्रांताओं के कारण बलहीन हो रहा था। आदि शंकराचार्य ने मात्र आठ वर्ष की उम्र में ही वेदों, पुराणों और उपनिषदों समेत सभी धर्मग्रंथों को कंठस्थ किया और समूचे भारत का भ्रमण कर अपनी विद्वता से बौद्ध विद्वानों को पराजित किया। शास्त्रार्थ में उन्होंने मंडन मिश्र जैसे उद्भट विद्वान को भी पराजित कर उन्हें अपना शिष्य बनाया।
उन्होंने बताया कि आद्य शंकराचार्य ने शास्त्रों से सनातन धर्म की रक्षा के लिए देश की चारों दिशाओं में चार मठ की स्थापना की, जिसमें पूर्व दिशा में गोवर्धन पुरी मठ, जगन्नाथपुरी उड़ीसा में, पश्चिम में द्वारका शारदामठ गुजरात में, उत्तर दिशा में ज्योतिर्मठ बद्रीकाश्रम उत्तराखंड में और दक्षिण दिशा में रामेश्वरम स्थित शृंगेरी मठ है। शास्त्र के अलावा शस्त्रों से सनातन धर्म की रक्षा के लिए आचार्य शंकर ने दसनामी संन्यासियों को संगठित कर अखाड़ों का गठन किया।
जगद्गुरु देवतीर्थ ने आगे बताया कि आद्य शंकराचार्य ने ही इन चारों मठों में सबसे योग्य शिष्यों को पीठाधीश्वर बनाने की परंपरा शुरु की थी, तब से ही इन मठों के मठाधीश आचार्य शंकर की प्रतिमूर्ति के रुप में शंकराचार्य की उपाधि के साथ सनातन धर्म के ध्वजवाहक बने हुए हैं। आद्य शंकराचार्य ने इन मठों के संचालन और पीठाधीश्वरों की नियुक्ति के लिए ‘‘मठाम्नाय महानुशासन’’ नामक ग्रंथ भी रचा।
गौरतलब है कि बैशाख मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आद्य शंकराचार्य की जयंती मनाई जाती है। इस अवसर पर सनातन धर्म के अनुयायी उन्हें नमन करते हैं, मठ-मंदिरों में विशेष आयोजन होते हैं। कहीं-कहीं शास्त्रार्थ की परंपरा का भी निर्वहन होता है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ट्वीट करके आद्य शंकराचार्य को नमन किया है। मुख्यमंत्री ने अपने ट्वीट में कहा है कि सनातन संस्कृति के पुनरुत्थान एवं भारत के पुनर्निर्माण में आद्य शंकराचार्य के अविस्मरणीय योगदान अनंत काल तक प्रेरणा-पुंज रहेंगे।