'डीएवाई-एनआरएलएम' गरीबों की आजीविका में सुधार के लिए दुनिया की सबसे बड़ी पहलों में से एक


नई दिल्ली, 23 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्र सरकार द्वारा गुरुवार को दी गई जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) को 2010 में पिछली स्वर्ण जयंती ग्रामीण स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) को नया रूप देकर एक मिशन-मोड योजना के रूप में शुरू किया गया था। 2016 में इस कार्यक्रम का नाम बदलकर दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) कर दिया गया।

आधिकारिक जानकारी के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारें संयुक्त रूप से इस योजना को धन मुहैया कराती हैं। यह गरीबों की आजीविका में सुधार के लिए दुनिया की सबसे बड़ी पहलों में से एक है।

इस योजना ने सफल उद्यमियों की सफलता की कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। मेघालय की एक सफल उद्यमी हीनीदमांकी कनाई की सफलता की कहानी इस योजना से जुड़ी है। कनाई जनवरी 2020 में किरशानलांग स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) में शामिल हुई। स्वयं सहायता समूह के सहयोग और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के मार्गदर्शन से उन्होंने हाथ से साबुन बनाना शुरू किया, जिसके लिए उन्होंने गुलाब, एलोवेरा, संतरा और लेमनग्रास का इस्तेमाल किया।

अपना व्यवसाय शुरू करने के कुछ ही महीनों बाद अगस्त 2023 में उनकी कड़ी मेहनत रंग लाने लगी। उनकी क्षमता को देखते हुए बैंक ने उन्हें एसएचजी के माध्यम से 1.8 लाख रुपए का बैंक लोन दे दिया। इस पैसे से उन्होंने नई मशीनरी और उपकरण खरीदे और अपने साबुन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए लैब टेस्टिंग भी करवाई।

हीनीदमांकी का उद्यम लगातार प्रयासों से फलने-फूलने लगा। उनकी वार्षिक आय एक लाख रुपए को पार कर गई, जिससे उनका जीवन बदल गया और उन्हें सपने देखने का आत्मविश्वास मिला। वह अपनी सफलता पर ही नहीं रुकीं और उन्होंने अपने गांव के अन्य स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को साबुन बनाने की ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। उन्होंने जागरूकता फैलाई और दूसरों को अपने उद्यमशीलता के सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित किया।

आधिकारिक जानकारी के अनुसार, डीएवाई-एनआरएलएम ने 28 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में 10.05 करोड़ ग्रामीण महिला परिवारों को 90.90 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में संगठित किया है।

इसके अलावा, 4.62 करोड़ स्वयं सहायता समूह सदस्य महिला किसानों के रूप में कार्यरत हैं। 3.5 लाख कृषि सखियों और पशु सखियों की नियुक्ति की गई है। 6,000 एकीकृत कृषि क्लस्टर बनाए गए हैं। 1.95 लाख उत्पादक समूह हैं, जिनसे 50 लाख से अधिक ग्रामीण महिलाओं को लाभ हुआ है।

282 ब्लॉकों में 3.74 लाख उद्यमों को समर्थन दिया गया है। 2013-14 से महिला स्वयं सहायता समूहों को 11 लाख करोड़ रुपए का ऋण प्राप्त हुआ है। स्वयं सहायता समूहों के क्रेडिट लिंकेज को सुगम बनाने के लिए बैंक शाखाओं में 47,952 बैंक सखियों को नियुक्त किया गया है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 30 जून 2025 तक बिहार,उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश उन राज्यों में शामिल हैं, जहां स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की संख्या सबसे अधिक है और स्थापना के बाद से इन राज्यों ने सबसे अधिक संख्या में महिला परिवारों को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ा गया है।

डीडीयू-जीकेवाई के अंतर्गत 2014-15 से जून 2025 तक उच्च प्रदर्शन करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश रहा है, जिसने सबसे अधिक 2,44,528 उम्मीदवारों को ट्रेनिंग दी है। इसके बाद ओडिशा ने 2,15,409 और आंध्र प्रदेश ने 1,33,842 उम्मीदवारों को ट्रेनिंग दी है।

रोजगार के मामले में ओडिशा 1,77,165 उम्मीदवारों के साथ सबसे आगे बना हुआ है, जबकि आंध्र प्रदेश ने भी 1,17,881 हायरिंग के साथ बेहतरीन प्रदर्शन दर्ज करवाया है।

–आईएएनएस

एसकेटी/


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