बिहार विधानसभा चुनाव: वारिसनगर सीट पर बड़े दलों के लिए बड़ी चुनौती, क्या इस बार बदलेगा समीकरण?

पटना, 21 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार के समस्तीपुर जिले में स्थित वारिसनगर एक ऐसा इलाका है, जिसकी पहचान सिर्फ उपजाऊ मिट्टी से नहीं, बल्कि एक अनोखे राजनीतिक इतिहास से भी है। यह समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है, जो वर्षों से क्षेत्रीय दलों का गढ़ बनी हुई है।
यह प्रखंड समस्तीपुर जिला मुख्यालय से सिर्फ 10 किलोमीटर दूर है, जबकि राज्य की राजधानी पटना यहां से लगभग 108 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
वारिसनगर विधानसभा क्षेत्र का गठन वर्ष 1951 में हुआ था। इसमें वारिसनगर और खानपुर दो पूरे प्रखंडों के साथ-साथ शिवाजी नगर प्रखंड की छह ग्राम पंचायतें शामिल हैं।
इस सीट पर कुशवाहा (कोरी) और कुर्मी समुदाय के मतदाता चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की गहरी क्षमता रखते हैं।
वारिसनगर की राजनीति का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि बिहार के दो सबसे बड़े दल, राजद और भाजपा, इस क्षेत्र से लगभग गुमनाम हो चुके हैं।
लगातार चार चुनावों में हार के बाद राजद ने 2010 से यहां चुनाव लड़ना बंद कर दिया और गठबंधन के सहयोगियों को समर्थन देना शुरू किया।
अक्टूबर 2005 की दूसरी हार के बाद भाजपा ने भी इसी रणनीति को अपनाते हुए जदयू और लोजपा जैसे सहयोगी दलों को समर्थन देना शुरू कर दिया।
कांग्रेस, जिसने केवल 1972 में एक बार जीत दर्ज की थी, लगातार हार और जमानत जब्त होने के कारण चुनावी परिदृश्य से बाहर हो गई।
वाम दलों में सीपीआई ने भी लगातार असफलता के कारण इस सीट से हटने का निर्णय लिया।
वर्तमान विधायक अशोक कुमार (जदयू) इस सीट पर 2010 से लगातार काबिज हैं। हालांकि, उनकी लगातार जीत के बावजूद, जीत का अंतर कम होना एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गया है।
2015 में उनके जीत का अंतर 58,573 था, जो 2020 में यह अंतर नाटकीय रूप से घटकर सिर्फ 13,801 वोट रह गया।
इस अंतर के घटने का मुख्य कारण लोजपा की तीसरे दल के रूप में मौजूदगी थी, जिसने 2020 में 12.60 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। इन वोटों ने जदयू के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाई थी।
गंगा के मैदानी क्षेत्र में बसा वारिसनगर प्रकृति के आशीर्वाद से समृद्ध है। पास की कमला और कोसी नदियों के कारण यहां की भूमि अत्यधिक उपजाऊ है। यही वजह है कि यहां की करीब 60 से 70 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। धान, गेहूं, मक्का और दालें यहां की मुख्य उपज हैं।
आलू, प्याज, टमाटर, बैंगन और फूलगोभी जैसी सब्जियां बड़े पैमाने पर उगाई जाती हैं। वारिसनगर प्रखंड का रोहुआ गांव विशेष रूप से तंबाकू की खेती के लिए जाना जाता है।
कृषि के अलावा, डेयरी उद्योग भी वारिसनगर की अर्थव्यवस्था में एक अहम भूमिका निभाता है।
वारिसनगर सीट पर 6 नवंबर को पहले चरण के तहत चुनाव आयोजित होंगे और 14 नवंबर को वोटों की गिनती होगी।
–आईएएनएस
वीकेयू/डीएससी