'जिगर' का दूसरा नाम मोहिंदर अमरनाथ, क्रिकेट के मैदान के 'बॉक्सर'

नई दिल्ली, 23 सितंबर (आईएएनएस)। जब तेज गेंदबाजी को खेलना तकनीक के साथ जुनून और जिगर का भी खेल था, तब मोहिंदर अमरनाथ अपने समकालीन बल्लेबाजों से बहुत आगे थे। इतने आगे कि एक बार लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर ने कहा था, “मैंने तेज गेंदबाजी को खेलने के लिए अमरनाथ जैसा बल्लेबाज नहीं देखा।”
24 सितंबर 1950 को पंजाब के पटियाला में जन्मे अमरनाथ को क्रिकेट विरासत में मिला था। उनको लोकप्रिय तौर पर 1983 विश्व कप की जीत के हीरो के रूप में याद किया जाता रहा है। उनका सहज व्यक्तित्व आधुनिक दौर में युवाओं के बीच उतना ही लोकप्रिय रहा है, लेकिन उनकी जीवटता, उनका खेलने का अंदाज और मानसिकता अपने पिता से मिली सीख से बनी थी। मोहिंदर अमरनाथ एक बल्लेबाज थे, जो अपने आंकड़ों से बहुत ज्यादा थे।
मोहिंदर अमरनाथ का परिचय उनके लीजेंडरी पिता लाला अमरनाथ के बगैर अधूरा है। लाला अमरनाथ का कद भारतीय क्रिकेट में पितामह तुल्य है। मोहिंदर अमरनाथ को क्रिकेट कुछ इस तरह विरासत में मिला था कि उन्होंने कहा था, “मेरे पिता ने पहली शादी क्रिकेट से की, दूसरी मेरी मां से। यह उनका क्रिकेट को लेकर जुनून था। वह हमारे लिए हीरो थे।”
पिता से सीखे क्रिकेट के सबक को मोहिंदर ने खेल के मैदान पर उतारने में अपना सब कुछ झोंक दिया। वह खूंखार तेज गेंदबाजों के युग में खुद को एक बॉक्सर जैसा मानते थे। ऐसा बॉक्सर जिसे सिर्फ प्रहार करना ही नहीं आना चाहिए, बल्कि प्रहार को झेलने की ताकत भी जुटानी होगी, और सबसे अहम है प्रहार सहने के बाद फिर से खड़ा होना।
मोहिंदर अमरनाथ का निर्भीक अंदाज कभी नहीं बदला। चाहे रिचर्ड हेडली की गेंद पर उनका सिर फूटा हो, मैल्कम मार्शल की गेंद ने उनके दांत उखाड़े हों, इमरान खान ने उन्हें अचेत कर दिया हो, या माइकल होल्डिंग की गेंद पर वे अस्पताल पहुंच गए हों, इन सबके बावजूद अमरनाथ डिगे नहीं, डटे रहे। वे ऐसे डटे कि उन्होंने पाकिस्तान में तीन शतक लगाए, वेस्टइंडीज में दो शतक लगाए और ऑस्ट्रेलिया में भी तूफानी गेंदबाजी का सामना करते हुए एक सेंचुरी लगाई।
ऐसा नहीं कि क्रिकेट हमेशा मोहिंदर के लिए सुनहरा सफर जैसा था। कुछ गिले-शिकवे भी रहे। मोहिंदर टीम से अंदर-बाहर होते रहे। उन्हें लगता था जैसे चयनकर्ताओं और टीम प्रबंधन के समक्ष वे कहीं न कहीं खुद को पूरी तरह साबित नहीं कर पाए। एक शिकवा यह भी रहा कि वे टीम मैनेजमेंट के फेवरेट नहीं रहे।
उतार-चढ़ाव के दौर में मोहिंदर अमरनाथ अपने पिता से सलाह लेते थे। उन्होंने खुलासा किया था कि वे खूबियों के साथ अपनी खामियों को भी नोट कर लेते थे। जब बल्लेबाजी खराब हो जाती, तो नोटबुक के अच्छे पन्ने खंगालते और देखते कि आखिर कहां कमी रह गई थी।
अमरनाथ के युवा दिनों में ‘रॉकी’ फिल्म विश्व स्तर पर किसी भी फाइटर के लिए प्रेरणा का एक स्रोत बन चुकी थी। मोहिंदर भी बल्लेबाज को एक लड़ाके के तौर पर देखते और रॉकी के किरदार की तरह खुद को फिर से जुनून और ऊर्जा से भर देते थे। यह उनके लिए वापसी करने के कई तरीकों में से एक था।
1983 का दौर मोहिंदर अमरनाथ के करियर में मील का पत्थर था। उन्होंने भारत की पहली विश्व कप जीत में केंद्रीय भूमिका अदा की। वे दुनिया के पहले ऐसे खिलाड़ी बने, जिन्होंने क्रिकेट विश्व कप सेमीफाइनल और फाइनल में ‘मैन ऑफ द मैच’ बनकर इतिहास रच दिया। क्रिकेट में अब तक केवल दो और खिलाड़ी ही इस उपलब्धि को दोहरा पाए हैं।
मोहिंदर अमरनाथ ने 69 टेस्ट मैचों में 42.50 की औसत से 4,378 रन बनाए। उन्होंने 85 वनडे मैचों में 30.53 की औसत के साथ 1923 रन भी बनाए। मोहिंदर अमरनाथ ने अपना अंतिम टेस्ट मैच जनवरी 1988 में खेला था। खेल से संन्यास के बाद भी वे एक क्रिकेट विश्लेषक के तौर पर ऑफ द फील्ड सक्रिय रहे। उन्होंने एक बार कहा था- मुझमें खेलने का जुनून था और इससे भी बड़ा जुनून था अपने वतन के लिए खेलने का। इन चीजों ने मुझे हमेशा इस खेल से जोड़े रखा।
–आईएएनएस
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