गतिशील लोकतंत्र में ऐसा कभी नहीं होगा जब कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका के बीच कोई मतभेद न हो- उपराष्ट्रपति 

गतिशील लोकतंत्र में ऐसा कभी नहीं होगा जब कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका के बीच कोई मतभेद न हो- उपराष्ट्रपति 

उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को कहा कि संसद व्यवधान से त्रस्त है। संसद में अव्यवस्था सामान्य व्यवस्था बन गई है। उन्होंने यह भी कहा कि गतिशील लोकतंत्र में ऐसा कभी नहीं होगा जब कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच कोई मतभेद न हो। इन्हें आपसी सहयोग से हल करने की आवश्यकता है। एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने ये बातें कहीं।

बाधित रही है सदन की कार्यवाही

बता दें कि 13 मार्च को बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत के बाद से लोकसभा में लगातार व्यवधान देखा जा रहा है। विपक्षी सदस्य अदाणी मुद्दे की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच की मांग कर रहे हैं। उपराष्ट्रपति ने आगाह किया, लोगों को देश के भीतर और बाहर काम करने वाली वैश्विक मशीनरी द्वारा भारत की अखंडता के खिलाफ सुनियोजित छद्म युद्ध के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता है। भारत के विकास को बाधित करने, लोकतांत्रिक संस्थानों को बदनाम करने के लिए भीतर और बाहर कपटी ताकतें काम कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि इनकी बातें इस तरह से प्रसारित की जा रही हैं कि ‘गोएबल्स की गतिविधियां महत्वहीन हो जाती हैं। गोएबल्स जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर का प्रचार मंत्री था। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ पवित्र धर्मयुद्ध का मुकाबला पक्षपातपूर्ण रुख से किया जा रहा है। भ्रष्टाचार के मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से कैसे देखा जा सकता है।

विपक्षी नेताओं के आरोपों के बाद उपराष्ट्रपति की टिप्पणी

बता दें कि यह टिप्पणी विपक्षी नेताओं के आरोपों की पृष्ठभूमि में आई है कि सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल कर उन्हें निशाना बना रही है। धनखड़ ने कहा कि भारत को अपनी न्यायिक प्रणाली पर गर्व है। पृथ्वी पर आपको ऐसा सुप्रीम कोर्ट कहां मिलेगा जो मानहानि मामले में किसी आरोपित को राहत देने के लिए बिजली की गति से काम करता हो। प्रधान न्यायाधीश की वैश्विक छवि के साथ बेदाग साख है।

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