आजाद भारत की 'पहली उड़ान': एचटी-2 ने 1951 में रचा इतिहास, दुनिया ने देखी हमारी शान


नई दिल्ली, 12 अगस्त (आईएएनएस)। साल था 1951, तारीख थी 13 अगस्त, और भारत का आसमान गरज रहा था। बेंगलुरु के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के हवाई पट्टी से एक सजीले, चमकते, दो-सीट वाले विमान ने शान से उड़ान भरी। यह कोई साधारण उड़ान नहीं थी। यह थी हिंदुस्तान ट्रेनर-2 (एचटी-2) की पहली सार्वजनिक उड़ान, जो आजाद भारत में डिजाइन और निर्मित पहला विमान था।

उस समय देश को आजादी मिले चार साल ही हुए थे। बंटवारे की पीड़ा, आर्थिक चुनौतियां और सीमित संसाधनों के बावजूद भारत ने यह साबित कर दिया कि सपनों के पंख सिर्फ खरीदे नहीं जाते, उन्हें अपने हाथों से भी गढ़ा जा सकता है।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एचएएल का काम ज्यादातर मित्र राष्ट्रों के विमानों की मरम्मत और असेंबली तक सीमित था। लेकिन आजादी के बाद आरएएफ ने एचएएल को भारत को सौंपा और पहली बार भारतीय इंजीनियरों को अपने विमान डिजाइन करने का मौका मिला। इस मिशन के बारे में पूरी जानकारी डिफेंस पोर्टल भारत रक्षक डॉट कॉम में है। ग्रुप कैप्टन कपिल भार्गव के आर्टिकल (30 नवंबर 1999) में उस शानदार पायलट और एचएएल एचटी 2 की खूबसूरत सी कहानी है।

इस ऐतिहासिक मिशन का नेतृत्व डॉ. वीएम घाटगे ने किया, जिन्होंने जर्मनी में मशहूर वैज्ञानिक डॉ. लुडविग प्रांट्ल के अधीन एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की थी। 11 अक्टूबर 1948 को परियोजना के लिए सरकारी मंजूरी मिली और काम ने रफ्तार पकड़ी। अगस्त 1949 तक विमान का मॉक-अप तैयार हो गया और फरवरी 1950 में इसका अंतिम डिजाइन फाइनल हुआ।

पहले प्रोटोटाइप में 145 एचपी का गिप्सी मेजर इंजन और लकड़ी का प्रोपेलर लगा था। 27 जुलाई 1951 को इसका इंजन पहली बार चला और 5 अगस्त को एचएएल के चीफ टेस्ट पायलट कैप्टन जमशेद कैकोबाद मुंशी यानी जिमी मुंशी ने इसकी “अनौपचारिक” पहली उड़ान भरी। करीब 40 मिनट तक आसमान में करतब दिखाने के बाद उन्होंने इसे बेहतरीन करार दिया।

इसके बाद 13 अगस्त 1951 को एयर वाइस मार्शल सुब्रोतो मुखर्जी की मौजूदगी में एचटी-2 ने अपनी सार्वजनिक उड़ान भरी। मुंशी ने हवाई करतब से सबका दिल जीत लिया और यह दिन भारत के विमानन इतिहास में मील का पत्थर बन गया।

हिंदुस्तान ट्रेनर-2 एक शानदार दो-सीट वाला विमान था, जिसकी तकनीकी खूबियां इसे अपने समय में खास बनाती थीं। इसकी लंबाई 7.53 मीटर थी और वजन 1,016 किलोग्राम था। यह विमान 210 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम गति तक पहुंच सकता था। इसमें सर्कस मेजर 150 हॉर्सपावर का इंजन लगाया गया था, जो बाद में और उन्नत किया गया। एचटी-2 में दो सीटें थीं, एक पायलट के लिए और दूसरी प्रशिक्षु के लिए, जिससे यह प्रशिक्षण के लिए आदर्श था।

1953 से एचटी-2 का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हुआ। भारतीय वायुसेना ने पायलट प्रशिक्षण के लिए लगभग 150 विमान इस्तेमाल किए। नौसेना और फ्लाइंग स्कूलों में भी यह प्रशिक्षक विमान लोकप्रिय रहा। 1958 में यह भारत का पहला निर्यातित विमान बना, जब 12 एचटी-2 घाना को बेचे गए।

लगभग 34 साल तक सेवा देने के बाद 1989 में एचटी-2 को भारतीय वायुसेना से रिटायर किया गया और उसकी जगह एचपीटी-32 ने ली। लेकिन एचटी-2 ने जो आत्मविश्वास, तकनीकी क्षमता और ‘हम भी कर सकते हैं’ का जज्बा दिया, वह आज भी एचएएल की नसों में दौड़ता है।

–आईएएनएस

पीएसके/केआर


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