'कहीं नहीं था वह शहर' के रचयिता वीरेन डंगवाल, जिन्होंने कलम से दिखाया समाज को आईना


नई दिल्ली, 4 अगस्त (आईएएनएस)। ‘कहीं नहीं था वह शहर, जहां मैं रहा कई बरस’ यह कविता है हिंदी साहित्य के मशहूर कवि वीरेन डंगवाल की, जिन्होंने अपनी संवेदनशील और जनवादी कविताओं के माध्यम से सामान्य इंसान की जिंदगी, उसके संघर्ष और आशाओं को बखूबी उकेरा।

वीरेन डंगवाल की कविताएं रोजमर्रा की जिंदगी की सादगी, सामाजिक असमानताओं पर तीखा प्रहार, और मानवीयता के प्रति गहरी संवेदना का अनूठा संगम हैं। उनकी कविता ‘जरा सम्हल कर, धीरज से पढ़, बार-बार पढ़, ठहर-ठहर कर, आंख मूंद कर, आंख खोल कर, गल्प नहीं है, कविता है यह’। उनकी कविता के प्रति प्रेम को समाज के सामने लाने का काम करती है।

5 अगस्त 1947 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में जन्मे वीरेन डंगवाल ने अपनी रचनाओं से हिंदी कविता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित इस कवि का व्यक्तित्व उनकी रचनाओं की तरह ही फक्कड़, यारबाश और जिंदादिल था। उनकी कविताएं न केवल साहित्यिक मंचों पर गूंजती थीं, बल्कि आम जनमानस के दिलों में भी गहरी पैठ रखती थीं।

वीरेन डंगवाल के पिता रघुनंदन प्रसाद डंगवाल यूपी सरकार में प्रथम श्रेणी कमिश्नरी अधिकारी थे, जबकि उनकी मां एक गृहणी थीं। वीरेन ने अपनी शुरुआती शिक्षा मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली और नैनीताल से हासिल की। हालांकि, बाद में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1968 में हिंदी में एमए और डीफिल की डिग्रियां हासिल कीं।

बरेली कॉलेज में हिंदी के प्राध्यापक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने वाले वीरेन डंगवाल ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता की। हालांकि, इलाहाबाद से प्रकाशित अमृत प्रभात में उनके स्तंभ ‘घूमता आईना’ ने काफी लोकप्रियता हासिल की। 1970-75 के बीच उनकी कविताएं साहित्यिक पत्रिकाओं में छपने लगी थीं, जिसने उन्हें हिंदी साहित्य में एक खास पहचान दिलाई।

वीरेन डंगवाल को उनकी लिखी कविताओं के लिए कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्होंने ‘इसी दुनिया में’ (1991), ‘दुश्चक्र में सृष्टा’ (2002), और ‘स्याही ताल’ के लिए खूब वाहवाही भी बटोरी। ‘इसी दुनिया में’ के लिए उन्हें रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1992) और श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार (1993) प्राप्त हुआ, जबकि ‘दुश्चक्र में सृष्टा’ के लिए उन्हें 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और शमशेर सम्मान से सम्मानित किया गया।

वीरेन डंगवाल ने विश्व कविता को हिंदी में लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त, वास्को पोपा, मिरोस्लाव होलुब, तदेऊश रोजेविच और नाजिम हिकमत जैसे कवियों की रचनाओं के अनुवाद किए। वीरेन डंगवाल की कविताएं जनवादी और मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित थीं। वे जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे और सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे।

28 सितंबर 2015 को 68 वर्ष की आयु में बरेली में उनका निधन हो गया। वीरेन डंगवाल की कविताएं आज भी हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं। उनकी रचनाएं सामान्य जीवन की असाधारण कहानियों को बयान करती हैं, जो पाठकों को समाज और मानवता के प्रति संवेदनशील बनाती हैं।

–आईएएनएस

एफएम/जीकेटी


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