औरत बिकती है,बोलो खरीदोगे ?

डॉ धीरज फूलमती सिंह
वरिष्ठ स्तंभकार

रत ममता की मूर्ती होती है,नेक दिल होती है, रहम दिल होती है। विश्व का ऐसा कोई धर्म नही है जो नारीवाद का नारा देते हुए,उनके सम्मान की बात ना करता हो,उनको देवी का दर्जा दे ,पूजनीय न बनाता हो लेकिन मुझे लगता है,आज भी यह किताबी बातों से कुछ अधिक नही है,यद्यपि सामाजिक और धार्मिक हकीकत क्या है? हम आप अच्छी तरह भलिभांती समझते-बुझते है,उस से वाकिफ है।

महिला सशक्तिकरण के समर्थक पुरूषों का जीवन महिलाओ के साथ रिश्तों में स्याह न हो, लगभग असंभव है। उनके जीवन में दो-चार महिलाओं का छुपे तौर पर समावेश ना हो,मुझे शंका है। आज महिला सशक्तिकरण की बातें करना,महिलाओ को अपनी तरफ आकर्षित कर उनका शोषण-दमन करने का एक जरिया,एक बहाना भी बन चुका है।

आप को शायद न पता हो कि जंग सीमाओं पर नहीं, औरतों के शरीरों पर भी लड़ी जाती है ताकि मर्द अपनी हार का गुस्सा या जीत का जश्न मना सकें! घरेलू हिंसा इस युद्ध का एक तरह से छोटा सा युद्धाभ्यास होता है। मुझे विश्वास है,भारत में मुस्लिम शासन की नींव पर खडी इमारतों का काला इतिहास किसी को भूला ना होगा ? भारत पर आक्रमण करने वाले सुदूर देश से आए क्रूर मुस्लिम आक्रांताओ ने हमारे मुल्क पर आक्रमण कर ना सिर्फ भारत की आत्मा को दौंरा वरन भारत की औरतों को युद्ध बंदियों के बहाने,उन पर अत्याचार किये,बलात्कार किये, नाजायज औलादें पैदा की,इस पर भी मन ना भरा तो उनको हवस मिटाने के साधन के रूप में बाजार के हवाले कर चौक पर बेच दिया जाता था। वे बेबस थी, मजबूर थी,कितनी तडपती थी, रोती-गिडगीडाती थी,हाथ जोड़,पैर पकड़,उन्हे बरी करने की मिन्नते करती मगर उन जल्लादों की रूह पिघलती नही थी,न कापती थी,न धिक्कारती ही थी, औरतों की आत्मा को छलनी-छलनी करने के बाद उल्टे उन्हे मजा आता।

“दूसरे विश्व की दर्दनाक घटना है। एक 13 साल की लडकी थी, जब खेत पर जाते हुए जापानी सैनिकों ने उसे उठा लिया और ट्रक में डालकर बदबूदार- ग्रीस और कीचड़ से सने मोजे उसकं मूँह में ठूस दिये। अब वह चिल्लाए भी तो सुनने वाला कौन ? आवाज हलक में ही रूक जाए,बस गाल भींचते और बेबस फैली आँखे ही नजर आती। फिर बारी-बारी से सबने उसके साथ बलात्कार किया। कितनों ने किया,नहीं पता। वह दर्द को सहन न कर सकी और बेहोश हो गई। गुप्तांग से खून रीस रहा था। होश आया तो जापान के किसी हिस्से में थी। एक लंबे कमरे में तीन संकरे रोशनदान थे, जहां लगभग 400 कोरियन लड़कियां भेड़-बकरियों के बाडे की तरह पहले से ही ठूंसी हुई थीं। उसी रात पता लगा कि उन्हे पाच हजार से ज्यादा जापानी सैनिकों को ‘खुश करना’ है मतलब एक कोरियन लड़की को रोज औसतन चालीस से ज्यादा मर्दों की हवस का शिकार होना है।”

बात दूसरे विश्व युद्ध की है। जापान ताकतवर था। उसके लाखों सैनिक जंग लड़ रहे थे। पेट की भूख मिटाने के लिए राशन और अहम को शांत करने के लिए गोला-बारूद तो उनके पास थे, लेकिन शरीर की भूख के लिए लड़कियां नहीं थीं। तो बेहद व्यवस्थित जापान ने इसके लिए एक तरीका निकाला। जापान के सैनिक ‘कुंवारी’ कोरियन, चीनी,फिलीपीनी लड़कियों को पकड़ते और अपने आराम गाह में कैद कर लेते। उनका आराम गाह मतलब जहां लड़कियां यौन दास (सेक्स स्लेव)की तरह रखी जातीं।

कच्ची उम्र की एक-एक बच्ची रोज 40 से 50 पके हुए सैनिकों के शरीर की भूख मिटाती। जो विरोध करती, उसका सामूहिक बलात्कार एक सबक की तरह सारी लड़कियों के सामने होता और फिर बंदूक की नोंक मार-मारकर ही उसकी जान ले ली जाती। गोली से नहीं- क्योंकि सैनिक गुलाम लड़कियों पर एक गोली खर्च करना भी तौहीन समझते थे।

लड़कियां गर्भवती न हों, इसके लिए भी बाक़ायदा तगड़ा बंदोबस्त था। गर्भ गिराने के लिए उन्हे हर हफ्ते एक इंजेक्शन दिया जाता। इस इंजेक्शन में ऐसा केमिकल होता, जो नसों में घुलकर गर्भ को रोकता या गर्भपात हो जाता। इस दवा के ढेरों साइड-इफेक्ट थे। लड़कियों की भूख मर जाती, चौबीसों घंटे सिरदर्द रहता। पेट में ऐंठन होती और अंदरुनी अंगों से खून रिसता रहता, लेकिन ये कोई समस्या नहीं थी। जरूरी ये था कि वे प्रेग्नेंट हुए बगैर सैनिकों की भूख मिटाती रहें।

इन लडकियों में एक बात सामान्य थी कि रोज पचासों मर्दों की भूख मिटाने वाली किसी लड़की को यौन बीमारी हो जाए,तो वो रातोंरात गायब हो जाती। जापानी सैनिक सबूत मिटाने, साफ-सफाई और हेल्थ को लेकर काफी उस्ताद थे!”
जंग में मिट्टी के बाद जिसे सबसे ज्यादा रौंदा-कुचला गया, तो वो है औरत! विश्व युद्धों के अलावा छिटपुट लड़ाइयों में भी औरतें यौन गुलाम बनती रहीं।सात-आठ साल की बच्चियां जिनके गुदगुदे गाल देखकर प्यार करने को दिल चाहता है, उन बच्चियों को ड्रग्स दिए गए ताकि उनकी देह भर जाए और वे सैनिकों को औरत की तरह सुख दे सकें।
आधुनिक वेश्यावृत्ति व्यवसाय में भी ऐसा ही तरीका अपनाया जाता है। कमसिन लडकियों को गदराया बदन का दिखाने के लिए उनको ऐसे इंजेक्शन दिये जाते है,वर्ना ग्राहक आने से रहे। औरतों का बदन ही तो है,जो हवस की आग को और बढाता है। बाकी औरत की औकात ही क्या होती है? ईश्वर ने उन्हे मर्द की भूख शांत करने के लिए ही तो बनाया है। ऐसा मै नही,कई धार्मिक किताबे बताती है।

वेश्यावृत्ति के व्यवसाय में भी वेश्याएं अपनी सुरक्षा के लिए पुरुषो को रखती है। मुझे समझ नही आता, जो पुरूष उनकी बेशकीमती इज्जत पहले ही लूट चुका होता है,समाज में नोच चुका होता है। पता नही,वे सुरक्षा उनसे किस की करवाती है ? दुनिया का पहला धंधा वेश्यावृति भी औरतो की खरीद फरोख्त से शुरू होकर उनके शरीर को निचोड़ने पर ही खत्म होता है।

वियतनाम युद्ध के बाद अचानक से अमेरिकी सेना द्वारा किये गये कुकर्मो की निशानियां अचानक से बेतहाशा पैदा होने लगी। बेशर्मी देखिए कि इस का दोष भी वियतनामी महिलाओं पर ही मढा जाने लगा,जैसे अमेरिकी सेना को बलात्कार करने का न्योता उन्होने खुद होकर दिया था,यह वही अमेरिका था जो संसार में महिला सशक्तिकरण का झंडा बंदार बना फिरता है।

आधुनिक विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि किसी सामूहिक बलात्कार की शिकार स्त्री के योनी की बडे तरतीब से मरम्मत कर उसकी सर्जरी करती है। ताकि उन दर्दनाक व खौफनाक यादों की कोई निशानी नजर में ना रहे। योनी की मरम्मत के बजाय क्या कोई ऐसी चीज नहीं होनी चाहिए,जो औरतों की चिथड़े-चिथड़े हो चुकी आत्मा को सिल सके? दूसरी तरफ समाज भी कितना बेरहम है कि जिस लडकी का बलात्कार हुआ है,जिम्मेदार भी उसे ही ठहराता है। वहीं अंधेरी सुनसान रात में एक अकेली लडकी पुरूष के लिए सुरक्षा की जिम्मेदारी नही, वरन हवस मिटाने का मौका होती है और कम कपडों में तो जैसे वो जबरदस्ती करने का निमंत्रण दे रही होती है और ऐसे में पुरुष मुफ्त में मौका उठाना अपना हक समझता है।
बहुत दिन नही हुए,अभी हाल की ही बात है, जब इराक और सिरीया में अपना खौफ फैलाए आतंकवादी गुट आई एस आई एस के सुन्नी मुस्लिम मुसटंड्डे काफीर यजीदी महिलाओं का अपहरण कर उनको सेक्स गुलाम के तौर पर इस्तेमाल करते थे। हालाकि यजीदी भी इस्लाम धर्म का ही एक फिरका है लेकिन सुन्नी मुस्लिम उन्हे मुसलमान नही मानते, वे कहते है कि यजीदी शैतान की पूजा करते है।
क्या विधवा, क्या विवाहिता, क्या कुंवारी कमसीन उनके लिए तो सभी यजीदी लड़कियां धर्म की लड़ाई के बहाने शरीर की भूख मिटाने का जरिया भर थी। जैसे ये लडकियां इनकी कोई निजी जागीर हो,जब मन किया,तब उठा लिया। एक यजीदी लडकी मुराद ने अपनी किताब ” दी लास्ट गर्ल ” में अपनी और अपने जैसी कई बेबस औरतों की दर्दनाक आप बीती लिपीबद्ध की है।
यही हाल तालिबान शासन में अफगानिस्तान का था और बेहयाई यह की विरोध करने पर सरेआम लडकियों को पत्थर मार-मार कर उनकी हत्या कर दी जाती थी,मकसद था,शरीर की भूख मिटाना और बहाना होता धर्म युद्ध और धार्मिक इंसाफ! धार्मिक दंगो का हाल देख लिजिए, दंगे ईश्वर और धर्म को बचाने के लिए होते है और बलात्कार करवा इज्जत का त्याग औरतों को करना पडता है,काश की औरतों की इज्जत बचाने के लिए भी कभी कोई दंगा होते!
सीमा पर युद्ध रुक जाएंगे। मुल्क आपस में हाथ मिलाएंगे। तेल-कोयला-मोबाइल-मसाला के व्यापार चल पड़ेंगे। रुकी रहेंगी तो औरतें। वे औरतें, जो युद्ध में शामिल हुए बिना बदनाम हुई,रौंदी गई, शिकार हुई और मारी गई जैसे इनका पैदा होना ही कोई गुनाह हो! पाप हो! और उपर से देश,समाज आज के दिन,महिला दिवस की बधाई और शुभकामनाये दे रहा है!

          

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