गोरखपुर/ संतकबीरनगर । जन्म से पहले भ्रूण (फीटस) में अनगिनत बीमारियों की पहचान और समय रहते उपचार संभव है। अल्ट्रासाउंड और एमआरआई के जरिये वक्त पर इनका पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा कई बीमारियों की पहचान कर प्रसव के बाद नवजात का बेहतर इलाज भी किया जा सकता है। इन्हीं बीमारियों में फेटल लंग मास (भ्रूण के फेफड़े में ट्यूमर) भी है। इसके बारे में बता रहे हैं डा. बीके चौधरी, एमबीबीएस, डीएमआरडी, रेडियोलाजिस्ट।
उन्होने बताया कि एक भ्रूण के फेफड़े का ट्यूमर एक प्रकार की गांठ है जो एक अजन्मे बच्चे के फेफड़े के अंदर या उसके बगल में बढ़ता है। जब गर्भावस्था के दौरान एक अजन्मे बच्चे के फेफड़े बनते हैं, तो वे लोब नामक भागों में विकसित होते हैं। लोब सांस की नली से जुड़ा रहता है ताकि जब बच्चा जन्म के बाद सांस लेना शुरू करे तो हवा उसमें अंदर और बाहर जा सके। एक भ्रूण में फेफड़े का ट्यूमर बच्चे के जन्म से पहले समस्या पैदा कर सकता है यदि वह पर्याप्त रूप से बड़ा हो जाता है। इससे भ्रूण का फेफड़ा हृदय और रक्त वाहिकाओं पर दबाव डालता है, तो हृदय को रक्त पंप करने में परेशानी होती है। यदि हृदय बच्चे की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकता है, तो फेफड़ों और पेट में तरल पदार्थ जमा हो जाता है, जिसे हाइड्रोप्स फ़ेटेलिस कहा जाता है।
इसके अलावा नवजात के जन्म के बाद बैक्टीरियल संक्रमण हो सकता है। चूंकि फेफड़ों के ट्यूमर में असामान्य वायुमार्ग होते हैं, इसलिए संक्रमण के कारण बैक्टीरिया और श्लेष्म को साफ नहीं किया जा सकता है। बार-बार होने वाले संक्रमण को रोकने के लिए बालरोग विशेषज्ञ अक्सर जन्म के बाद ट्यूमर को हटाने की सलाह देते हैं।
डॉ. नवनीत सूद, पल्मोनरी कंसल्टेंट, धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल ने बताया कि भ्रूण के फेफड़े या उसमें घाव, ऐसे दोष हैं जो बच्चे के जन्म से पूर्व ही फेफड़ों में होने लगते हैं। गर्भावस्था में नवजात के फेफड़ों के असामान्य विकास के कारण ऐसी दिक्कतें आती हैं। गर्भावस्था में अल्ट्रासाऊंड के माध्यम से इसका पता लगाया जा सकता है। बच्चे के पैदा होने के बाद वे जैसे-जैसे बड़े होते हैं तो फेफड़े का उचित विकास नहीं हो पाता, जिस वजह से बच्चे को सांस लेने में परेशानी आती है। इससे बच्चे का शारीरिक विकास भी बाधित हो जाता है। उचित समय पर इसका पता चल जाए तो कुछ दिक्कतों का इलाज किया जा सकता है।
फेफड़ों के ट्यूमर का इलाज : डा. चौधरी ने बताया कि भ्रूण के फेफड़ों के ट्यूमर का पता आमतौर पर गर्भावस्था के लगभग 20 सप्ताह के दौरान होने वाले अल्ट्रासाउंड में लगाया जाता है। अल्ट्रासाउंड के दौरान भ्रूण में विकसित होने वाले अंगों में किसी भी प्रकार की विकृति पकड़ में आ सकती है। इसके आधार पर डाक्टर आगे इलाज की दिशा तय करते हैं। जांच के दौरान फेफड़ों में किसी भी प्रकार की अस्वाभाविक गांठ दिखने पर डाक्टर ट्यूमर की सीमा निर्धारित करने के लिए भ्रूण का एमआरआई कराते हैं। इन परीक्षणों के दौरान बच्चे की अन्य विसंगतियों के लिए जांच की जाती है। डाक्टर जांच के निष्कर्षों की समीक्षा करने के बाद जन्म के बाद सर्जरी पर विचार कर सकते हैं। यदि नवजात को प्रसव के बाद सर्जरी की जरूरत होती है, तो नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में रखना पड़ता है। आपरेशन के बाद नवजात को कुछ दिन डाक्टर की निगरानी में रखा जाता है। डाक्टर ने बताया कि आमतौर पर अधिकांश भ्रूण के फेफड़े के ट्यूमर बच्चे के जन्म से पहले लक्षण पैदा नहीं करते हैं। लेकिन बच्चे के जन्म के बाद ट्यूमर होने के कारण सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। ट्यूमर फेफड़ों में पर्याप्त हवा भरने की क्षमता को कम कर सकता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है। इससे बचने की सलाह पर उन्होंने ने बताया कि गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था में किसी अच्छे रेडियोलाजिस्ट से अल्ट्रासाऊंड करवाना चाहिए। रेडियोलॉजिस्ट यह भी देखता है कि ट्यूमर आसपास के फेफड़े और हृदय को कैसे प्रभावित करता है। इसी के आधार पर अन्य परीक्षणों की सिफारिश कर सकता है, जिनमें एमआरआई, अल्ट्रासाउंड स्कैन (भ्रूण इकोकार्डियोग्राम) गर्भावस्था में और बच्चे के पैदा होने के बाद सीटी स्कैन और एक्स-रे शामिल हैं।
गर्भावस्था में भी इलाज संभव : असामान्य हालात में फेफड़े का ट्यूमर छाती में रक्त के प्रवाह को बाधित कर सकता है। उपचार के दौरान फेफड़े के ट्यूमर में थोरैकोमनियोटिक शंट डाला जाता है। थोरैकोमनियोटिक शंट के जरिए ट्यूमर से द्रव को निकाल दिया जाता है। तरल पदार्थ को निकालने से बच्चे के फेफड़ों को सामान्य रूप से विकसित होने का मौका मिलता है। यदि ट्यूमर बड़ा है और अन्य अंगों को प्रभावित कर रहा है, तो ट्यूमर को हटाने के लिए भ्रूण की सर्जरी (गर्भ में शिशु की सर्जरी) की जा सकती है। भ्रूण के फेफड़े में ट्यूमर क्यों होता है? के जवाब में उन्होंने बताया कि फिलहाल इसके बनने के वाजिब कारणों का पता नहीं चला है। अभी तक इसे आनुवंशिक विकार के कारण माना जाता है।
एम्स में आपरेशन के बाद सुर्खियों में आया ‘फीटल लंग मास’
एम्स में देश में पहली बार रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन तकनीक का इस्तेमाल करके डाक्टरों ने 27 सप्ताह के गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे गर्भस्थ शिशु के फेफड़े के ट्यूमर की सर्जरी करने में सफलता पाई है। अस्पताल के गायनी विभाग के डाक्टरों ने यह सर्जरी की थी। इसके करीब डेढ़ माह बाद शिशु ने जन्म लिया। जन्म के वक्त शिशु का फेफड़ा बिल्कुल ठीक था। एम्स के डाक्टरों का दावा है कि रेडियो फ्रिक्वेंसी आब्लेशन से दुनिया में गर्भस्थ शिशु के फेफड़े की दूसरी व देश में पहली सफल सर्जरी है। एम्स के गायनी विभाग में फीटल मेडिसिन की मदद से लंबे समय से गर्भस्थ शिशुओं को ब्लड चढ़ाने सहित कई तरह के प्रोसिजर होते रहे हैं। एम्स के डाक्टर अब तक करीब 1500 गर्भस्थ शिशुओं का प्रोसिजर कर चुके हैं।