दुर्लभ एएलएस से पीड़ित युवा मरीजों के इलाज में प्रायोगिक दवा से मिली सफलता की उम्मीद

नई दिल्ली, 23 मई (आईएएनएस)। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने बताया है कि एक नई दवा के परीक्षण से एक दुर्लभ बीमारी ‘एएलएस’ से पीड़ित कुछ युवा मरीजों की हालत में काफी सुधार देखा गया है। ‘एएलएस’ यानी एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस एक प्रोग्रेसिव न्यूरोडिजेनेरेटिव डिसऑर्डर है।
एएलएस एक गंभीर बीमारी है जिसमें दिमाग और रीढ़ की हड्डी की नसें धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं। इससे मरीज को चलने, संतुलन बनाए रखने, शरीर को समन्वित करने और यहां तक कि सांस लेने में भी कठिनाई होने लगती है। इसे ‘लू गेहरिग रोग’ भी कहा जाता है।
अब तक जो दवाएं आजमाई गई थीं, वे सिर्फ बीमारी की रफ्तार को धीमा कर पाती थीं, लेकिन उलेफनेर्सन (जिसे पहले जैकीफ्यूसेन के नाम से जाना जाता था) नामक इस नई दवा से कुछ मरीजों में तो स्थिति पहले से बेहतर भी हो गई।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के न्यूरोलॉजिस्ट और वैज्ञानिक डॉ. नील श्नाइडर ने कहा कि आमतौर पर इस बीमारी की दवा से इतना सुधार देखने की उम्मीद नहीं होती, लेकिन इस बार एक मरीज में तो हैरान कर देने वाला सुधार देखा गया।
डॉ. श्नाइडर और उनकी टीम ने इस दवा का परीक्षण ऐसे 12 मरीजों पर किया, जिन्हें एएलएस की एक खास किस्म थी जो ‘एफयूएस’ नामक जीन में खराबी की वजह से होती है। यह किस्म बहुत आक्रामक होती है और अक्सर किशोरों या युवाओं में शुरू होती है।
इन मरीजों में दो के नतीजे बेहद आशाजनक रहे। एक युवती को 2020 से यह दवा दी जा रही है। पहले वह चल नहीं पाती थी और सांस लेने के लिए मशीन की जरूरत थी। अब वह बिना सहारे चल सकती है और बिना वेंटिलेटर के सांस ले सकती है।
ऐसे ही एक 35 साल के पुरुष मरीज में बीमारी शुरू होने के लक्षण नहीं थे लेकिन मांसपेशियों की जांच में संकेत मिले थे। उसे तीन साल से लगातार यह दवा दी जा रही है और आज तक उसमें कोई लक्षण नहीं दिखे।
छह महीने की दवा के बाद मरीजों में नर्व डैमेज को दर्शाने वाला एक खास प्रोटीन (न्यूरोफिलामेंट लाइट) 83% तक कम हो गया। यह दिखाता है कि दवा ने असर दिखाया।
हालांकि सभी मरीजों की हालत में सुधार नहीं हुआ, लेकिन कुछ की बीमारी धीमी हुई और उन्होंने अपेक्षाकृत लंबा जीवन जिया। इस दवा को अब पूरी दुनिया में और बड़े स्तर पर आजमाया जा रहा है।
डॉ. श्नाइडर ने कहा, “अगर हम सही समय पर इलाज शुरू करें और सही लक्ष्य पर ध्यान दें, तो सिर्फ बीमारी को रोकना ही नहीं बल्कि कुछ नुकसान को भी पलटा जा सकता है।”
–आईएएनएस
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