धरती को बचाने में बॉलीवुड भी पीछे नहीं, ‘कड़वी हवा’ से ‘वेल डन अब्बा’ तक हैं उदाहरण


मुंबई, 22 अप्रैल (आईएएनएस)। ‘पृथ्वी है तो जीवन है’, यह सत्य है और बिना पृथ्वी के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वातावरण में बदलाव से लेकर पर्यावरण संरक्षण तक, बॉलीवुड में ऐसी कई फिल्में बनीं, जिनमें पृथ्वी के महत्व के साथ ही प्रकृति को बचाने के संघर्ष के लिए खास संदेश भी दिए गए। इस सूची में ‘कड़वी हवा’, ‘जल’ से लेकर ‘वेल डन अब्बा’ जैसी फिल्में भी हैं। ये फिल्में बताती हैं कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हानिकारक हो सकती है। पृथ्वी दिवस के मौके पर आइए इन फिल्मों के बारे में जानते हैं…

बॉलीवुड में ‘कड़वी हवा’ से लेकर ‘तुम मिले’ जैसी फिल्में आईं, जिन्होंने बताया कि अगर हम प्रकृति को संरक्षित नहीं करेंगे तो फिर प्राकृतिक आपदाओं का हमें सामना करना पड़ेगा। सूखा, कम बारिश, बाढ़ ये सब प्रकृति के साथ हुए छेड़छाड़ के ही नतीजे हैं।

साल 2018 में रिलीज हुई थी फिल्म केदारनाथ। आपदा पर आधारित फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत और सारा अली खान मुख्य भूमिका में थे। फिल्म में साल 2013 में आई बाढ़ के जिक्र के साथ मानवीय संवेदनाओं को भी दिखाया गया था। फिल्म का निर्देशन अभिषेक कपूर ने किया है।

अभिनेता संजय मिश्रा की फिल्म ‘कड़वी हवा’ क्लाइमेट चेंज और प्रकृति में फैल रहे प्रदूषण की ओर ध्यान आकर्षित करती है। 2017 में रिलीज हुई फिल्म में खास मैसेज है कि यदि हम कुदरत की देखभाल नहीं करेंगे और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में लापरवाही करेंगे तो इसका परिणाम भयानक होगा। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर आधारित फिल्म का निर्देशन नील माधव पांडा ने किया है और निर्माण दृश्यम फिल्म्स, अक्षय परीजा और नील माधव पांडा ने मिलकर किया है।

फिल्म में संजय मिश्रा के साथ अभिनेता रणवीर शौरी मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म की कहानी में जलवायु परिवर्तन से बढ़ते जलस्तर और सूखे की समस्या को मनोरंजक तरीके से पेश किया गया है।

पानी के संरक्षण पर बनी कॉमेडी-ड्रामा ‘कौन कितने पानी में’ साल 2015 में आई थी। फिल्म के केंद्र में पानी का संरक्षण और उसका महत्व था, जिसे हल्की-फुल्की कहानी के माध्यम से दर्शकों के सामने पेश किया गया था। नील माधव पांडा के निर्देशन में बनी फिल्म में सौरभ शुक्ला, कुणाल कपूर, राधिका आप्टे और गुलशन ग्रोवर मुख्य भूमिकाओं में हैं।

साल 2014 में आई थी ‘जल’। फिल्म में अभिनेता पूरब कोहली और कीर्ति कुल्हारी मुख्य भूमिका में हैं। पानी की समस्या के साथ फिल्म में एक प्रेम कहानी भी दिखाई गई है। कच्छ के रण में सेट फिल्म का मुख्य किरदार अपने गांव में सूखे की समस्या को हल करने की कोशिश करता है। फिल्म में अभिनेत्री कीर्ति कुल्हारी विलुप्त होते पक्षियों को बचाने में भी अहम भूमिका निभाती हैं। गिरीश मलिक के निर्देशन में बनी फिल्म का प्रीमियर बुसान अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2013 के ‘न्यू करंट्स’ सेक्शन में और भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के ‘भारतीय पैनोरमा’ सेक्शन में किया गया था।

साल 2009 में आई थी निर्देशक श्याम बेनेगल की फिल्म ‘वेल डन अब्बा’। फिल्म की थीम स्पष्ट और शानदार थी। इसमें एक बावड़ी को केंद्र में रखकर दिखाया गया कि कैसे सरकारी घपले होते हैं और सरकार की योजनाएं जब भ्रष्टाचार के कोहरे में धुंधली हो जाती हैं तो गांव वालों को किस तरह से पानी की समस्या से जूझना पड़ता है। खोखले सिस्टम की पोल खोलती फिल्म में अभिनेता बोमन ईरानी दोहरी भूमिका में हैं। उनके साथ फिल्म में अभिनेत्री मनीषा लांबा समेत अन्य कलाकार अहम भूमिकाओं में हैं।

‘वेल डन अब्बा’ साल 2007 में आई मराठी फिल्म ‘जौ तिथे खाऊ’ की रीमेक है। सामाजिक मुद्दे पर बनी फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए साल 2009 का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार अपने नाम किया था।

–आईएएनएस

एमटी/एबीएम


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