दक्षिण पूर्व एशिया में 2050 तक कैंसर के नए मामलों और मौतों की संख्या में हो सकती है 85 प्रतिशत वृद्धि : डब्ल्यूएचओ


नई दिल्ली, 3 फरवरी (आईएएनएस)। दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में कैंसर के नए मामलों और मौतों की संख्या में 85 प्रतिशत वृद्धि होने की आशंका है, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सोमवार को विश्व कैंसर दिवस से पहले यह जानकारी दी।

हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है।

डब्ल्यूएचओ दक्षिण-पूर्व एशिया की क्षेत्रीय निदेशक साइमा वाजेद ने कहा, “इस साल की थीम ‘यूनाइटेड बाय यूनिक’ हमें कैंसर के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की याद दिलाती है।”

उन्होंने आगे कहा, “डब्ल्यूएचओ हर मरीज के अलग-अलग अनुभवों को महत्व देता है और इस बात को स्वीकार करता है कि स्वास्थ्य सेवाएं डॉक्टरों, परिवार, दोस्तों और समाज के सहयोग से मिलकर बेहतर हो सकती हैं।”

साल 2022 में, दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में 24 लाख नए कैंसर के मामले सामने आए थे, जिनमें 56,000 बच्चे भी शामिल थे। इस दौरान 15 लाख लोगों की कैंसर से मौत हुई थी।

वाज़ेद ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के सभी क्षेत्रों में, हमारे क्षेत्र में होंठ और मुंह के कैंसर, गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर और बचपन में होने वाले कैंसर के सबसे ज्यादा मामले पाए गए। अनुमान है कि 2050 तक इस क्षेत्र में कैंसर के नए मामलों और मौतों की संख्या 85 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र के कई देशों ने कैंसर नियंत्रण में कुछ प्रगति की है। इनमें तंबाकू सेवन में कमी एक बड़ी उपलब्धि है। वाज़ेद ने कहा, “तंबाकू का उपयोग कैंसर का एक बड़ा कारण है, और हमारे क्षेत्र में तंबाकू सेवन में सबसे तेजी से गिरावट आई है।”

उन्होंने बताया कि छह देशों ने कैंसर नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय योजनाएं बनाई हैं, जबकि दो देशों ने कैंसर को अपनी गैर-संक्रामक रोग योजना में शामिल किया है ताकि कैंसर की रोकथाम और नियंत्रण को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया जा सके।

आठ देशों ने ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) का टीकाकरण राष्ट्रीय स्तर पर शुरू किया है।

इसके अलावा, 10 देश बाल कैंसर नियंत्रण के वैश्विक प्रयासों को अपना रहे हैं, और 7 देशों में कैंसर के मामलों को दर्ज करने के लिए विशेष जनसंख्या-आधारित रजिस्टर बनाए गए हैं। 10 देशों में उन्नत स्तर की कैंसर देखभाल सेवाएं उपलब्ध हैं, जो 50 प्रतिशत या उससे अधिक जरूरतमंद मरीजों तक पहुंच रही हैं।

हालांकि, अब भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं। कैंसर नियंत्रण की योजनाओं का सही तरीके से पालन नहीं हो पा रहा है, जिससे इनका प्रभाव कम हो रहा है।

इस क्षेत्र में सुपारी जैसे कैंसर पैदा करने वाले तत्वों पर नियंत्रण के लिए ठोस नीतियां नहीं हैं।

वाजेद ने कहा कि देर से बीमारी की पहचान और बढ़ते कैंसर मामलों को संभालने की राष्ट्रीय क्षमता की कमी भी कैंसर नियंत्रण में बाधा बन रही है।

–आईएएनएस

एएस/


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