नई दिल्ली, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)। इस साल का अंतिम सूर्य ग्रहण बुधवार की रात लगेगा। यह ग्रहण आपके लिए कैसा होगा? इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव किस पर पड़ेंगे? वैश्विक परिदृश्य में यह सूर्य ग्रहण कैसा होगा? इस विषय पर आईएएनएस ने धार्मिक विद्वानों से चर्चा की।
काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित हरेन्द्र उपाध्याय ने बताया, “यह साल का अंतिम सूर्य ग्रहण है, जो कन्या राशि में लग रहा है। इस समय केतु वहां मौजूद है और राहु एक नब्बे डिग्री का कोण बना रहा है। राहु पराबैंगनी विकिरण (अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन) और केतु अवरक्त विकिरण (इन्फ्रारेड रेडिएशन) उत्पन्न कर रहा है, जिससे इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा, भले ही यह ग्रहण दृश्यमान न हो। इस ग्रहण का असर विश्वभर में सैद्धांतिक मतभेदों को बढ़ा सकता है। ये दोनों ग्रह एक-दूसरे से अलग हैं और प्रेम को तोड़ने की प्रवृत्ति रखते हैं। इसलिए, मौजूदा युद्धों के रुकने की उम्मीद कम दिखती है। सूर्य ग्रहण भारतीय समयानुसार रात 9:13 बजे शुरू होगा और सुबह 3:17 बजे समाप्त होगा। इस दौरान अन्य देशों के बीच संघर्ष की संभावना बढ़ सकती हैं।”
भारत में इस ग्रहण का क्या असर होगा और क्या उपाय किए जा सकते हैं? इस सवाल पर उन्होंने बताया, “सबसे पहले हमें अपने देश के नेताओं से संयम बरतने की अपेक्षा रखनी चाहिए, खासकर नकारात्मक सोच वाले पड़ोसियों के संबंध में। ऐसे पड़ोसियों से कुछ समय तक दूर रहना और सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। दूसरी बात यह है कि इस नवरात्रि के दौरान देवी की आराधना और शक्ति की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि शक्ति ही सर्वोच्च है। सत्य ही इस ब्रह्मांड का मूल है, और इसके अलावा कुछ भी स्थायी नहीं है।”
दिल्ली के वैदिक तंत्र गुरु आचार्य शैलेश तिवारी ने कहा, “यह कुंडलाकार सूर्य ग्रहण है, जो भारत में दृश्य नहीं है। भारत के लिए यह सुखद है, क्योंकि कुंडलाकार सूर्य ग्रहण अमावस्या तिथि पर होता है, जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है। इस प्रकार के सूर्य ग्रहण को अग्नि का प्रतीक माना जाता है, और यह पूरी दुनिया के लिए शुभ नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा, “हम देख सकते हैं कि इजरायल और ईरान के बीच तनाव पहले से ही बढ़ चुका है, और यह सूर्य ग्रहण भी वैश्विक संकट को बढ़ाने वाला है। यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष भी जारी है, और इजराइल को अमेरिका का समर्थन मिल रहा है, जबकि ईरान को रूस और चीन का। इस स्थिति में दुनिया एक बड़े युद्ध की ओर बढ़ती दिख रही है, जिससे भारतीय शेयर बाजार (सेंसेक्स) में गिरावट और सोने की कीमतों में वृद्धि हो सकती है। इसके साथ ही, रियल एस्टेट की कीमतों में भी गिरावट आ सकती है, जो राजनीतिक उथल-पुथल और शासन में बदलाव का संकेत देती है।”
उन्होंने कहा, “सूर्य ग्रहण का नवरात्रि के अवसर पर होना अशुभ माना जाता है। इस वर्ष नवरात्रि में माता दुर्गा का आगमन पालकी पर हो रहा है, जो लाखों लोगों की मृत्यु का संकेत भी देता है। इस प्रकार का सूर्य ग्रहण निश्चित रूप से युद्ध और मानव हानि की संभावनाओं को बढ़ा रहा है, जिससे यह कहना मुश्किल नहीं है कि यह ग्रहण दुनिया के लिए शुभ संकेत नहीं है।”
गाजियाबाद के पंडित शैलेंद्र पांडेय बताते हैं, “इस ग्रहण के प्रभाव के कारण, अगले एक महीने में वित्तीय बाजारों पर सबसे अधिक असर पड़ेगा। शेयर बाजार में गिरावट और आर्थिक संकट जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे पूरी दुनिया में वित्तीय उथल-पुथल मच सकती है।”
उन्होंने आगे बताया, “जहां तक इजरायल और ईरान के बीच चल रहे संघर्ष की बात है, यह अशांति अक्टूबर में बढ़ेगी, लेकिन वर्तमान में विश्व युद्ध के संकेत नहीं दिखते। बड़े युद्ध के लिए थोड़ा और समय लग सकता है, लेकिन यह तनाव अक्टूबर में काफी बढ़ सकता है और चरम पर पहुंच सकता है। अभी यह युद्ध केवल मध्य पूर्व में है, लेकिन इसके प्रभाव अमेरिका और यूरोप, जैसे ब्रिटेन और अमेरिका, पर भी पड़ सकते हैं। अगले साल, यानी 2025 में, जब बृहस्पति अपनी कक्षा बदलेंगे, तो यह लगभग ढाई साल का समय दुनिया के लिए कठिन हो सकता है। इस ग्रहण के साथ ही कठिन समय की शुरुआत हो चुकी है, और इसका प्रभाव अक्टूबर के पूरे महीने में देश-दुनिया पर स्पष्ट रूप से दिखाई देगा।”
दिल्ली के झंडेवालान मंदिर के पुजारी फनेंद्र प्रसाद ने बताया, “जो सूर्य ग्रहण लग रहा है, वह भारत में दृश्य नहीं है, इसलिए इसका कोई सूतक दोष नहीं माना जाएगा। जब ग्रहण होता है, तो आमतौर पर बारह घंटे पहले और बाद तक सूतक का प्रभाव होता है। यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं दे रहा, इसका यहां किसी प्रकार का असर नहीं होगा। इसलिए, जो लोग दैनिक पूजा-पाठ या भोजन करते हैं, उन्हें किसी भी प्रकार की रोक-टोक का सामना नहीं करना पड़ेगा। सूतक की निषेधाज्ञा केवल उन जगहों पर लागू होती है, जहां ग्रहण दिखाई देता है। भारत में, जहां यह सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं दे रहा, वहां इसका कोई प्रभाव नहीं है। जहां ग्रहण होता है, वहां कुछ उथल-पुथल हो सकती है, जैसा कि आप देख रहे हैं कि अन्य स्थानों पर संघर्ष जारी है।”
मथुरा के श्रीजी पीठाचार्य मनीष बाबा ने बताया, “यह सूर्य ग्रहण, विशेष रूप से इजरायल और ईरान के बीच चल रहे संघर्ष के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। इस समय 16 अक्टूबर के बाद से युद्ध के आसार बढ़ रहे हैं। अमावस्या के दिन अन्य देशों में होने वाला सूर्य ग्रहण भी किसी न किसी तरह से आक्रामक स्थितियों पर प्रभाव डाल सकता है। जब भी युद्ध होते हैं, कोई भी देश इस प्रभाव से अछूता नहीं रहता। इसका असर जनमानस पर भी पड़ता है। भारत में भी इस ग्रहण का कुछ असर दिखने की संभावना है। हम, सनातन धर्मावलंबियों के रूप में, भगवान से प्रार्थना करते हैं कि विश्व में शांति बनी रहे और युद्ध की स्थिति उत्पन्न न हो।”
भोपाल के पंडित विष्णु राजोरिया बताते हैं, “इसका मुख्य प्रभाव अमेरिका में पड़ेगा, विशेषकर अंटार्कटिका, अर्जेंटीना, चिली, और पेरू में। अधिकतर प्रभाव प्रशांत और अटलांटिक महासागरों में दिखाई देगा। जब भी कोई ग्रहण होता है, तो प्राकृतिक उथल-पुथल होती है, और उस भूभाग पर रहने वाले लोगों के जीवन पर इसका प्रभाव पड़ता है। वर्तमान में, विश्व में एक युद्ध का माहौल बना हुआ है, विशेषकर मध्य पूर्व के मुस्लिम देशों और इजरायल के बीच संघर्ष जारी है। अमेरिका के इस संघर्ष में कूदने से व्यापक जनहानि और धन हानि की आशंका है, जिससे यह युद्ध और भी विकराल रूप ले सकता है।”
उन्होंने आगे बताया, “इस ग्रहण का दुष्प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ेगा। भारत इस स्थिति से पूरी तरह सुरक्षित है और शांति के प्रयासों में लगा रहेगा। ग्रहण के दौरान अमेरिका पर इसका अधिक प्रभाव होगा और संयम और धैर्य ही तय करेगा कि विश्व युद्ध होगा या नहीं। अमेरिका और रूस ऐसे दो देश हैं, जिनकी भागीदारी से ही विश्व युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यदि ये देश युद्ध में नहीं कूदते हैं, तो विश्व युद्ध की संभावना कम रहेगी और आपसी संघर्ष के माध्यम से युद्ध विराम संभव हो सकता है।”
–आईएएनएस
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