लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे काफी चौंकाने वाले हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में केवल छह निर्दलीय प्रत्याशियों ने बढ़त बना रखी है, जबकि 8,000 से अधिक प्रत्याशियों में से लगभग आधे प्रत्याशी बिना किसी पार्टी से जुड़े चुनाव लड़े थे। निर्दलयी प्रत्याशियों में अब्दुल रशीद शेख, जिन्हें इंजीनियर रशीद के नाम से जाना जाता है, एक बड़ी जीत के रूप में उभरे हैं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला को 203273 वोटों के अंतर से हरा दिया है।
राशिद शेख टेरर फंडिग के मामले में तिहाड़ जेल में बंद है और उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था। उनको साल 2019 में गिरफ्तार किया गया था। राशिद को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपी बनाया था, जिससे वह आरोपों का सामना करने वाले पहले मुख्यधारा के राजनेता के रूप में चिह्नित हुए।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दो हत्यारों में से एक बेअंत सिंह के बेटे सरबजीत सिंह खालसा ने पंजाब के फरीदकोट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। वह आम आदमी पार्टी के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी करमजीत सिंह अनमोल से 70246 से अधिक मतों के अंतर से आगे चल रहे हैं। सिंह ने इससे पहले 2014 और 2019 में चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
इस बीच, पंजाब की खडूर साहिब लोकसभा सीट पर कट्टरपंथी सिख उपदेशक अमृतपाल सिंह कांग्रेस के कुलबीर सिंह जीरा से आगे चल रहे हैं। ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के प्रमुख अमृतपाल, जो वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं, ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा था।
वहीं, महाराष्ट्र के सांगली में शिवसेना (यूबीटी) द्वारा उम्मीदवार उतारे जाने के बाद कांग्रेस के बागी उम्मीदवार विशाल प्रकाशबापू पाटिल निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़े और 100259 से अधिक वोटों के अंतर से आगे चल रहे हैं। वे महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल के पोते हैं।
जीत की ओर बढ़ रहे अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों में मोहम्मद हनीफा जान शामिल हैं, जिन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस से इस्तीफा देने के बाद लद्दाख से चुनाव लड़ा था, और पटेल उमेशभाई बाबूभाई दमन और दीव से चुनाव लड़े थे। 2024 के लोकसभा चुनावों में 8,000 से अधिक उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा, जिनमें से 16 प्रतिशत राष्ट्रीय दलों द्वारा, छह प्रतिशत क्षेत्रीय दलों द्वारा, जबकि 47 प्रतिशत ने निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरे।
पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों से पता चलता है कि निर्दलीय प्रत्याशियों में मतदाताओं का भरोसा कम होता जा रहा है और 1991 से अब तक 99 प्रतिशत से अधिक निर्दलीय प्रत्याशियों ने अपनी जमानत जब्त कर ली है।
2019 में चुनाव लड़ने वाले 8,000 से अधिक निर्दलीय प्रत्याशियों में से केवल चार ही विजयी हुए, जबकि 99.6 प्रतिशत से अधिक ने अपनी जमानत जब्त कर ली। 2019 में जीतने वाले चार निर्दलीय उम्मीदवार थे – मांड्या से सुमलता अंबरीश, अमरावती से नवनीत राणा, असम के कोकराझार से जीते पूर्व उल्फा कमांडर नबा कुमार सरानिया, जो उल्फा कमांडर से राजनेता बने थे और दादरा और नगर हवेली से मोहनभाई संजीभाई डेलकर जीते।
चुनाव आयोग के मुताबिक, आजादी के बाद से निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या अधिक रही है, चुनाव जीतने वालों की संख्या 1951 में छह प्रतिशत और 1957 में आठ प्रतिशत से घटकर 2019 में लगभग 0.11 प्रतिशत रह गई है।
1951-52 के पहले चुनावों में 533 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था और 37 जीते थे। 1957 के चुनाव में 1,519 निर्दलीय उम्मीदवारों में से 42 जीते। हालांकि, इन दोनों चुनावों में भी 67 प्रतिशत निर्दलीय उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। 1962 में 20 निर्दलीय उम्मीदवार जीते, जबकि 78 प्रतिशत से अधिक ने अपनी जमानत खो दी।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मृत्यु के तुरंत बाद हुए 1984 के चुनावों में 13 निर्दलीय उम्मीदवार जीते, जिनकी सफलता दर लगभग 0.30 प्रतिशत थी, जबकि 96 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।