उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों पर लाखों रुपये का जुर्माना लगने के पीछे एक बड़ी वजह नियमित प्रधानाचार्य का न होना भी है। ज्यादातर कॉलेज कार्यवाहक प्रधानाचार्य के भरोसे चल रहे हैं। कई कार्यवाहक प्रधानाचार्य ऐसे भी हैं, जो इसकी योग्यता भी नहीं रखते हैं। ऐसे में आशंका है कि नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) इस पर भी सवाल उठा सकती है। ऐसे में अब सभी कॉलेजों का नए सिरे से ब्योरा मांगा गया है। इसमें प्रधानाचार्य, शिक्षक सहित अन्य सभी खाली पदों और एमबीबीएस व एमएस-एमडी की सीटों का ब्योरा मांगा गया है।
एनएमसी ने प्रदेश के 18 सरकारी मेडिकल कॉलेजों पर 87 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है, जबकि अन्य कॉलेजों की सूची दूसरे चरण में आनी है। जुर्माना लगने के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग की नींद उड़ गई है। विभाग की ओर से ब्योरा जुटाया जा रहा है। इस संबंध में शनिवार को सभी मेडिकल कॉलेजों के प्रधानाचार्यों को एक प्रोफार्मा भेजा गया है। इसमें खाली पदों और एनएमसी के नियमों के अनुसार कौन-कौन सी व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं हैं, इसके बारे में जानकारी मांगी गई है।
एनएमसी के नियमों के विपरीत कई विभागाध्यक्षों को कार्यवाहक प्रधानाचार्य का जिम्मा दिया गया है। इतना ही नहीं हरदोई, प्रतापगढ़ सहित कई मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्यों को दो-दो मेडिकल कॉलेजों का कार्यभार सौंपा गया है। सूत्रों के मुताबिक भविष्य में उठने वाले इन सवालों का भी विभाग की ओर से अभी से जवाब ढूंढ़ा जा रहा है, क्योंकि जब एनएमसी के प्रोफार्मा पर आवेदन किया जाएगा तो उसमें यह बताना होगा कि संबंधित कॉलेज में प्रधानाचार्य कौन है?
धीरे-धीरे कार्यवाहक के सहारे हो गए ज्यादातर कॉलेज
प्रदेश में 13 राजकीय मेडिकल कॉलेज हैं। इन कॉलेजों में लोक सेवा आयोग की ओर से चयनति प्रधानाचार्य तैनात करने का नियम है। वर्तमान स्थिति देखें तो गोरखपुर, आजमगढ़, प्रयागराज, कन्नौज, आगरा, बांदा, अंबेडकरनगर, झांसी, जालौन में कार्यवाहक प्रधानाचार्य हैं। नियमित प्रधानाचार्य सिर्फ कानपुर, बदायूं, मेरठ, सहारनपुर में कार्यरत हैं। खास बात यह है कि आयोग से चयनित प्रधानाचार्य प्रो. अरविंद त्रिवेदी को राजकीय मेडिकल कॉलेज मेरठ से संबद्ध किया गया है। जबकि यहां नियमित प्रधानाचार्य के तौर पर प्रो. आरसी गुप्ता भी कार्यरत हैं। इसी तरह आयोग से चयनित प्रो. मुकेश यादव डीजीएमई कार्यालय से संबद्ध हैं।
प्रो. तारिक चयनित होने के सालभर बाद भी कार्यभार ग्रहण नहीं किए हैं। इसी तरह एनएमसी के अनुसार एसोसिएट प्रोफेसर से प्रोफेसर तक के 10 साल के अनुभव वाले को ही प्रधानाचार्य बनाया जा सकता है। इसके बाद भी कम अनुभव वालों को प्रधानाचार्य का कार्यभार सौंपा जा रहा है। आजमगढ़, बांदा, कन्नौज और गोरखपुर के कार्यवाहक प्रधानाचार्य भी एनएमसी के मानकों के अनुसार 10 साल का अनुभव नहीं रखते हैं।
चंद दिनों में ही दे दिया इस्तीफा
राज्य स्वशासी चिकित्सा महाविद्यालयों में जाने वाले प्रधानाचार्य कुछ माह बाद ही इस्तीफा दे देते हैं। केजीएमयू के कई प्रोफेसर भी प्रधानाचार्य चुने गए, लेकिन चंद माह बाद ही लौट आए। पिछले दिनों हरदोई की प्रधानाचार्य और वहां के जिलाधिकारी के बीच विवाद भी सार्वजनिक हुआ था। प्रधानाचार्य पद छोड़ने वाले एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर दुश्वारियां गिनाईं। उनका कहना है कि मेडिकल कॉलेजों में प्रधानाचार्यों को काम की स्वायत्तता धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। उन्हें मामूली काम के लिए तरसना पड़ता है। विभाग की ओर से भी सहयोग नहीं मिलता है। प्रधानाचार्य की प्राथमिकता चिकित्सकीय व्यवस्था बढ़ाने पर होती है, जबकि दूसरे अधिकारियों की सामग्री खरीद पर। उन्होंने मांग की कि प्रधानाचार्यों की समस्याओं के निस्तारण पर जोर दिया जाए तो वे मेडिकल कॉलेजों में टिकने लगेंगे।
डीजीएमई पद को लेकर भी विवाद
डीजीएमई पद पर आयोग से चयनित वरिष्ठ प्रधानाचार्य की तैनाती का नियम है। पिछले दिनों शासन की ओर से नियमों में किए गए बदलाव में यह व्यवस्था दी गई है कि प्रधानाचार्य नहीं होने पर आईएएस की तैनाती की जाए। प्रधानाचार्य इसका भी विरोध कर रहे हैं। यह मामला हाईकोर्ट में लंबित है।
जल्द दूर होगी कमी
प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा पार्थ सारथी सेन शर्मा का कहना है कि राजकीय मेडिकल कॉलेजों के खाली पदों के लिए आयोग में प्रस्ताव भेजा गया है। स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालयों के लिए भी भर्ती प्रक्रिया चल रही है। जल्द ही प्रधानाचार्यों की कमी दूर हो जाएगी।