मालेगांव में 2008 में हुए बम धमाके के मामले में आरोपित रमेश उपाध्याय ने एनआइए की विशेष अदालत के समक्ष कहा कि तत्कालीन यूपीए सरकार के शासनकाल में उन्हें ‘हिंदू आतंकवाद की थ्योरी’ साबित करने के लिए फंसाया गया है। उन्होंने दावा किया कि इस काम को महाराष्ट्र आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) के जरिये कराया गया।
एनआइए की विशेष अदालत में मंगलवार को 16 साल पुराने मामले में आरोपित रमेश उपाध्याय ने निर्दोष होने का दावा किया और कहा कि उनका बम धमाके से कोई लेना-देना नहीं है। मुझे इस केस में मुंबई के आतंकवाद रोधी दस्ते ने फंसाया है। चूंकि केंद्र और प्रदेश में यूपीए की सरकारों के चलते महाराष्ट्र एटीएस पर ‘हिंदू आतंकवाद की थ्योरी’ को साबित करने का जबरदस्त दबाव था।
मुझ पर मनोवैज्ञानिक दबाव डाला जाता था
उन्होंने बताया कि एटीएस ने नासिर्फ उन्हें शारीरिक रूप से प्रताडि़त किया बल्कि अवैध रूप से हिरासत में रखकर मानसिक प्रताड़नाएं भी दीं। उपाध्याय ने आरोप लगाया कि उन्हें धमकी दी जाती थी कि उनकी पत्नी की नग्नावस्था में परेड कराई जाएगी। उनकी अविवाहित बेटी से दुष्कर्म होगा और बेटे का जबड़ा तोड़ दिया जाएगा। मेरे मकान मालिक को एक आतंकवादी को अपना बंगला किराए पर देने से मनाकर धमकाया जाता था और मुझ पर मनोवैज्ञानिक दबाव डाला जाता था।
उपाध्याय ने कहा कि जब मैंने कोई भी जुर्म मानने से इन्कार कर दिया या किसी और को इसमें फंसाने को राजी नहीं हुआ तो दिवाली की रात मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और नाशिक की मजिस्ट्रेटी अदालत में पेश किया गया।
नारको-एनालिसिस में मेरा निर्दोष होना साबित हो गया
उन्होंने मजिस्ट्रेट को अपनी शरीर पर प्रताड़ित किए जाने के निशान भी दिखाए और जांच में सहयोग करने के लिए सहमत हो गया। साथ ही अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए नारको-एनालिसिस के लिए रजामंदी दे दी। पालीग्राफ टेस्ट और नारको-एनालिसिस में मेरा निर्दोष होना साबित हो गया। इन रिपोर्टों में मुझे क्लीनचिट दिए जाने के बावजूद इस रिपोर्ट को कोर्ट में पेश नहीं किया गया। यहां तक कि आरोपपत्र और गवाहियों में भी मेरे खिलाफ कोई सुबूत नहीं था।
ये है मामला
उल्लेखनीय है कि 29 सितंबर, 2008 को मालेगांव में एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल में हुए बम धमाके में चार लोगों की मौत हो गई थी और सौ से अधिक लोग घायल हो गए थे। मामले की जांच महाराष्ट्र एटीएस से एनआइए को दी जा चुकी है।