भारत में ग्लूकोमा के 80 प्रतिशत मामलों का पता ही नहीं चल पाता : विशेषज्ञ

भारत में ग्लूकोमा के 80 प्रतिशत मामलों का पता ही नहीं चल पाता : विशेषज्ञ

नई दिल्ली, 31 जनवरी (आईएएनएस)। भारत में अंधेपन का तीसरा सबसे आम कारण ग्लूकोमा के 80 प्रतिशत मामलों का पता ही नहीं चल पाता है।

विशेषज्ञों ने बुधवार को बताया कि ग्लूकोमा एक ऐसी बीमारी है, जो ऑप्टिक तंत्रिका को प्रभावित करती है। जनवरी राष्ट्रीय ग्लूकोमा जागरूकता माह है, जो इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने का समय है।

ग्लूकोमा को ‘छुपे चोर’ के रूप में भी जाना जाता है। इसके कोई प्रारंभिक लक्षण नहीं होते हैं। यह अपरिवर्तनीय अंधेपन का प्रमुख कारण भी है, जिससे दुनिया भर में 8 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हैं।

नई दिल्ली में दिल्ली आई सेंटर और सर गंगा राम अस्पताल के वरिष्ठ कॉर्निया, मोतियाबिंद और सर्जरी विशेषज्ञ इकेदा लाल ने आईएएनएस को बताया, ”ग्लूकोमा आंखों की स्थितियों का एक समूह है, जो ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाता है, जिससे धीरे-धीरे दृष्टि हानि होती है। यह आम तौर पर शुरुआती चरण में कोई लक्षण नहीं दिखाता है, जिससे प्रारंभिक निदान के लिए नियमित आंखों की जांच महत्वपूर्ण हो जाती है।”

उन्होंने आगे बताया कि जैसे-जैसे स्थिति बढ़ती है, व्यक्ति को धुंधली दृष्टि, कम रोशनी के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई और रोशनी के चारों ओर प्रभामंडल देखने का अनुभव हो सकता है। कुछ मरीजों को आंखों में दर्द और सिरदर्द का भी अनुभव हो सकता है।

डॉक्टर ने कहा, “यदि आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देता है, तो व्यापक नेत्र परीक्षण के लिए नेत्र चिकित्सक को दिखाना महत्वपूर्ण है।”

भारत में 40 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लगभग 1 करोड़ लोगों को ग्लूकोमा है। लेकिन, उनमें से केवल 20 प्रतिशत ही जानते हैं कि उन्हें यह है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शुरुआत में इस बीमारी के कोई लक्षण नहीं होते हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, हालांकि ग्लूकोमा मुख्य रूप से मध्यम आयु वर्ग और बुजुर्गों को प्रभावित करता है। यह सभी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है।

नई दिल्ली एम्स में आरपी सेंटर फॉर ऑप्थेलमिक साइंसेज के रोहित सक्सेना ने आईएएनएस को बताया, ”ग्लूकोमा में दृष्टिहानि ऑप्टिक तंत्रिका की क्षति के कारण होती है जो आंखों से मस्तिष्क तक इमेज को ले जाने के लिए जिम्मेदार होती है। दृष्टि हानि जीवन की कम गुणवत्ता और दैनिक जीवन की गतिविधियों को करने की क्षमता में कमी से जुड़ी हो सकती है, जिसमें अवसाद और चिंता भी शामिल हैं।”

इसके अलावा उन्होंने कहा कि बढ़ती उम्र के साथ ग्लूकोमा आम होता जाता है। पारिवारिक इतिहास और आनुवांशिकी एक भूमिका निभाते हैं, जिन व्यक्तियों के रिश्तेदार ग्लूकोमा से प्रभावित होते हैं, वे अधिक जोखिम में होते हैं।

ग्लूकोमा का कोई पूर्ण इलाज नहीं है। लेकिन, जल्दी पता लगाना, उपचार बहुत महत्वपूर्ण है और इससे दृष्टि हानि को रोकने में मदद मिलती है। डॉक्टरों ने कहा कि जब इसकी पहचान हो जाती है, तो लोगों को दीर्घकालिक निगरानी और प्रबंधन की आवश्यकता होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

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