कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। 10 मई को मतदान होना है और ठीक तीन दिन बाद यानी 13 मई को नतीजे आ जाएंगे। इस ऐलान के बाद पार्टियां अपनी कमर कसने में जुटी हैं और सारे ढीले पेचों को टाइट किया जा रहा है ताकि कोई कसर न रहे। इसी कड़ी में भाजपा कोटा की राजनीति करती दिख रही है। उसने हाल ही में मुस्लिम वर्ग को ओबीसी कोटे में मिलने वाले आरक्षण से हटा दिया है। भाजपा को लगता है कि यह आरक्षण लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय को बढ़कर मिलेगा और इससे उसका वोटबैंक मजबूत हो सकता है।
भाजपा की इस रणनीति को कांग्रेस अहिंदा कार्ड की काट माना जा रहा है। कन्नड़ में अल्पसंख्यक, ओबीसी और दलित समुदाय को एक साथ संबोधित करने के लिए अहिंदा शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यही नहीं भाजपा की एक रणनीति यह भी है कि वह पूरे चुनाव में पीएम मोदी
बीएस येदियुरप्पा और बसवराज बोम्मई को आगे रखेगी, लेकिन किसी भी चेहरे को सीएम फेस के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं करेगी। इस बीच भाजपा ने उम्मीदवारों की लिस्ट पर काम करना भी शुरू कर दिया है। पार्टी की ओर से पहली सूची 8 अप्रैल तक जारी हो सकती है।
कोटा के जरिए इन वर्गों पर डोरे डालने की तैयारी
दरअसल भाजपा ने बीते कुछ दिनों में कोटा पॉलिटिक्स की ओर तेजी से कदम बढ़ाए हैं। बोम्मई सरकार ने अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले 3 फीसदी आरक्षण को बढ़ाकर 7 पर्सेंट कर दिया है। इसके अलावा दलितों को मिलने वाले 15 फीसदी कोटे को भी 17 पर्सेंट कर दिया गया है। यही नहीं मुस्लिमों के एक वर्ग को मिलने वाले ओबीसी कोटा को भी समाप्त किया है। मुस्लिम वर्ग को इस कोटे से बाहर करने पर वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय की हिस्सेदारी बढ़ जाएगी। दोनों ही ओबीसी वर्ग में आते हैं।
मुस्लिमों का कोटा वोक्कालिगा और लिंगायतों को मिलेगा
अपनी आखिरी कैबिनेट मीटिंग में बोम्मई सरकार ने ओबीसीकटीगरी के तहत मुस्लिमों को मिलने वाले 4 फीसदी आरक्षण को समाप्त कर दिया है। इसके अलावा 4 फीसदी हिस्से को बराबर-बराबर बांटते हुए वोक्कालिगा और लिंगायतों को भागीदारी दी है। भाजपा को लगता है कि कोटे को लेकर लिए गए फैसलों से दलित, जनजाति और ओबीसी वर्ग का बड़ा हिस्सा उसके पाले में आएगा, जबकि मु्स्लिम आरक्षण की बहाली की मांग पर वह कांग्रेस को घेर भी सकेगी। इसके अलावा हिंदुओं के कुछ वर्गों का ध्रुवीकरण भी हो सकेगा।