पाकिस्तान के पूर्व पीएम और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी (PTI) के अध्यक्ष इमरान खान को भ्रष्टाचार के एक मामले में सुनवाई के दौरान इस्लामाबाद हाईकोर्ट से गिरफ्तार कर लिया गया।
पाकिस्तान में भड़की हिंसा
बीते मंगलवार शाम क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में एक भ्रष्टाचार के मामले में सुनवाई के लिए पहुंचे थे। यहां से NAB के आदेश पर अर्धसैनिक रेंजर्स ने उन्हें हिरासत में ले लिया था। इसके बाद पाकिस्तान में हिंसा भड़क गई। इतना ही नहीं सबसे अधिक आबादी वाले प्रांत पंजाब में भी कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों को तैनात किया गया है।
स्थानीय मंत्रालय ने कहा कि कानून व्यवस्था और शांति बहाल करने के लिए सेना जिला प्रशासन के साथ मिलकर काम करेगी। इस बीच, पंजाब पुलिस ने कहा कि शांति भंग करने और हिंसा में शामिल होने के आरोप में पूरे प्रांत से 945 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
कब किस पीएम के साथ क्या हुआ?
मुशर्ऱफ की मौत के बाद भी हुई थी हिंसा
पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ का संयुक्त अरब अमीरात में निधन हो गया। मुर्शरफ के खिलाफ पाकिस्तान में कई मुकदमें चल रहे थे और इसी वजह से वह दुबई में निर्वासन में जी रहे थे। पाकिस्तानी मीडिया ने खुलासा था कि कारगिल घुसपैठ का कांड करने वाले परवेज मुशर्रफ भारत के साथ कश्मीर को लेकर बड़ी डील करने के बेहद करीब पहुंच गए थे। भारत और पाकिस्तान सियाचिन और सरक्रीक को लेकर समझौता करने ही वाले थे कि मुशर्रफ के खिलाफ वकीलों का विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।
पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक वकीलों के इस प्रदर्शन को पाकिस्तानी सेना के शीर्ष जनरलों ने हवा दी ताकि भारत के साथ किसी समझौते को रोका जा सके।
नवाज शरीफ को पाकिस्तान से निकाला गया था बाहर
इससे पहले पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ भी कुछ ऐसा ही हश्र हुआ था। अप्रैल 2018 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को आजीवन सार्वजनिक पद धारण करने से अयोग्य घोषित कर दिया था।
दरअसल, इस फैसले से एक साल पहले पनामा पेपर्स लीक मामले में नाम आने पर नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया गया था। तब पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय पीठ ने कहा था-संवैधानिक खंड के तहत अयोग्य ठहराए गए व्यक्ति को जीवन भर के लिए प्रतिबंधित माना जाएगा।
1999 में निर्वासित होने के बाद सितंबर 2007 में पाकिस्तान लौटने पर जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को नजरबंद कर दिया गया था। शरीफ को इलाज के लिए लंदन जाने के लिए नवंबर 2019 में जमानत मिली और वह फिर कभी नहीं लौटे।
मुशर्रफ पर दर्ज हुआ था देशद्रोह का मुकदमा
परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान पर शासन करने वाले तीसरे सैन्य कमांडर थे। उन्होंने 1999 में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नवाज शरीफ सरकार को बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद परवेज मुशर्रफ ने 2007 में संविधान को निलंबित कर दिया था और आपातकाल लगाया था।
लेकिन जैसे ही 2013 में नवाज शरीफ की सत्ता वापस आई तो पूरा माहौल मुशर्रफ के खिलाफ हो गया। मुशर्रफ आम चुनाव में भाग लेने के लिए खुद को तैयार कर रहे थे लेकिन कोर्ट ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया। नवाज शरीफ सरकार ने 2013 में मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया था।
पाकिस्तान में वर्चस्व के लिए परवेज मुशर्रफ और नवाज शरीफ के बीच यह खुलेआम सियासी युद्ध का दौर था। क्योंकि उससे पहले 1999 में जब परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को हटाया था, तो उन्होंने भी नवाज शरीफ पर देशद्रोह सहित कई आरोपों के मुकदमे चलाए थे।
इस दौरान उन्होंने यह तर्क दिया था कि नवाज शरीफ ने 1999 के सैन्य तख्तापलट के दिन कोलंबो से लौटने पर परवेज मुशर्रफ के विमान की लैंडिंग में देरी करने की कोशिश की थी।
बेनजीर भुट्टो
परवेज मुशर्रफ का शासन काल चार बड़े कांड के लिए जाना जाता है। 2006 में बलूच नेता अकबर बुगती की हत्या, 2007 में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या, 2007 में करीब 60 न्यायाधीशों की गिरफ्तारी और 2007 में इस्लामाबाद में बहुचर्चित लाल मस्जिद की घेराबंदी में एक मौलवी की हत्या कर दी गई थी।
वास्तव में 1988 और 1990 के बीच 2 बार और फिर 1993 से 1996 तक पीएम बनने से पहले जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो को कई गिरफ्तारियों और जेल में कई शर्तों का सामना भी करना पड़ा था।
2007 में एक आत्मघाती हमलावर ने बेनजीर की हत्या कर दी थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक यह हत्या पाकिस्तानी तालिबान और अलकायदा के इशारे पर की गई थी। खास बात ये थी कि नजीर भुट्टो ने पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर उनकी हत्या हुई तो मुशर्रफ जिम्मेदार होंगे।
बेनजीर भुट्टो पाकिस्तानी राजनीति में एक प्रमुख शख्सियत थीं। भुट्टो ने 1988 से 1990 और 1993 से 1996 तक देश के प्रधानमंत्री के रूप में 2 बार सेवा दी थी। राजनीति में उनके ग्लैमरस व्यक्तित्व और बेबाक भाषणों के चलते पाकिस्तान के पुरुष राजनीतिज्ञ उन्हें अपने लिए चुनौती मानते थे।
हुसैन सुहरावर्दी
इससे पहले 1956 से 1957 तक पाकिस्तान के पांचवें पीएम हुसैन सुहरावर्दी को 1962 में गिरफ्तार किया गया था, जब उन्होंने 1958 में जनरल अयूब खान के तख्तापलट का समर्थन करने से मना कर दिया था।
हुसैन को 1962 में पाकिस्तान सुरक्षा अधिनियम 1952 के तहत जेल में डाल दिया गया। इसके साथ ही उन्हें पाकिस्तान में राजनीति में भाग लेने से भी प्रतिबंधित कर दिया गया था।
जुल्फिकार अली भुट्टो
इसी तरह जुल्फिकार अली भुट्टो ने 1971 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में जनरल याह्या खान की जगह ली थी। उन्होंने 1973-1977 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया था। उनके शासनकाल में पाकिस्तान ने भारत के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, उस समय इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थीं। लेकिन जुलाई 1977 में एक सैन्य तख्तापलट के माध्यम से जनरल जिया-उल-हक ने सत्ता हड़प ली।
भुट्टो को एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या की साजिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। सितंबर 1977 में रिहा तो किया गया लेकिन फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में उन्हें अप्रैल 1979 में सेंट्रल जेल रावलपिंडी में फांसी दे दी गई।