मेरठ। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी 10 मई मेरठ की क्रांतिधरा से फूटी थी। नई पीढ़ी को इस क्रांति के अनछुए पहलुओं से अवगत कराने के लिए अभियान चल रहा है। इतिहासविद् 1857 की क्रांति के स्थलों पर स्कूली छात्र-छात्राओं को लाकर नई जानकारी दे रहे हैं।
मेरठ में प्रत्येक वर्ष 10 मई को क्रांति दिवस के रूप में मनाया जाता है। अब युवा पीढ़ी को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हुई क्रांति की अनगिनत गाथाओं को बताने का सेना और इतिहासकारों ने बीड़ा उठाया है। इसे ‘1857: एक क्रांति गाथा’ नाम दिया गया है।
इतिहासकार डॉ. अमित पाठक ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के गवाह रहे स्थानों की कहानी को स्कूली छात्र-छात्राओं को बताने का बीड़ा उठाया है। नई पीढ़ी तक क्रांतिकारियों की गाथाओं को पहुंचाने के लिए वे प्रतिदिन स्कूली बच्चों को इन स्थलों पर ले जा रहे हैं। किस प्रकार से क्रांति का मूक संदेश दिया गया और इसे सफल बनाने के लिए औघड़नाथ मंदिर पर क्रांतिकारियों की बैठकें हुआ करती थी।
डॉ. अमित पाठक की ओर से भारतीय सैनिकों के विद्रोह के बाद मेरठ में पैदा हुए हालातों और क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेजों को मार भगाने की गाथाएं बताई जा रही है। चर्बी युक्त कारतूसों के प्रयोग का विरोध शुरू होने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय सैनिकों पर इसके इस्तेमाल को लेकर दबाव नहीं डालने का हुक्म दिया था। भारतीय सैनिकों ने चर्बी युक्त कारतूस को हाथ लगाने से ही इनकार कर दिया था। इसके बाद भारतीय सैनिकों में अंग्रेजों के विरुद्ध आक्रोश पनपता चला गया। इस अभियान के दौरान विक्टोरिया पार्क, केसरगंज, मेरठ कैंट के स्थल, शहीद स्मारक आदि स्थानों की जानकारी दी जा रही है।