रायबरेली। भगवान शिव के मंदिरों को लेकर कई आख्यान प्रचलित हैं जो हमारी आस्था व विश्वास को समृद्ध करते हैं। लोक मान्यता है कि रायबरेली के एक शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग का प्राकट्य गाय के दूध से हुआ था। गाय के ‘एहसास’ से ही लोगों को पवित्र शिवलिंग की जानकारी हुई और बाद में यहां भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। रायबरेली शहर से करीब 25 किमी दूर डलमऊ तहसील के ऐहार कस्बे में स्थित यह मंदिर लोगों के आस्था व विश्वास का महत्वपूर्ण केंद्र है।
बल्हेमऊ गांव के तिवारी परिवार जो कि गांव की गायें जंगल में चरने जाया करती थी। अचानक एक गाय ने दूध देना बंद कर दिया तो उन्होंने सोचा कि शायद चरवाहा दूध की चोरी करता है। चरवाहे को रंगे हाथ पकड़ने के लिये एक दिन मालिक जाकर जंगलों में छुपकर बैठ गया। उसने जो देखा तो उसकी आंखें फ़टी रह गई। अचानक वही गाय झाड़ियों में जाकर खड़ी हो गई और उसके थन से दूध अपने आप गिरने लगा। मालिक ने जब नजदीक जाकर देखा तो दूध जमीन के एक गढ्ढे में जा रहा है।
कथा के अनुसार मालिक जब घर लौटे तो रात में उन्हें स्वप्न में इसी स्थान पर खुदाई से प्राप्त शिवलिंग पर मंदिर बनाने का आदेश हुआ। जब इस स्थान की खुदाई की गई तो यहां से एक विशाल स्वयं-भू शिवलिंग प्राप्त हुआ। इसी स्थान पर शिव मंदिर की स्थापना की गई और यह मंदिर ‘भगवान बल्हेश्वर शिव धाम’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मंदिर की स्थापना के बाद से इसमें कई बार निर्माण होते रहे, वर्तमान मंदिर का निर्माण ऐहार गांव के पंडित रामसहाय तिवारी व उनके पुत्र भगवान प्रसाद तिवारी द्वारा 1747 ई. में कराई गई थी। मंदिर परिसर में ही विशाल तालाब है। दूर-दराज के लाखों भक्त शिवरात्रि व सावन के महीने में यहां आते हैं।
गुम्बद पर लगा ‘त्रिशूल’ बदलती ही अपनी ‘दिशा’
मंदिर के संबंध में एक चर्चा यह भी है कि मंदिर के गुम्बद में लगा त्रिशूल अपनी दिशा बदलता रहता है। इस बात की पुष्टि करते हुए मुख्य पुजारी पंडित झिलमिल महाराज ने बताया कि इसकी चर्चा भक्तों से सुनी गई थी, जिसके बाद यह सोचा गया कि कहीं त्रिशूल ढीला न हो, लेकिन जब निरीक्षण किया गया तो वह कहीं से भी ढीला नहीं था। बावजूद इसके त्रिशूल के दिशा बदलने के कई प्रमाण भक्तों के पास मौजूद हैं। मुख्य पुजारी इसे भगवान शिव का चमत्कार मानते हैं। आस्था, परम्परा और आश्चर्य को समेटे यह प्राचीन मंदिर वर्षाे से भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।