किसानों को अभी तीन माध्यमों से मौसम की सूचनाएं मिलती हैं। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी), राज्य सरकार और स्थानीय स्तर पर कृषि विश्वविद्यालय मौसम के पूर्वानुमान के आंकड़े जारी करते हैं। कई बार तीनों के आंकड़ों में सामंजस्य नहीं होता। इससे किसानों की उलझन बढ़ जाती है। वे तय नहीं कर पाते कि किसे सही मानें और किसे गलत। किसानों की उलझन को देखते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने सभी पक्षों और संबंधित राज्यों को मिलकर कोई ऐसा तंत्र विकसित करने को कहा है, जिससे किसानों को एक ही माध्यम से मौसम की समय पर और सटीक सूचना मिल सके।
आंकड़े सटीक होने साथ लोगों को आसानी से समझ में आने वाले हों
मौसम की भविष्यवाणी का सीधा संबंध खेती से है। कृषि में जैसे-जैसे नई तकनीक और इनोवेशन का प्रयोग होने लगा है, वैसे-वैसे किसान भी मौसम पूर्वानुमान के आधार पर खेती के कार्य को आगे बढ़ाने लगे हैं। ऐसे में कृषि मंत्रालय ने मौसम के आंकड़ों को इस तरह जारी करने के लिए कहा है कि वह सटीक तो रहे ही, साथ ही आम लोगों को आसानी से समझ में आ जाए।
केंद्र सरकार ने प्रचार माध्यमों जैसे दूरदर्शन, आकाशवाणी और एफएम रेडियो को भी प्रतिदिन कुछ मिनट पूर्वानुमान के आंकड़ों को आसान भाषा में समझाने के लिए कहा है। मौसम का सटीक अनुमान लगाना प्रारंभ से ही बड़ी चुनौती है। धूप का तेवर, हवा की गति एवं दिशा, अधिकतम और न्यूनतम तापमान, आद्रता और बादलों की स्थिति के आंकड़े उपग्रह के माध्यम से लिए जाते हैं। फिर उनका वैज्ञानिक आधार पर समीक्षा और पिछले रिकॉर्ड के आधार पर आकलन कर मौसम की भविष्यवाणी की जाती है। इसे 90 प्रतिशत मामलों में सही होने का दावा किया जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पूर्वानुमान के गलत होने की दर तेजी से बढ़ी है। यहां तक कि एक ही क्षेत्र में विभिन्न माध्यमों की भविष्यवाणी में भी अंतर पाया जा रहा है।
सटीक भविष्यवाणी करने में अक्सर हो जाती है चूक
इसी वर्ष स्काईमेट और भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने मानसून की भविष्यवाणी को लेकर अलग-अलग आंकड़े प्रस्तुत किए। स्काईमेट ने जहां सामान्य से कम वर्षा का अनुमान लगाया तो आईएमडी ने एक दिन बाद ही सामान्य वर्षा का पूर्वानुमान जारी कर दिया। बिहार के सीमांचल में अप्रैल-मई के महीने में प्रत्येक वर्ष काल बैसाखी (तेज आंधी के साथ बारिश) का प्रकोप रहता है। इसकी सटीक भविष्यवाणी करने में अक्सर चूक हो जाती है और दर्जनों लोगों की जानें चली जाती हैं। अचानक आई आंधी-बारिश से जब क्षति हो जाती है तब पूर्वानुमान के किसी न किसी माध्यम का हवाला देकर बता दिया जाता है कि पहले ही अलर्ट जारी कर दिया गया था। लेकिन देखा जाता है कि तीनों माध्यमों के दावों में अंतर है।