उत्तराखंड में आपदा से मामलों में अध्ययन के लिए कारगर प्लान बनाया गया है। शोध, निगरानी, ग्लोबल वार्मिंग से जुड़े मामलों से जुड़ा डेटा भी आसानी से उपलब्ध हो सकेगा। हिमालय के 28 हजार से ज्यादा ग्लेशियर झीलों की यूनीक आईडी बना दी गई है। हर झील को अब 12 अंक के नंबर से पहचाना जाएगा। ग्लेशियर झीलों पर राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केन्द्र (एनआरएससी) ने एटलस भी जारी कर दिया है। एनआरएससी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) हैदराबाद ने राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना (एनएचपी) के तहत काम किया।
एनएचपी की शुरुआत 2016 में केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में की गई थी। 28,043 ग्लेशियर लेक के हाइड्रोलॉजिकल अध्ययन वाला एटलस बनाया गया। इसमें उपग्रह से मिले डेटा, भू-स्थानिक तकनीक से ग्लेशियर व ग्लेशियर झील का हाइड्रोलॉजीकल, ज्यामितीय, भौगोलिक व टोपोग्राफिक विवरण दर्ज है।
एटलस का प्रकाशन केवल वैज्ञानिक अध्ययन के लिए किया गया है और एनआरएससी की साइट पर उपलब्ध है। एनआरएससी निदेशक डॉ. प्रकाश चौहान के मुताबिक, ग्लेशियर-झीलें गंगा, यमुना, बह्मपुत्र जैसी विशाल नदियों को सदानीरा रहने में मदद करती हैं।
ऐसे पहचानें झील की लोकेशन: लेक आईडी 12 अंकों की है।
उदाहरण के लिए एक आईडी नंबर 0378ए1303118 है। जहां पहले दो अंक बेसिन कोड है, 03 ब्रह्मपुत्र बेसिन को दर्शाता है। 01 सिंधु और 02 गंगा बेसिन का कोड है। अगले पांच अक्षर सर्वे ऑफ इंडिया की टोपोशीट संख्या और अंतिम पांच अंक झील की क्रम संख्या है। इसी से पता चलेगा कि ये यूनीक आईडी किस नदी बेसिन की है। इस यूनिक आईडी से एटलस के जरिए हिमनद झील का ब्योरा निकाला जा सकता है।