पशुओं में संक्रमण के जरिए फैलने वाली जानलेवा बीमारी फिर पांव पसारने लगी। महाराष्ट्र, बंगाल, सिक्किम, उत्तराखंड एवं मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में इसके लक्षण दिखने लगे हैं। सप्ताह भर के भीतर तीन हजार से ज्यादा शिकायतें केंद्र सरकार को मिल चुकी हैं।
विनाशकारी बीमारी लंपी
बीमारी के फैलाव की आशंका के बीच सतर्कता बढ़ा दी गई है। मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय ने निगरानी समिति बना दी है, जो प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर स्थिति का आकलन करेगी। राज्यों को भी सतर्क किया गया है। लंपी विनाशकारी बीमारी है, जो भैंस-गाय समेत अन्य पशुओं को शिकार बनाती है। पिछले वर्ष इस बीमारी से देश में करीब डेढ़ लाख पशुओं की मौत हुई थी।
केंद्रीय पशुपालन आयुक्त अभिजीत मित्र ने दी जानकारी
इसका फैलाव मक्खियों एवं मच्छरों के काटने से होता है। केंद्रीय पशुपालन आयुक्त अभिजीत मित्र ने दैनिक जागरण को बताया कि जहां टीके कम लगे हैं, वहां से लंपी की शिकायतें ज्यादा आ रही हैं। किंतु जहां टीकाकरण हो चुका है, वहां स्थिति ठीक है। पशुपालन निदेशालय ने पहले ही अलर्ट जारी कर दिया था कि मार्च के बाद वैक्सीनेशन में तेजी लानी है। कई राज्यों ने किया भी है, मगर कुछ राज्यों ने लापरवाही बरती। फिर भी चिंता की बात नहीं है। अभी शुरुआत है। एक-दो स्थानों से मामले आ रहे हैं। केंद्र की नजर है।
किसी मवेशी की नहीं हुई है मौत
पशुपालकों को डरने की जरूरत नहीं है। सिक्किम एवं बंगाल के कुछ जिलों में लंपी के कारण पशुओं के मरने की सूचना मिल रही है, जहां केंद्र सरकार ने त्वरित कार्रवाई का निर्देश दिया है, ताकि जल्द से जल्द इस बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सके। हालांकि केंद्र का कहना है कि बंगाल के दार्जिलिंग एवं कलिम्पोंग में लंपी के चलते करीब ढाई हजार पशुओं के संक्रमित होने की सूचना तो मिली है, किंतु किसी मवेशी की मौत नहीं हुई है।
राज्यों को नियमित रूप से टीकाकरण की सलाह दी गई
दार्जिलिंग में लगभग चार सौ और कलिम्पोंग में दो हजार वैसे मवेशी संक्रमित थे, जिनका टीकाकरण नहीं हुआ था। जिन्हें टीका लग चुका है, उन्हें संक्रमण के बावजूद किसी तरह की दिक्कत नहीं है। स्थिति नियंत्रण में है। राज्यों को नियमित रूप से टीकाकरण की सलाह दी गई है।
क्षेत्रीय रोग निदान प्रयोगशालाओं को प्रभावित क्षेत्रों का नियमित निरीक्षण एवं समय सीमा में नियंत्रण, रोकथाम और राज्य सरकारों को हर संभव सहयोग करने का निर्देश दिया गया है। केंद्र सरकार की ओर से भी वित्तीय और तकनीकी सहायता सहित सभी आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। हालांकि पशुपालन के राज्य विषय होने के कारण जमीनी क्रियान्वयन राज्य सरकारें करती है।