हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के 13 दिन बाद तक शोक मनाया जाता है। तेरह दिन की इस अवधि को तेरहवीं के नाम से जाना जाता है। तेरहवें दिन ब्राह्मण को भोज कराने के बाद मृतक की आत्मा को शांति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि तेरहवीं के बाद ही मृतक की आत्मा को भगवान के धाम में स्थान मिलता है।
इसलिए तेरहवीं है जरूरी
गरूड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद 13 दिन तक मृतक की आत्मा का घर में ही वास होता है। गरूड़ पुराण में तो यहां तक कहा गया है कि यदि मृतक की तेरहवीं न कराई जाए तो उसकी आत्मा पिशाच योनी में भटकती रहती है।
13वें दिन होता है पिंडदान
13 दिनों तक मृतक के संस्कार से जुड़ी सभी आवश्यक रीतियां निभाई जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि आत्मा अपने परिवार वालों के द्वारा किए जाने वाले कामों को ध्यान से देखती है। 13वें दिन ब्राह्मण भोज कराया जाता है और पिंडदान होता है। पिंड दान से आत्मा को बल मिलता है और वह मृत्युलोक से यमलोक तक की यात्रा संपन्न करती है।
ब्राहमण भोज भी जरूरी
तेरहवीं में ब्राहमण भोज भी बहुत जरूरी माना गया है क्योंकि ब्राह्मणों द्वारा सब क्रिया कराई जाती है। ऐसे में अगर ब्राह्मण भोज न करवाया जाए तो मृतक की आत्मा पर ब्राह्मणों का कर्ज चढ़ जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार इससे मृतक की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती और उसे कष्ट भोगने पड़ते हैं।
वैज्ञानिक महत्व भी जानें
तेरहवीं करने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी मौजूद है। विज्ञान में ऐसा माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति 13 दिनों से अधिक दिन तक उदास रहता है तो वह अवसाद से ग्रस्त हो सकता है। इसलिए अवसाद से बचने के लिए भी तेरहवीं महत्वपूर्ण हैं।